Monday, December 23, 2024
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‘हर शुक्रवार और रमजान में मिले हिजाब पहनने की इजाजत’: कर्नाटक बुर्का विवाद में आज भी नहीं हो सका फैसला, कल फिर होगी HC में सुनवाई

"हिजाब विवाद मुस्लिम लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। संविधान की प्रस्तावना के अनुसार स्वास्थ्य की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है।"

कर्नाटक हिजाब विवाद (Karnataka Hijab Row) को लेकर हाईकोर्ट में आज गुरुवार (17 फरवरी, 2022) को पाँचवे दिन की सुनवाई पूरी हुई। हालाँकि, मौजूदा विवाद को देखते हुए HC द्वारा आज भी कोई निर्णय नहीं दिया गया है। अब कल शुक्रवार (18 फरवरी, 2022) को फिर से सुनवाई होगी।

इस दौरान याचिकाकर्ताओं ने दलीलें पेश कीं। सामाजिक कार्यकर्ता आर कोटवाल ने कहा कि लिंग-धर्म के आधार भेदभाव के चलते शिक्षा के अधिकार का हनन हो रहा है। वहीं दूसरे याचिकाकर्ता डॉ. विनोद कुलकर्णी ने माँग की कि हर शुक्रवार और रमजान के महीने में हिजाब पहनने की इजाजत दी जाए।

ऐडवोकेट जनरल ने अपना पक्ष रखने के लिए शुक्रवार तक का वक्त माँगा। इसी के साथ गुरुवार की सुनवाई पूरी हुई। कोर्ट अब शुक्रवार को ढाई बजे फिर से मामले की सुनवाई शुरू करेगी।

वहीं बुधवार को छात्राओं के वकीलों ने कोर्ट के सामने अपनी कई दलीलें रखीं और माँग की कि सिर्फ जरूरी धार्मिक प्रथा के पैमाने पर इसे न तौलकर, विश्वास को देखना चाहिए और उसकी रक्षा करनी चाहिए। उधर कर्नाटक पुलिस ने हुबली धारवाड़ में सीआरपीसी की धारा 144 के तहत सभी शैक्षणिक संस्थानों के 200 मीटर के दायरे में 28 फरवरी तक तत्काल प्रभाव से निषेधाज्ञा लागू कर दी है।

वहीं कल की सुनवाई में स्कूल-कॉलेजों में बुर्का पर बैन हटाने के लिए याचिकाकर्ताओं की ओर से जिरह करते हुए अधिवक्ता रवि वर्मा कुमार ने कहा कि अकेले हिजाब का ही जिक्र क्यों है जब दुपट्टा, चूड़ियाँ, पगड़ी, क्रॉस और बिंदी जैसे सैकड़ों धार्मिक प्रतीक चिन्ह लोगों द्वारा रोजाना पहने जाते हैं।

आज की सुनवाई की खास बातें

कर्नाटक हिजाब विवाद में एक और हस्तक्षेप याचिका दाखिल की गई। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, “हम हस्तक्षेप याचिका का कॉन्सेप्ट नहीं समझ पा रहे हैं। हम याचिकाकर्ताओं और फिर प्रतिवादियों को सुन रहे थे। हमें किसी के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।”

मामले में नई याचिका को स्वीकृति दी गई। ऐडवोकेट आर. कोटवाल का कहना है कि अनुच्छेद 14, 15 और 25 के अलावा, राज्य की कार्रवाई अनुच्छेद 51 (सी) का भी उल्लंघन करती है, अंतरराष्ट्रीय कानून और संधि दायित्वों के लिए सम्मान।

प्रतिवादियों की कार्रवाई पूरी तरह से धर्म और लिंग के आधार पर मनमाना भेदभाव पैदा कर रही है, वे केवल धार्मिक हेडगियर- हिजाब के आधार पर शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन कर रहे हैं।

चीफ जस्टिस: आपका क्या विवाद है?

कोटवाल: राज्य की कार्रवाई अंतर्राष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों के अनुरूप नहीं है।

चीफ जस्टिस: क्या आप कोर्ट की भी सुनेंगे? पहले प्रमाण दीजिए, कौन हैं आप?

