हमास के आतंकी शनिवार (7 अक्टूबर, 2023) से ही इजरायल में कत्लेआम मचा रहे हैं। हर तरफ लोगों की लाशें बिखरी मिलीं। हमास के आतंकवादी जल, थल, वायु मार्ग से इजरायल में घुसे और जो भी सामने आया, उसे मारते गए। दर्जनों लोगों को बंदी बनाकर हमास के आतंकी गाजा पट्टी ले गए। शाम होते-होते इजरायल ने पलटवार किया। इजरायल ने योम किंपुर युद्ध के बाद पहली बार युद्ध की आधिकारिक घोषणा कर दी, और तब से लेकर अब तक उसने गाजा पट्टी का सीज तो डाला ही है, सैकड़ों हमास के लड़ाकों को मार डाला है।
इजरायल-हमास युद्ध को लेकर दुनिया दो खेमों में बँट गई है। फिलिस्तीन के समर्थन में सबसे ज्यादा हल्ला मचाने वाले देशों में पाकिस्तान भी एक है, जो खुद हजारों फिलिस्तीनियों की हत्याओं में भागीदार रहा है। अब आप सोच रहे होंगे कि पाकिस्तान तो फिलीस्तीन का समर्थन करता है? वो तो इजरायल को मान्यता भी नहीं देता। ऐसे में वो फिलीस्तीनियों को कैसे मार सकता है? तो इसका जवाब छिपा है ‘ब्लैक सितंबर’ के दो शब्दों में।
इसमें पाकिस्तान से ट्रेनिंग पाकर जॉर्डन की सेनाओं ने PLO (पलेस्टाइन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन) के लड़ाकों को तहस-नहस कर दिया था और अपनी जमीन पर उनका सफाया करते हुए अपनी सीमा से बाहर खदेड़ दिया था। ‘ब्लैक सितंबर’ की घटना 1970 की है, जब ‘फिलीस्तीन मुक्ति संगठन’ को जॉर्डन की जगह लेबनान शिफ्ट करना पड़ा था। आइए, बताते हैं कि किस तरह से पाकिस्तान ने हजारों फिलिस्तीनियों के कल्तेआम में अहम भूमिका निभाई।
क्या है ‘ब्लैक सितंबर’?
‘ब्लैक सितंबर’ 1970 में जॉर्डन में हुआ एक गृहयुद्ध था, जिसमें जॉर्डन की सेना और ‘फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन’ के बीच लड़ाई हुई थी। यह युद्ध 6-27 सितंबर तक चला और इसमें हजारों लोग मारे गए। युद्ध की शुरुआत तब हुई जब पीएलओ ने जॉर्डन की सरकार को चुनौती देने और जॉर्डन को एक फिलिस्तीनी राज्य बनाने की कोशिश की। पीएलओ ने जॉर्डन में कई हमले किए, जिसमें कई बेगुनाह लोग मारे गए। बता दें कि 2015 की जनगणना में कहा गया है कि देश की 9.5 मिलियन आबादी में से लगभग 6,34,000 फ़िलिस्तीनी हैं।
जॉर्डन की सेना ने पीएलओ के खिलाफ कार्रवाई करने का फैसला किया। 17 सितंबर को, जॉर्डन की सेना ने पीएलओ के ठिकानों पर हमला करना शुरू कर दिया। पीएलओ ने भी जवाबी हमले किए, जिसमें कई नागरिक मारे गए। युद्ध के अंत में, जॉर्डन की सेना ने पीएलओ को हराया। पीएलओ को जॉर्डन से निकाल दिया गया और फिलिस्तीनियों को अपने ठिकानों से हटने के लिए मजबूर किया गया। इसके बाद पीएलओ ने लेबनान को अपना ठिकाना बनाया। ‘ब्लैक सितंबर’ जॉर्डन के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस युद्ध ने फिलिस्तीनियों और जॉर्डन के बीच संबंधों को खराब कर दिया और मध्य-पूर्व में संघर्ष को बढ़ावा दिया।
पाकिस्तान ने जॉर्डन की सेना को दी थी ट्रेनिंग
‘ब्लैक सितंबर’ के लिए जॉर्डन की सेना को प्रशिक्षण पाकिस्तान ने दिया था। पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक ने जॉर्डन के शासक शाह हुसैन को युद्ध में निर्णायक सलाह दी थी। उन्हीं की सलाह से जॉर्डन की सेना को युद्ध जीतने में मदद मिली। जिया-उल-हक उस समय ओमान में पाकिस्तानी दूतावास में डिफेंस अटैचे के रूप में तैनात थे। उन्होंने शाह हुसैन से संपर्क किया और उन्हें सलाह दी कि जॉर्डन की सेना को पीएलओ के खिलाफ लड़ने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। जिया-उल-हक ने जॉर्डन की सेना को गश्ती, हवाई हमलों और शहरी युद्ध में प्रशिक्षण दिया।
