56 इंच का सीना से तात्पर्य उस साहस और इच्छाशक्ति से है जो नामुमकिन दिख रहे बदलावों को भी मुमकिन कर देता है। यह दूसरी बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदर्भ में जब भी इसका जिक्र आता है तो ‘लिबरल’ इंची-टेप लेकर बैठ जाते हैं। लेकिन, इससे बेपरवाह मोदी सरकार ने तीन तलाक पर रोक से संबंधित बिल को राज्यसभा से पास कराकर अपनी उसी इच्छाशक्ति का फिर से परिचय दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाया है जो चीज़ें सरकार की प्राथमिकता है, उसका कोर एजेंडा है, उसके लिए न तो राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है और न ही राज्यसभा में बहुमत न होना इनके आड़े आएगा। तीन तलाक बिल को लेकर बहुत से मोदी-विरोधी इस मुगालते में थे कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक सरकार के पास बहुमत न होने के कारण राज्यसभा में फँस जाएगा और वे इसे सिलेक्ट समिति के पास भिजवाने में कामयाब हो जाएँगे। लेकिन मोदी की राजनीतिक प्रबंधन क्षमता ने बाज़ी पलट दी।
गणित
भाजपा की सहयोगी लेकिन अल्पसंख्यकवाद और तुष्टिकरण में अभी भी ‘इनवेस्टेड’ जदयू बिल के विरोध में थी। इसके कारण 242 सांसदों की वर्तमान संख्या वाली राज्यसभा में सत्ता पक्ष का संख्या बल गिरकर 113 से 107 पर आ गया था। लेकिन मतदान के वक़्त जदयू और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने विरोध में वोट डालने के बजाए वॉक-आउट किया, जिससे राज्यसभा में कुल सदस्यों की संख्या 236 हो गई। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और कांग्रेस के ऑस्कर फर्नांडीज समेत 14 सांसदों की अनुपस्थिति से सदन की संख्या 216 हो गई और बहुमत के लिए जरूरी संख्या 109 रह गई।
भाजपा के काम यहाँ आई पुरानी सहयोगी और फ़िलहाल ‘न्यूट्रल’ बीजद (बीजू जनता दल)। 4 सांसद बीजद के मिल जाने से बिल के पक्ष में गणित 113 का हो गया। 11 सांसदों वाली अन्नाद्रमुक, 6 सांसदों वाली जदयू, टीआरएस के 6, बसपा के 4 और पीडीपी के दो सांसदों का वॉक-आउट भाजपा के काम आया। इसके अलावा कॉन्ग्रेस, तृणमूल और सपा के भी कुछ सांसदों के ‘बंक’ मारने से सदन की प्रभावी संख्या (जितने लोगों ने अंततः वोट किया) 183 बची। यानि बहुमत के लिए 94 मत चाहिए थे।
वोटिंग
वोटिंग हुई। भाजपा के 78 सदस्यों ने पक्ष और कॉन्ग्रेस के 48 सदस्यों ने बिल के विरोध में मतदान किया। कुल 99-84 के आँकड़े से यह बिल राज्यसभा से पास हो गया। इसके पहले इसे सिलेक्ट समिति को भेज लटकाने का प्रस्ताव 100 के मुकाबले 84 से गिर चुका था।
संदेश
यह बिल भाजपा और मोदी का संदेश था- समर्थकों और विरोधियों दोनों के लिए। दोनों को ही समान संदेश- सरकार राज्यसभा में बहुमत में भले न हो, लेकिन जो उसे करना है, जिसे वह उचित समझती है, उसे वह करके रहेगी। उसके पास संख्या बल की कमी हो सकती है, इच्छाशक्ति की नहीं। अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार सरकार अपने कार्य बदस्तूर जारी रखेगी और संख्याबल प्रबंधन की नज़ीर तो इस बिल ने दिखा ही दी है।