‘भारत माता’ और ‘भूमा देवी’ के विरुद्ध बोले गए अपमानजनक शब्दों के मामले में ईसाई पादरी जॉर्ज पोन्नैया के खिलाफ़ हुई एफआईआर रद्द करने से मद्रास हाई कोर्ट ने साफ मना कर दिया है। पादरी पर धार्मिक भावनाएँ आहत करने के आरोप में आईपीसी धारा 295-ए के तहत मामला दर्ज हुआ था। इसके बाद उसे 18 जुलाई 2021 को हिरासत में लिया गया। कुछ दिन पहले उसने सीपीसी की धारा 482 के तहत एफआईआर रद्द करने की माँग की। अब इसी मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये राहत देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने याचिका के संबंध में कहा, “याचिकाकर्ता ने धरती माँ के सम्मान में नंगे पैर चलने वालों का मजाक उड़ाया। उन्होंने कहा कि ईसाई जूते पहनते हैं ताकि उन्हें खुजली न हो। उन्होंने भूमा देवी और भारत माँ को संक्रमण और गंदगी के स्रोत के रूप में दिखाया। हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने के लिए इससे अधिक अपमानजनक कुछ नहीं हो सकता।”
जस्टिस स्वामीनाथन ने भी माना, “धारा 295-ए लगती है जब भी नागरिकों की किसी धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाई जाती है। अगर अपमानजनक शब्दों ने कुछ हिंदुओं की भी भावना को आहत किया है तो भी ये दंडात्मक प्रावधान लागू होगा।” जज ने माना कि भूमा देवी हिंदू मान्यताओं के अनुसार देवी मानी गई हैं और उन पर ऐसी टिप्पणी, हिंदुओं के लिए अपमानजनक है।
फैसला सुनाते हुए कहा गया, “भारत माता से बहुत बड़ी संख्या में हिंदुओं की भावना जुड़ी हुई है। उन्हें अक्सर राष्ट्रीय ध्वज के साथ शेर की सवारी करते दर्शाया जाता है। वो कई हिंदुओं के लिए देवी हैं। भारत माता और भूमा देवी के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करके याचिकाकर्ता ने आईपीसी की धारा 295 एक तहत अपराध किया है।”
आनंद मठ में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित कविता वंदे मातरम से पंक्ति लेकर फैसला सुनाने की शुरूआत हुई, क्योंकि इसमें राष्ट्र को देवी माँ के बराबर रखा गया है। इसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता की हर दलील को नकारा। एक जगह तो उसने खुद को सही दिखाने के लिए डॉ अंबेडकर का भी उदाहरण दिया था जहाँ वह हिंदू धर्म की आलोचना करते थे। कोर्ट ने कहा कि ये सब कुछ ज्यादा ही हो गया।
कोर्ट ने माना कि किसी को इस तरह किसी की भावनाओं का ठेस पहुँचाने का अधिकार नहीं हैं। इसके अलावा पादरी के भाषण को आईपीसी की धारा 153 एक तहत सांप्रदायिकता फैलाने वाला पाया। जस्टिस ने कहा कि पादरी के निशाने पर हिंदू ही थे। वह हिंदुओं को अलग और मुस्लिम व ईसाइयों को अलग रख रहा था। स्पष्ट तौर पर ये एक समुदाय को दूसरे के विरुद्ध भड़काना था। और ये सब धर्म के आधार पर हो रहा था। याचिकाकर्ता ने लगातार हिंदू धर्म को नीचा दिखाया और इस्तेमाल किए गए शब्द भड़काऊ थे। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस ने धर्मांतरण का मुद्दा उठाया और पादरी के विरुद्ध मामले को आईपीसी की धारा 295ए, 153 ए, 505ए के तहत जस का तस रखा, लेकिन धारा 143, 269, 506 (1) और महामारी अधिनियम, 1897 की धारा 3 को केस से हटा दिया गया।
गौरतलब है कि कन्याकुमारी के अरुमनई में 18 जुलाई 2021 को आयोजित एक सभा में ‘जनन्याग क्रिस्थुवा पेरवई अमाईपु’ नामक NGO के सलाहकार व ईसाई पादरी जॉर्ज पोन्नैया (George Ponniah) की हिंदू विरोधी टिप्पणी ने उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थी। उनके भाषण की वीडियो वायरल होने के बाद से पूरे तमिलनाडु में उन पर 30 शिकायतें दर्ज हुई थीं। उन पर आरोप था कि उन्होंने भारत माता को अपशब्द कहे और देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के लिए भी आपत्तिजनक बातें कहीं।