इस प्रशिक्षण ने जॉर्डन की सेना को पीएलओ के खिलाफ लड़ने में काफी मदद की। 17 सितंबर को, जॉर्डन की सेना ने पीएलओ के ठिकानों पर हमला करना शुरू कर दिया। पीएलओ ने भी जवाबी हमले किए, लेकिन जॉर्डन की सेना ने अंततः पीएलओ को हराया। जिया-उल-हक की सलाह और प्रशिक्षण ने जॉर्डन की सेना को ब्लैक सितंबर युद्ध जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस युद्ध ने जॉर्डन और पाकिस्तान के बीच संबंधों को मजबूत किया।
ब्रिटिश-पाकिस्तानी लेखक तारिक अली ने अपनी पुस्तक ‘द ड्यूएल: पाकिस्तान ऑन द फ़्लाइट पाथ ऑफ़ अमेरिकन पावर’ में ब्लैक सितंबर के महत्व पर प्रकाश डाला है। वह एक इजरायली सैन्य कमांडर मोशे दयान का हवाला देते हैं, जिन्होंने कहा था कि इजरायल 20 वर्षों में जितने फिलिस्तीनियों को नहीं मार सकता था, उससे अधिक फिलिस्तीनियों को राजा हुसैन ने 11 दिनों में मरवा डाला था।”
‘ब्लैक सितंबर’ की घटना के पीछे की वजह क्या थी?
इजरायल पर 1948 में अरब देशों ने हमला कर दिया था। इस युद्ध में जॉर्डन की सेनाओं ने ‘वेस्ट बैंक’ का हिस्सा जीत लिया। जॉर्डन ने आधिकारिक तौर पर साल 1950 में वेस्ट बैंक को अपने देश में शामिल कर लिया और सभी फिलिस्तीनियों को अपने देश की नागरिकता दे दी। जॉर्डन ने फिलीस्तीन की आबादी को ध्यान में रखते हुए अपनी असेंबली में भी सीटें दे दी। इसके बाद इलाके में तनाव धीरे-धीरे फैलता गया।
फिलिस्तीनियों का रहनुमा बनने के चक्कर में मिस्र, जॉर्डन, सीरिया, इराक सभी ने अपनी-अपनी ताकत झोंक दी। इसके बाद आया साल 1967, जिसमें ‘सिक्स डे वॉर’ में इजरायल ने जॉर्डन की पूरी सेना को नष्ट करते हुए वेस्ट बैंक पर कब्जा कर लिया। फिलीस्तीनी भागकर जॉर्डन के अंदरुनी हिस्से में आ गए। वो फिर से इजरायल को खत्म करने के लिए एकजुट होने लगे।
साल 1968 में करामेह की लड़ाई हुई, जिसमें इजरायली सेना ने पीएलओ के ट्रेनिंग कैंपों पर धावा बोल दिया था। जॉर्डन की सेना ने पूरा सहयोग दिया, इसके बावजूद इजरायल ने पीएलओ के सारे कैंप नष्ट कर दिए, दर्जनों पीएलओ लड़ाकों को उन्होंने बंदी बना लिया। करामेह की लड़ाई में इजरायल को सैनिकों की संख्या की दृष्टि से काफी नुकसान हुआ। जॉर्डन और अरब देशों ने इसे फिलीस्तीन की जीत के तौर पर दिखाया।
जॉर्डन के शाह ने भी इस जीत का कोई क्रेडिट लेने की जगह ‘फिलीस्तीनी मुक्ति संगठन’ को ही क्रेडिट दिया। ये उनकी भूल साबित हुई, क्योंकि इसके बाद शुरू हुआ पीएलओ ( तब दुनिया का सबसे अमीर आतंकवादी संगठन) की हिंसाओं का दौर, जिसमें कई बार प्लेन भी हाईजैक किए।
यही नहीं, अब फिलीस्तीन के लड़ाके जॉर्डन को ही फिलीस्तीन बनाने पर अड़ गए। उन्होंने जॉर्डन के शाह की दो बार हत्या की नाकाम कोशिश की। इस दौरान इराक, सीरिया और जॉर्डन में पीएलओ से जुड़े संगठनों के 20 हजार से ज्यादा लड़ाके तैयार हो गए। लेबनान से लेकर कतर तक में लोगों पर लेवी लगाई गई, वसूली की गई और फिलीस्तीन के लड़ाकों को फंड दिया गया। इस दौरान पीएलओ में शामिल फतह के लड़ाकों (जिसकी अगुवाई खुद यासिर अराफात करते थे) ने जॉर्डन के शाह को हटाने की कोशिश की और जॉर्डन के शहरों पर ही कब्जे जमाने शुरू कर दिए। वो आम लोगों से टैक्स तक की वसूली करने लगे।