कोटवाल: मैं अंतरराष्ट्रीय संधियों को अदालत के संज्ञान में ला रहा हूँ।

चीफ जस्टिस: हमें आपका सहयोग नहीं चाहिए।

चीफ जस्टिस: हम आपको कोर्ट को सुने बिना इस तरह जिरह की इजाजत नहीं दे सकते। आप कौन हैं?

कोटवाल: याचिकाकर्ता एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, आरटीआई ऐक्टिविस्ट हैं, जो माननीय अदालत को कई जनहित याचिकाओं में मदद कर चुके हैं।

चीफ जस्टिस: आपकी याचिका नियमों के मुताबिक नहीं है। बेंच ने पीआईएल खारिज की।

कोटवाल: मैंने कई यचिकाएँ फाइल की हैं लेकिन पहली बार रख-रखाव के आधार पर इसे खारिज कर दिया गया।

डॉ. विनोद कुलकर्णी ने व्यक्तिगत रूप से दलीलें पेश करनी शुरू कीं।

डॉ. विनोद: हिजाब विवाद मुस्लिम लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। संविधान की प्रस्तावना के अनुसार स्वास्थ्य की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है।

चीफ जस्टिस: जनहित याचिका हाई कोर्ट के नियमों के मुताबिक नहीं है।

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दायर याचिकाओं में से एक को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह विचारणीय नहीं है। कर्नाटक HC ने सामाजिक कार्यकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता रहमथुल्ला कोटवाल से कहा कि आप इतने महत्वपूर्ण मामले में अदालत का कीमती समय बर्बाद कर रहे हैं।

अधिवक्ता विनोद कुलकर्णी, याचिकाकर्ता, जिनकी याचिका विचाराधीन है, कर्नाटक एचसी को बताते हैं कि यह मुद्दा उन्माद पैदा कर रहा है और मुस्लिम लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। वह कम से कम शुक्रवार को मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने की अनुमति देने के लिए अंतरिम राहत की माँग करते हैं।

5 छात्राओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर वकील एएम डार, कर्नाटक एचसी के समक्ष कहते हैं- हिजाब पर सरकार के आदेश से उन मुस्लिम छात्राओं पर असर पड़ेगा जो हिजाब पहनती हैं। उन्होंने कहा कि यह आदेश असंवैधानिक है। कोर्ट ने डार से अपनी वर्तमान याचिका वापस लेने और उन्हें नई याचिका दायर करने का आदेश दिया।

हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता मुस्लिम छात्राओं के वकील की दलील

बता दें कि इससे पहले मुस्लिम छात्राओं की ओर से दलील देते हुए वकील रविवर्मा कुमार ने कहा, “मैं केवल समाज के सभी वर्गों में धार्मिक प्रतीकों की विविधता को उजागर कर रहा हूँ। सरकार अकेले हिजाब को चुनकर भेदभाव क्यों कर रही है? चूड़ियाँ पहनी जाती हैं? क्या वे धार्मिक प्रतीक नहीं है?” रवि वर्मा ने कहा, “यह केवल उनके धर्म के कारण है कि याचिककर्ता को कक्षा से बाहर भेजा जा रहा है। बिंदी लगाने वाली लड़की को बाहर नहीं भेजा जा रहा, चूड़ी पहने वाली लड़की को भी नहीं। क्रॉस पहनने वाली ईसाइयों को भी नहीं, केवल इन्हें ही क्यों। यह संविधान के आर्टिकल-15 का उल्लंघन है।” उन्होंने कहा कि समाज में विविधता को पहचानने और उन्हें प्रतिबिंबित करने के लिए कक्षाएँ एक जगह होनी चाहिए।

वकील कुमार ने कहा कि विधायक की अध्यक्षता वाली कालेज विकास समिति (सीडीसी) को इस मामले पर फैसला करने का अधिकार नहीं है। मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की पीठ के सामने कुमार ने कहा, “देश में झुमका, क्रास, हिजाब, बुर्का, चूड़ियाँ और पगड़ी पहनी जाती है। महिलाएँ ललाट पर बिंदी भी लगाती हैं। परंतु, सरकार ने इनमें से सिर्फ हिजाब को ही चुना और उस पर पाबंदी लगाई। ऐसा भेदभाव क्यों? क्या चूड़ी धार्मिक प्रतीक नहीं?”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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