केरल के कोच्चि में सेंट मैरी कैथेड्रल बेसिलिका में रविवार (27 नवंबर, 2022) को ‘होली मास’ की प्रक्रिया को लेकर दो समूहों के बीच हिंसक टकराव देखा गया था। बाद में टकराव इतना बढ़ गया कि 35 चर्चों को बंद करना पड़ा।
आर्कबिशप एंड्रयूज ताज़थ को ‘होली मास’ प्रक्रिया का विरोध कर रहे ईसाइयों ने बेसिलिका में प्रवेश करने से रोक दिया था। वहीं अनुयायियों के एक अन्य समूह ने चर्च का ताला तोड़ने का प्रयास किया, जिससे तनाव और बढ़ गया। कथित तौर पर, हिंसक प्रदर्शनकारियों ने चर्च की संपत्ति को भी नुकसान पहुँचाया। बढ़ते तनाव के मद्देनजर, पुलिस ने हस्तक्षेप किया और विरोध करने वाले समूहों को चर्च खाली करने के लिए कहा। इसके बाद स्थिति सामान्य होने तक चर्च पर ताला लगा दिया गया।
हालाँकि, हिंसक विरोध खत्म नहीं हुआ। ‘दैनिक भास्कर’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, विभिन्न ईसाई संगठनों के हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद 35 चर्चों को बंद कर दिया गया है। दरअसल, ईसाई समुदाय की मान्यता है कि गॉड ने 6 दिन में दुनिया को बनाया था और 7वें दिन आराम किया था। इसी वजह से ईसाई भी रविवार को ईसा मसीह की पूजा करते हैं। इसी पूजा को ‘होली मास’ कहा जाता है।
रोमन कैथोलिक चर्च की स्थानीय विंग सिरो मालाबार ने निर्देश जारी करते हुए कहा कि इसकी प्रैक्टिस के दौरान पादरी और भक्तों का मुँह पूर्व दिशा की ओर होगा, लेकिन केरल के मॉडर्न कैथोलिक ईसाइयों का दावा है कि ये बात कहीं नहीं लिखी है। इससे अनुयायी पादरी को न तो देख पाते हैं और न ही उससे संवाद कर पाते हैं। इनका दावा है कि हम पादरी को भगवान के रूप में देखते हैं। भगवान हमारी तरफ नहीं देखे, ये बात ठीक नहीं है।
अल्माया मुन्नेट्टम संगठन का कहना है कि हमने पोप फ्रांसिस से अनुमति ली थी कि हमारे चर्च में लोगों की ओर देखकर ही प्रार्थना होगी, लेकिन अब हम पर नया आदेश मानने का दबाव बनाया जा रहा है। साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि ये आदेश वापस नहीं लिया गया तो रोमन कैथोलिक चर्च को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। अगस्त 2021 में, सिरो मालाबार कैथोलिक चर्च के धर्मसभा ने अपने चर्चों में ‘होली मास’ आयोजित करने की एक समान विधि लागू करने का निर्णय लिया था। यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि ईसाइयों के बीच ‘होली मास’ पूजा की सबसे अच्छी प्रक्रिया मानी जाती है।
ईसाई समुदाय के विशेषज्ञों के मुताबिक, नियम ये कहता है कि प्रार्थना के दौरान पादरी को आधे समय अनुयायियों की ओर देखना चाहिए। बाकी समय पूर्व दिशा की ओर देखना चाहिए। हालांकि, मॉडर्न ईसाइयों ने इसे मानने से भी इनकार कर दिया। उनका कहना है कि 50 साल से जो प्रथा चली आ रही है, वही चलेगी।