बिहार के बेगूसराय में मारुति कंपनी के शोरूम के संचालकों पर सशस्त्र बल के एक पूर्व कॉन्स्टेबल (General Duty) ने गलत व्यवहार किए जाने के आरोप लगाए हैं। CRPF में सेवा दे चुके रॉबिन्स सिंह दिव्यांग हैं। उनके दोनों पाँव नहीं हैं। नक्सलियों द्वारा किए गए एक ब्लास्ट के कारण उन्हें ये क्षति पहुँची। अर्थात, देश के लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए उनके दोनों पैर चले गए। आइए, बताते हैं कि पूरा मामला क्या है।
25 फरवरी, 2021 को झारखंड के गुमला में नक्सलियों ने एक IED ब्लास्ट किया था। ऐसी घटनाओं के तुरंत बाद बलिदानियों और घायलों के लिए बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं, नेता लोग वादे करते हैं और बड़ी संख्या में लोग सड़क पर उतर कर उनकी बहादुरी को सलाम करते हैं। लेकिन, समय बीतने के साथ उनकी या उनके परिवार की क्या स्थिति है – कोई पूछने भी नहीं जाता। उससे भी बड़ी दुःख की बात ये है कि उन्हें जानबूझ कर परेशान किया जाता है।
गुमला IED ब्लास्ट में रॉबिन्स कुमार ने खो दिए थे अपने दोनों पैर
गुमला जिले के चैनपुर प्रखंड स्थित कुरुमगढ़ थाना क्षेत्र के सिविल रोडेंग गाँव के जंगल में उक्त आईईडी ब्लास्ट हुआ था। इससे पहले CRPF और जिला पुलिस की नक्सलियों के साथ मुठभेड़ भी हुई थी। इसके बाद चलाए गए तलाशी अभियान के दौरान ये घटना हुई। झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता भी घायल रॉबिन्स कुमार को देखने पहुँचे थे। इलाज के लिए उन्हें हैलीकॉप्टर से राँची भेजा गया था। रॉबिन्स उस समय सीआरपीएफ में कॉन्स्टेबल जीडी के रूप में कार्यरत थे।
इस घटना के बाद रॉबिन्स सिंह को आर्टिफिसियल पाँव भी लगाए गए थे। सरकार की तरफ से भी उन्हें सहायता मिली थी। दिव्यांग होने के कारण रॉबिन्स कुमार दौड़-धूप करने की स्थिति में भी सक्षम नहीं है, ऐसे में मारुति शोरूम द्वारा उन्हें सरकारी योजना का लाभ नहीं दिया जा रहा है। ये सब इसके बावजूद किया जा रहा है, जब उनके पास पुख्ता दस्तावेज भी मौजूद हैं। ऊपर से उनके साथ एकदम रूखा व्यवहार किया जा रहा है।
दिव्यांगों के केंद्र सरकार की योजना, 10% GST छूट के साथ ही ले सकते हैं ‘Adapted Vehicles’
सबसे पहले उस योजना के बारे में बताते हैं, जिसके लाभ के वो पात्र हैं। इस योजना के तहत उन्हें गाड़ी खरीदने के दौरान 10% छूट मिलनी चाहिए। बता दें कि केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय लोगों के जीवन को आसान बनाने (Ease Of Living) की दिशा में ये योजना लेकर आया है। इसके तहत ‘Orthopedic Physical Disability’ से पीड़ित व्यक्ति को गाड़ी खरीदने के दौरान GST में छूट मिलती है। इसके लिए मंत्रालय की तरफ से एक प्रमाण-पत्र (Certificate) जारी किया जाता है, जिसके लिए मोदी सरकार ने एक पोर्टल भी लॉन्च किया है।
इस पोर्टल पर बताया गया है कि किस तरह के कारों के लिए ये योजना लागू होती है और खरीददार को 28% की जगह मात्र 18% जीएसटी देनी होती है। वाहन खरीदने से पहले इसके लिए आवेदन करना होता है, क्योंकि इसमें रिफंड की कोई सुविधा नहीं है। विशिष्ट दिव्यांगता प्रमाण-पत्र या दिव्यांगता प्रमाण-पत्र न होने की स्थिति में सिविल सर्जन या ऑर्थोपेडिक डॉक्टर के हस्ताक्षर वाला प्रमाण-पत्र भी चलेगा, जिस पर पंजीकरण संख्या दर्ज हो।
साथ ही इसमें ये भी बताया गया है कि अगर कार विक्रेता अथवा RTO अगर इस प्रमाण-पत्र के होने के बावजूद इस योजना का लाभ नहीं देता है, तो ‘भारतीय ऑटोमोबाइल विक्रेता संघ (FADA)’ या केंद्रीय सड़क, परिवहन एकत्व राजमार्ग मंत्रालय को शिकायत की जा सकती है। यदि खरीद किए बिना ही प्रमाण-पत्र की वैधता समाप्त हो जाती है, तो इसे आगे बढ़ाने की प्रक्रिया के लिए भी आवेदन करने की व्यवस्था है। हाल ही में सरकार ने फैसला लिया कि ऐसे प्रमाण-पत्रों की वैधता 2 वर्षों के लिए बढ़ा दी जाए।
