केरल में 80 साल की चिन्नमा को दफनाने के लिए उसकी बेटी को ऑर्थोडॉक्स समूह की तरफ से भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल किए जाने का मामला सामने आया है। चिन्नमा जैकबाइट समूह से जुड़ी हुईं थी। उनकी इच्छा थी कि मृत्यु के बाद उन्हें उसी कब्रिस्तान में दफनाया जाए जहॉं उनके पति दफन हैं।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक यह कब्रिस्तान सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से ऑर्थोडॉक्स समूह के नियंत्रण में है। चर्चों के प्रशासन और संचालन को लेकर दो गुटों में विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में फैसला सुनाते हुए कहा था कि 1934 के मलांकारा गिरजाघर के दिशा-निर्देशों के अनुसार 1,100 पेरिश और उनके गिरजाघरों को ऑर्थोडॉक्स गुट द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए। पेरिश एक छोटा प्रशासनिक जिला होता है जिसका अपना चर्च और पादरी होता है। फैसले पर पूरी तरह अमल नहीं होने को लेकर इसी साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार पर नाराजगी भी जताई थी।
मीडिया रिपोर्टों में चिन्नमा की बेटी मिनी के हवाले से बताया गया है कि मॉं की मौत के बाद ऑर्थोडॉक्स समूह में शामिल होने के लिए उस पर दबाव डाला गया। ऐसा करने पर ही सेंट थॉमस ऑर्थोडॉक्स चर्च ने जैकबाइट समूह से जुड़ी उसकी मॉं को पारिवारिक क्रिप्ट में दफनाने की अनुमति देने की बात कही।
मिनी के अनुसार, “मेरी माँ ने मुझसे कहा था कि उन्हें किसी और कब्रिस्तान में नहीं दफ़नाया जाना चाहिए। वह फैमिली क्रिप्ट में दफ़न होना चाहती थीं, लेकिन अब इस पर यह ऑर्थोडॉक्स गुट का नियंत्रण है। जब मैंने उनसे संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि यदि मैं उनके समूह में शामिल हो जाऊँ तो वे मेरी माँ को दफ़न करने के लिए तैयार हैं।”
हालाँकि सेंट थॉमस चर्च के विक्टर फादर जोसेफ मलयिल ने इससे इनकार करते हुए कहा है कि अंतिम संस्कार मानवता की बात है। लेकिन, जेकोबाइट पक्ष के एक सूत्र ने दावा किया है कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जब ऑर्थोडॉक्स समूह ने दूसरे गट के ईसाइयों को दफ़न करने से मना कर दिया।
ईसाई समुदाय के भीतर गुटबाजी बहुत अधिक है। दावों के उलट भारत में चर्चों को जाति के आधार पर भेदभाव के लिए जाना जाता है।