वसंत पंचमी 2023 में गुरुवार (26 जनवरी, 2023) को है। मध्य प्रदेश के धार में एक जगह है – धार। यहाँ वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती, यानी वाग्देवी की पूजा होती है। इस भोजशाला की खासियत ये है कि इस्लामी आक्रांताओं ने इसे जम कर नुकसान पहुँचाया, जिसके बाद मुस्लिम इस पर अपना आधिपत्य मानते हैं। भोजशाला की माँ वाग्देवी की प्रतिमा 114 साल से लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम ग्रेट रसल स्ट्रीट में रखी हुई है।
अंग्रेजों ने सन् 1875 में खुदाई के बाद इस प्रतिमा को निकाला था, जिसे मुगलों ने आक्रमण कर के खंडित कर डाला था। लंदन से इंटरनेशनल बिजनेस की पढ़ाई कर रहे धार के कृष पाल ने इस प्रतिमा को देखने के बाद ‘दैनिक भास्कर‘ को बताया है कि भोजशाला को लेकर कई बार हिंसा और दंगे भी हुए हैं। ‘भोज उत्सव समिति’ आज़ादी के बाद से ही इस प्रतिमा को ब्रिटेन से वापस लाने के लिए संघर्ष कर रही है। हिन्दुओं ने इसके लिए लाठियाँ खाई हैं।
फ़िलहाल इस प्रतिमा को छूने की अनुमति नहीं है, लेकिन वहाँ इस बारे में जानकारी चस्पाई गई है। ‘भोज की नगरी नरेशचंद्र नगरी विद्याधरी शांभरी… अर्थात राजा भोज की नगरी की विद्या की देवी’ – प्रतिमा के पास ये लिखा हुआ है। ये 1034 ईस्वी का ही शिलालेख है। म्यूजियम में इस प्रतिमा को ‘देवी अम्बिका’ बताया गया है। कृष पाल ने जब इसे देखा तो घर पर वीडियो कॉल कर सबको दर्शन कराए, उनकी माँ ने तो दण्डवत प्रणाम किया।
1995 में यहाँ एक विवाद हुआ था, जिसके बाद मंगलवार को हिन्दू और शुक्रवार को मुस्लिम यहाँ आने लगे। 12 मई, 1997 को जिला प्रशासन ने आम लोगों को इसमें आने से प्रतिबंधित कर दिया। लेकिन, इसके 3 महीने बाद इसे हटा दिया गया। 18 फरवरी, 2003 में भी यहाँ हिंसा हुई। हिन्दुओं को बगैर फूल-माला मंगलवार को पूजा की अनुमति मिली। 2013 में यहाँ सरस्वती पूजा के दिन और 2016 में नमाज़ के बाद यहाँ माहौल बिगड़ गया था।
2003 में पर्यटकों के लिए भोजशाला को खोल दिया गया। भोजशाला में ढोल-झाँझ और मजीरे के साथ हिन्दू हर मंगलवार पूजा करते हैं। शुक्रवार को मुस्लिम यहाँ नमाज़ पढ़ते हैं। सन् 1034 में परमार शासक राजा भोज ने इसके निर्माण करवाया था, ज्ञान की देवी की आराधना के लिए। नालंदा-तक्षशिला की तरफ यहाँ भी एक आवासीय संस्कृत विश्वविद्यालय हुआ करता था। माघ, बाणभट्ट, कालिदास, भवभूति, भास्कर भट्ट, धनपाल और मानतुगाचार्य जैसे विद्वान अध्ययन करते थे।
यहाँ की दीवारों और स्तंभों पर देवी-देवताओं की आकृतियाँ उकेरी गईं। राजा भोज स्वयं 72 कलाओं और 36 तरह की आयुध विज्ञान के जानकर थे। कई मंदिर, तालाब और विद्यालय उन्होंने बनवाए हैं। 271 वर्षों तक भोजशाला ज्ञान का केंद्र बना रहा। सन् 1269 में कमाल मौलाना यहाँ आकर बसा। ठीक वैसे ही, जैसे अजमेर में पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ माहौल बनाने के लिए ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती को बसाया गया था।
सन् 1305 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण कर के भोजशाला को नुकसान पहुँचाया। सन् 1401 में दिलावर खाँ गोरी ने यहाँ आक्रमण किया। सन् 1514 में महमूद खिलजी ने आक्रमण किया। उसने भोजशाला को मस्जिद बनाने की कोशिश की। कमाल मौलाना की मौत अहमदाबाद में हुई थी, लेकिन खिलजी ने उसका मकबरा धार में बनवा डाला। कहते हैं, प्रथम आक्रमण के समय 1400 विद्वानों ने बलिदान दिया था। महमूद खिलजी के आक्रमण के समय राजपूत सरदार मेदिनी राय के नेतृत्व में वनवासियों की फ़ौज ने लड़ाई लड़ी थी।
1977 के बाद से मंदिर परिसर में नमाज़ शुरू कर दी गई। 12 मई, 1997 को एक फैसला आया। तब दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश की कॉन्ग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उन्होंने भोजशाला में हिन्दुओं के प्रवेश पर पूर्ण प्रतिबंध (वसंत पंचमी को छोड़ कर) लगा दिया और मुस्लिमों को साल भर नमाज़ पढ़ने की अनुमति दे दी।
भोजशाला सज रही है वसन्त उत्सव के लिए……..#भोजशाला_में_वाग्देवी pic.twitter.com/6ByCzf56Z7
— निलेश कटारा झाबुआ (@NKHinduMP45) January 25, 2023
18 फरवरी, 2003 को भोजशाला में प्रवेश के लिए संघर्ष कर रहे हिन्दुओं पर लाठीचार्ज किया गया। इसके अगले दिन पुलिस की गोली से 3 लोग मारे गए और 1400 लोगों पर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की गई। आखिरकार 8 अप्रैल, 2003 में हिन्दुओं को कई शर्तों के साथ पूजा का अधिकार मिला। हाईकोर्ट में अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने याचिका डाली है, लेकिन 9 महीने से किसी भी पक्ष ने नोटिस का जवाब नहीं दिया है।
‘भोज उत्सव समिति’ परिसर के वीडियो सर्वे की माँग कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान जब धार आए थे, तब भी उनसे प्रतिमा वापस लाने की माँग की गई थी। इस बार भी वसंत पंचमी के मौके पर शोभा यात्रा, आरती, यज्ञ, वेदारंभ संस्कार, मातृशक्ति सम्मेलन, सत्याग्रह पूजन और कन्या पूजा का कार्यक्रम है, जो लगभग एक सप्ताह चलेगा। ऐसे में सतर्क प्रशासन ने भी सुरक्षा कड़ी कर दी है।