रॉबिन्स कुमार को इस दस्तावेज को बनवाने में 6 महीने का समय लगा। उन्होंने बेगूसराय स्थित ‘G S Motors’ नामक दुकान से बलेनो गाड़ी खरीदने को लेकर बात भी कर ली थी। उन्होंने आश्वासन दिया था कि एक बार दस्तावेज आ जाने के बाद वो गाड़ी देने के लिए तैयार हैं। लेकिन, जब उक्त रिटेलर के नाम से दस्तावेज बन कर आ गया, उसके बढ़ उन्होंने गाड़ी बुक करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उनके पोर्टल पर ये सब नहीं दिखा रहा है।
असल में ये दस्तावेज किसी खास रिटेलर के नाम से बनवाया जाता है, जिसका मतलब है कि किसी अन्य रिटेलर से इसके आधार पर गाड़ी की खरीद नहीं की जा सकती। उसके लिए फिर अलग से दस्तावेज बनवाना होगा। रॉबिन्स कुमार ने बताया कि पिछले 15 दिनों से गाड़ी बुक करने में टालमटोल की जा रही है। जब उन्होंने कंज्यूमर फोरम में जाने की चेतावनी दी, तब ‘G S Motors’ के संचालकों ने कहा कि जहाँ जाना है जाइए।
पीड़ित रॉबिन्स कुमार बेगूसराय के खम्हार बभनगामा के रहने वाले हैं। इसे रतनमन बभनगामा के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने इस सम्बन्ध में ऑपइंडिया से बात करते हुए बताया, “मैंने मारुति कंपनी में भी शिकायत की, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। इसके बाद मैंने अपने दोस्तों को इस बारे में बताया। मैंने जयपुर स्थित मारुति रिटेलर से ‘G S Motors’ के संचालक की बात कराई। उन्होंने इस नियम के बारे में बताया गया। फोन कॉल पर उन्होंने आश्वासन दिया, लेकिन बाद में फिर पलट गए।”
उन्होंने कहा कि मंत्रालय से इसके बाद कोई बात नहीं हुई, दस्तावेज देने के बाद उनका काम ख़त्म हो गया। इस दस्तावेज को प्राप्त करने और दौड़-धूप में उनके भांजे ने उनका सहयोग किया। रॉबिन्स कुमार पूछते हैं कि अगर घर में रहने के बावजूद उन्हें इस सरकारी नियम के बारे में पता है तो इस इंडस्ट्री में काम कर रहे लोगों को कैसे नहीं पता होगा? उनका स्पष्ट मानना है कि रिटेलर जानबूझकर उनके साथ ऐसा कर रहा है।
केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने दिव्यांगों को ड्राइविंग लाइसेंस देने के लिए भी अलग से व्यवस्था की है। इसके लिए विशेष दिशानिर्देश भी जारी किए गए हैं। वहीं भारी उद्योग मंत्रालय ने 40% से अधिक दिव्यांगता वाले लोगों के लिए GST में छूट वाली व्यवस्था की। अगर कोई व्यक्ति दिव्यांग है और गाड़ी चलाने की स्थिति में नहीं है, उसे भी छूट का लाभ देने का प्रावधान है। वो गाड़ी चलाने के लिए ड्राइवर रख सकता है।
रॉबिन्स कुमार को जारी किए गए दस्तावेजों की प्रति ऑपइंडिया के पास मौजूद है। उनके पास ‘Unique Disability’ आईडी कार्ड भी है। इसमें स्पष्ट लिखा है कि वो 100% ‘Locomotor Disability’ से पीड़ित हैं। इसका अर्थ है हड्डियों या मांसपेशियों में ऐसी दिव्यांगता जिससे उनका मूवमेंट ही न हो सके। उनके पास गुमला सदर अस्पताल द्वारा जारी किया गया दिव्यांगता प्रमाण-पत्र भी है। ‘वाहन’ की वेबसाइट पर भी उन्हें जारी दस्तावेज को चेक किया जा सकता है।
शिकायत किए जाने के बाद रॉबिन्स कुमार ने ‘मारुति’ कंपनी में शिकायत भी दर्ज कराई थी, जिसके बाद उन्हें कस्टमर अधिकारी की तरफ से एक कॉल आया। शिकायत करने के कुछ दिन बाद जब उन्होंने ट्विटर पर शिकायत की, तब ये फोन कॉल उन्हें आया। इस कॉल पर उनसे सारी जानकारी ली गई। साथ ही आश्वासन दिया गया कि उनकी समस्या का निपटारा हो जाएगा। हालाँकि, अब तक की सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आए हैं।
जिस ‘G S Motors Pvt Ltd’ द्वारा उन्हें परेशान किया जा रहा है, वो बेगूसराय में राष्ट्रीय राजमार्ग 31 पर अमरपुर-कीरतपुर मार्ग में HP पेट्रोल पंप के पास स्थित है। पीड़ित रॉबिन्स कुमार ने DTO (जिला परिवहन पदाधिकारी) से भी बात की, जिन्होंने बताया कि गाड़ी बुक किए जाने के बाद ही वो इसे GST छूट के लिए इसे आगे बढ़ाएँगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक रिटेलर बुकिंग नहीं लेता, उनकी तरफ से भी कुछ नहीं किया जा सकता।