इन सबके बीच साल 1970 में 1 सितंबर को पीएलओ के लोगों ने तीन प्लेन हाईजैक किए और उनपर से यात्रियों को उतार कर उन्हें पूरी दुनिया की प्रेस के सामने धमाकों से उड़ा दिया। अब ये तय हो गया था कि जॉर्डन के शाह की कुर्सी चली जाएगी और पीएलओ पूरे देश पर कब्जा जमा लेगा, तो जॉर्डन के शाह ने पीएलओ के सफाए का अभियान चलाया। सितंबर 1970 में चले इसी अभियान को ‘ब्लैक सितंबर’ के नाम से जाना जाता है, जिसमें हजारों पीएलओ लड़ाकों की जान गई और उन्हें लेबनान में भागकर जाना पड़ा।
पाकिस्तान ने दी थी जॉर्डन की सेना को ट्रेंनिंग
1967 के छह दिवसीय युद्ध के बाद जॉर्डन की कमर टूट गई थी। उसने पाकिस्तान से अपनी सेना के पुनर्गठन में मदद माँगी थी। सिर्फ जॉर्डन ही नहीं, बल्कि सीरिया, इराक ने भी ऐसी ही मदद माँगी थी। पाकिस्तान ने जॉर्डन की सेना को पूरी ट्रेनिंग दी। जिया उल हक उसी दस्ते में शामिल अधिकारी थे।
खास बात ये है कि जब जॉर्डन की सेना पीएलओ के सफाए का अभियान चला रही थी, तभी सीरिया के इबलिस शहर से जॉर्डन पर धावा बोलने की तैयारी कर रहे पूरे दस्ते की जाँच के लिए जिया उल हक को जॉर्डन के शाह ने भेजा। उन्होंने शाह को जो सलाह दी, वो निर्णायक साबित हुई। शाह से उन्होंने एयरफोर्स की तैनाती के लिए कहा था और सीरिया से आने वाले दस्ते को रोकने के लिए खुद जॉर्डन की सेना की अगुवाई की थी। इस बात की तस्दीक सीआईए के अधिकारी जैक ओ’कॉनेल ने अपनी किताब में की है।
‘ब्लैक सितंबर’ की वजह से जिया उल हक को मिला ईनाम, बाद में बने तानाशाह
‘ब्लैक सितंबर’ की घटना के बाद जॉर्डन के शाह हुसैन ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के सामने जिया उल हक की जमकर तारीफ की। जिया-उल-हक की ‘ब्लैक सितंबर’ युद्ध की उपलब्धियों के बारे में पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बारे में बताया, जिसके बाद भुट्टो ने जिया-उल-हक को ब्रिगेडियर से मेजर जनरल के पद पर पदोन्नत कर दिया।
जुल्फिकार अली भुट्टो के पूर्व सलाहकार राजा अनवर ने अपनी किताब ‘द टेररिस्ट प्रिंस’ (पेज नंबर -11) में प्रधानमंत्री भुट्टो के ग़लत फ़ैसलों के बारे में लिखा, कि अगर शाह हुसैन उस अवसर पर जिया-उल-हक की सिफ़ारिश न करते तो निश्चित रूप से जिया-उल-हक का सैन्य कैरियर ब्रिगेडियर के रूप में ही समाप्त हो जाता। उन्होंने लिखा है, “कहा जाता है कि जिया-उल-हक ने ‘ब्लैक सितंबर’ नरसंहार में भाग लिया था और अपनी सैन्य और राजनयिक ज़िम्मेदारियों की उपेक्षा की और नियमों का उल्लंघन किया था। लेकिन, शाह हुसैन की सिफ़ारिश ने शायद प्रधानमंत्री भुट्टो को यह संकेत दिया कि जिया-उल-हक उनके प्रति अपनी वफ़ादारी साबित करने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं।”
इस गलती की सजा भुट्टो को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी और पाकिस्तान आज जिस कट्टरपंथी युग में पूरी तरह से धँस चुका है, वो भी इसी गलती की वजह से ही है। क्योंकि भुट्टो को अंदाजा नहीं था कि जिस जिया उल हक को वो अपने ‘वफादार’ के तौर पर आगे बढ़ा रहे थे, वही उनकी बर्बादी का कारण बनेगा। जिया उल हक ने बाद में तख्तापलट करके भुट्टो को जेल में डलवा दिया और फिर फाँसी लगवा दी, ऐसा उन्होंने तानाशाह और राष्ट्रपति बनकर किया।