इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम 1937 को चुनौती देने वाली याचिका पर भारत के अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया है। याचिका में आईपीसी की धारा 494 की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी गई है। ‘हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड’ द्वारा जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसपर जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने यह आदेश जारी किया।
‘पिछले दिनों कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान ‘हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड’ के वकील अशोक पाँडे ने कहा कि धारा 494 हिंदू, बौद्ध, सिख और ईसाई धर्म के मानने वालों पर लागू होती है।’ इसके तहत यदि व्यक्ति अपने पत्नी के रहते दूसरा विवाह करता है तो उसे मान्य नहीं माना जाएगा। साथ ही व्यक्ति को सात साल की कैद की सजा और जुर्माना लगा दिया जाएगा लेकिन देश के मुस्लिमों पर यह धारा लागू नहीं होती।
Allahabad HC Issues Notice To Attorney General On PIL Against Muslim Personal (Shariat) Application Act, Section 494 IPC@ISalilTiwari reportshttps://t.co/jn6Sl852fC
— LawBeat (@LawBeatInd) March 25, 2023
अदालत को जानकारी दी गई कि आईपीसी की धारा 494 मुस्लिमों पर इसलिए लागू नहीं होताी क्योंकि उन्हें मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम 1937 के तहत सुरक्षा प्राप्त है। शरीयत अप्लीकेशन एक्ट मुस्लिम पुरुष को चार शादियाँ करने की इजाजत देता है। यह सीधे तौर पर धर्म के आधार पर भेदभाव का मामला है। जो कि संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। इसलिए आईपीसी की धारा 494 को असंवैधानिक करार दे कर निरस्त कर देना चाहिए।
याचिका कर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि मुस्लिमों को प्राप्त इस विशेषाधिकार की वजह से समाज में बलात्कार जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं। दौलतमंद और ताकतवर मुस्लिम कई शादियाँ कर रहे हैं जबकि गरीब मुस्लिमों को एक शादी भी नसीब नहीं हो रही, जिससे समाज में यौन अपराधों में वृद्धि हुई है। याचिका में कहा गया है कि अधिनियम 1937 महिलाओं को प्राप्त मौलिक और बुनियादी मानवाधिकारों का लिंग के आधार पर हनन करती है।
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने केंद्र सरकार को छह हफ्ते में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया। आईपीसी की धारा 494 की वैधता पर सवाल उठाए जाने पर कोर्ट ने अटार्नी जनरल को भी नोटिस जारी किया। कोर्ट ने कहा कि केंद्र की तरफ से जवाब दाखिल होने के बाद याचिका कर्ता को भी प्रत्युत्तर देने के लिए 2 हफ्ते का समय दिया जाएगा। अगली सुनवाई मई 2023 में होने की उम्मीद है।