क्या कहना है ‘G S Motors’ का
इस प्रकरण के सम्बन्ध में हमने जीएस मोटर्स के ‘रिलेशनशिप मैनेजर (RM)’ ब्रजकिशोर कुमार से बातचीत की। उन्होंने कहा कि इन्क्वायरी नंबर जिसके नाम से रहता है, वो सेल्समैन मामले को डील करता है। उन्होंने कहा कि सद्दाम नाम के सेल्समैन इस मामले को देख रहे थे और उनसे रॉबिन्स कुमार की बात हुई थी। ब्रजकिशोर ने कहा कि अगर सीनियर कह दें कि इस मामले में आपको इन्वॉल्व नहीं होना है तो इसका पालन करना पड़ता है।
हमने उनसे पूछा कि क्या उन पर उनके सीनियर का कोई दबाव था, तो उन्होंने इस बात से इनकार किया। हमने इस बारे में अधिक जानकारी के लिए सद्दाम को भी कॉल किया। उन्होंने इस बात से इनकार किया कि गाड़ी की बुकिंग नहीं की जा रही है। उन्होंने कहा कि प्रोसेस में लगा हुआ है और उनके सीनियर इस बारे में बात कर रहे हैं, क्लियर होते ही सब हो जाएगा। उन्होंने कहा कि ये नॉर्मल रजिस्ट्रेशन नहीं है, ये हट कर होता है और इसमें समय लगता ही है।
उन्होंने बताया कि रॉबिन्स कुमार ने उनसे शुरू में ही सारी जानकारी ली थी और उन्होंने तभी बता दिया था कि इसमें 2-3 महीने का वेटिंग होता है। इसके बाद रॉबिन्स कुमार ने पहले प्रमाण-पत्र बनवाने, फिर बुकिंग की बात कही। सद्दाम का कहना है कि दिव्यांग व्यक्ति को GST छूट संबंधी ये उनके करियर का पहला मामला है। उन्होंने कहा कि इसके बाद बहुत सारी प्रक्रियाएँ हैं और अलग लेवल से, अलग तरीके से इसे किया जाता है।
उन्होंने कहा कि कंपनी के रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट को ईमेल किया गया है और वहाँ से कुछ अपडेट आने के बाद ही प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने ये भी दावा किया कि आगे की कई प्रक्रियाएँ हैं, जो रिटेलर को भी पूरा करना है और ग्राहक को भी। हालाँकि, इन प्रक्रियाओं के बारे में वो स्पष्ट कुछ नहीं बता पाए। उन्होंने दावा किया कि सीनियर अधिकारी ऊपर बात कर रहे हैं। हमने सीनियर अधिकारी प्रशांत से भी बातचीत की।
उन्होंने इस प्रकरण के बारे में आपका पक्ष रखते हुए कहा, “इस केस में है तो कुछ भी नहीं। हमारे पास ‘Adapted Vehicles’ के लिए लाइसेंस है ही नहीं। ये प्राप्त करना डीलरशिप का ही काम है। इस तरह की गाड़ियाँ (जो दिव्यांगों के अनुकूल हो) बेचने के लिए लाइसेंस प्राप्त करने में समय लगता है। हम इसके लिए अप्लाई भी करने वाले हैं। DTO से हम मिलने भी जा रहे हैं। वहाँ से कुछ स्पष्ट हो जाए, तब पता चलेगा इसमें कितना समय लगेगा।”
उन्होंने दावा किया कि अगर बुकिंग लेने के बाद गाड़ी मँगवा भी ली जाती है तो भी वो डिलीवर नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि रॉबिन्स कुमार का एक टाइम फ्रेम है कि उन्हें इस अवधि में गाड़ी चाहिए। उन्होंने ये भी दावा किया कि उन्हें जानकारी दिए बिना उनकी एजेंसी के नाम से उन्होंने प्रमाण-पत्र जारी करवा लिया। उनका कहना है कि रजिस्ट्रेशन के लिए वो ऑथोराइज्ड भी नहीं हैं। प्रशांत कहना है कि उनकी एजेंसी के लिए भी ये इस तरह का पहला मामला है, इसीलिए उन्हें भी इसे समझने में थोड़ा समय लगा।
हालाँकि, रॉबिन्स कुमार इन आरोपों से इनकार करते हैं। उनका कहना है कि वो खुद गाड़ी देखने के लिए ‘G S Motors’ में गए थे और गाड़ी में बैठ कर चेक भी किया था कि उनके लिए सुविधाजनक है या नहीं। उनका कहना है कि सर्टिफिकेट बनवाने के लिए उन्हें डिटेल्स भी वहाँ उपलब्ध कराए गए थे। उन्होंने व्हाट्सएप्प चैट्स और ऑडियो कॉल्स का हवाला देते हुए बताया कि अब उन्हें कहा जा रहा है कि उनके पास अथॉरिटी नहीं है।