Monday, November 18, 2024
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दो उंगली डालकर वजाइना का टेस्ट: सुप्रीम कोर्ट ने ‘टू फिंगर’ परीक्षण पर लगाया बैन, कहा- ये कोई वैज्ञानिक ढंग नहीं

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने फैसला देते हुए कहा कि इस तरह के परीक्षण करने के पीछे एकमात्र कारण होता है कि ये पता लगाया जा सके कि लड़की सेक्सुअली एक्टिव थी या नहीं। ऐसा करके लड़की को दोबारा से पीड़ित बनाया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (31 अक्टूबर) को आधिकारिक रूप से यह फैसला दिया है कि अगर कोई रेप पीड़िता या यौन पीड़िता के साथ ‘टू-फिंगर या थ्री फिंगर (Two Finger or Three Finger)’ टेस्ट करता है तो उसको दोषी माना जाएगा।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने फैसला देते हुए कहा कि इस तरह के परीक्षण करने के पीछे एकमात्र कारण होता है कि ये पता लगाया जा सके कि लड़की सेक्सुअली एक्टिव थी या नहीं। ऐसा करके लड़की को दोबारा से पीड़ित बनाया जाता है। उसका दोबारा से शोषण होता है। ये कोई वैज्ञानिक परीक्षण नहीं होते।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसले में इस परीक्षण पर पर रोक लगाते हुए कहा कि ऐसे परीक्षण गलत धारणाओं पर होते हैं कि एक सेक्सुअली एक्टिव महिला का रेप नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि एक महिला की गवाही उसके सेक्सुअल हिस्ट्री पर निर्भर नहीं करती। ये कहना कि महिला का बलात्कार इसलिए हुआ क्योंकि वो सेक्सुअली एक्टिव थी, केवल पितृसत्तात्मक और सेक्सिस्ट सोच है।

कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वो स्वास्थ्य विभाग के निर्देश सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में बताएँ। वर्कशॉप हों और समझाया जाए कि कैसे एक यौन शोषण पीड़िता का परीक्षण किया जाएगा। उन्होंने आदेश दिया कि मेडिकल स्कूलों के पाठ्यक्रम में बदलाव हों और बताया जाए कि इस तरह के टेस्ट रेप पीड़िता या यौन शोषण की पीड़िता का चेक अप करने के लिए नहीं सुझाए जाएँगे।

बता दें कि साल 2013 में भी टू फिंगर टेस्ट को असंवैधानिक करार दिया गया था। लिलु राजेश वर्सेज हरियाणा स्टेट केस में सर्वोच्च न्यायालय ने टू फिंगर टेस्ट को असंवैधानिक बताया था। कोर्ट ने इसे दुष्कर्म पीड़िता की निजता और उसके सम्मान का हनन करने वाला करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि टू फिंगर, शारीरिक और मानसिक चोट पहुँचाने वाला टेस्ट है।

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए बैन के बाद भी ऐसी खबरें आती थीं कि दुष्कर्म पीड़िताओं के साथ इस तरह के टेस्ट किए जा रहे हैं। इसलिए 2019 में इस संबंध में दोबारा कोर्ट में शिकायत हुई। याचिका में बताया गया था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी ये टेस्ट हो रहा है। इसलिए जो भी डॉक्टर ये टेस्ट करता पाया जाए उसका लाइसेंस रद्द हो जाना चाहिए।

मालूम हो कि टू-फिंगर टेस्ट में पीड़‍िता के प्राइवेट पार्ट में एक या दो उंगली डालकर उसकी वर्जिनिटी टेस्‍ट होती है। इससे पता लगाया जाता है कि महिला के साथ शारीरिक संबंध बने या नहीं। इस टेस्ट में महिला की वजाइना की मांसपेशियों के लचीलेपन को देखा जाता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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