गुजरात के अहमदाबाद स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) के लोगो को बदला जा रहा है, जिसको लेकर विवाद शुरू हो गया है। IIMA द्वारा सिदी सैय्यद मस्जिद की जाली और संस्कृत के पद्य ‘विद्याविनियोगदिविकासः’ (ज्ञान के प्रसार से विकास) से प्रेरित ‘ट्री ऑफ लाइफ’ के लोगो बदलने के खिलाफ संस्थान के ही प्रोफेसर खड़े हो गए हैं। करीब 45 प्रोफेसरों ने इसको लेकर बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को पत्र लिखा है। रिपोर्टों के अनुसार, इस मामले में IIMA के डायरेक्टर एरोल डिसूजा ने मीडिया के किसी भी तरह के सवालों पर टिप्पणी करने से मना कर दिया।
एक पत्र की कॉपी ऑपइंडिया को मिली है, जिसमें संस्थान के मेंबर ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि उन्हें लोगों बदलने की प्रक्रिया में शामिल ही नहीं किया गया। फैकल्टी को इस बात की चिंता सता रही है कि संस्थान का नया लोगो आईआईएम की विरासत और उसके उद्देश्य की पहचान से मेल नहीं खाता है। इस पत्र में प्रोफेसरों ने लिखा, “इसके अलावा दो लोगो का प्रस्ताव किया गया, जिसमें से पहले में संस्कृत मोटो है और दूसरे में नहीं। हमें बताया गया है कि इन लोगो में से एक अंतरराष्ट्रीय माँगों के हिसाब से है और दूसरा घरेलू उद्देश्यों के लिए है। यह फैसला तर्कों से परे है।”
संस्थान के प्रोफेसरों का कहना है कि आईआईएम का मूल लोगो जाली और संस्कृत कविता उसे और उसके भारतीय लोकाचार को परिभाषित करती है। प्रोफेसरों ने तल्ख लहजे में कहा है, “यह हमारे लिए हमारी भारतीयता का प्रतीक है, विद्या के साथ हमारा जुड़ाव ही संस्थान से हमारा जुड़ाव है। देश के ‘विकास’, उद्योग समाज, छात्रों और मैनेजमेंट डिसीप्लीन के प्रति हमारी प्रतिबद्धता है। ये हमारा दर्शन और मिशन का वक्तव्य है। इसमें किसी भी तरह का बदलाव हमारी पहचान पर हमला है।”
कई लोगों ने ब्रांड वैल्यू को घटाया: पूर्व निदेशक बकुल ढोलकिया
मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के पूर्व डायरेक्टर बकुल ढोलकिया ने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए इस तरह के फैसलों को संस्थान की संस्कृति और मौलिक उल्लंघन बताया है। उन्होंने बोर्ड के उन प्रस्तावों पर विचार करने के फैसले पर आश्चर्य व्यक्त किया, जो कि एकेडमिक काउंसिल से आया ही नहीं। ढोलकिया ने इस मसले पर सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने की बात की और कहा कि इस फैसले से संस्थान की दशकों पुरानी संस्कृति नष्ट हो रही है।
बहरहाल, संस्थान के इस फैसले का विरोध भी किया जा रहा है। सूत्रों के हवाले से ऑपइंडिया को पता चला है कि इस विशेष समूह द्वारा कुछ ऐसे फैसले और नियुक्तियाँ की गई हैं, जो कि सही नहीं रहे हैं। इसी संस्थान के एक पूर्व छात्र ने ऑपइंडिया को बताया, “आधुनिक दिखने के लिए एमआईटी (मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) ने भी अपना लोगो बदल दिया था। टेक्निकली इसमें कुछ गलत नहीं है। लेकिन सही सलाह ली जानी चाहिए थी। अगर बेनीफिसियरीज की जानकारी के बिना ही गुप्त तरीके से लोगो को रजिस्टर किया गया है, तो ये इस कदम के पीछे के मकसद को संदिग्ध बनाता है।”
छात्र ने आगे कहा, “और हाँ, संस्कृत होनी चाहिए। ये तो शैक्षणिक संस्थान का लोगो है।” उन्होंने ये भी कहा कि अगर देश के प्रमुख शैक्षणिक संस्थान से इस तरह से लोगो में से संस्कृत को हटाया जाता है तो दूसरे संस्थान भी ऐसा ही कर सकते हैं। पहले से ही हम में से कई भारतीय अपनी विरासत को अहमियत नहीं देते हैं औऱ ऐसा करके आधुनिक दिखने की कोशिश में हम अपने अतीत को एक हिस्से को खत्म कर रहे हैं।