वामपंथी मानसिकता से ग्रसित मीडिया-महानुभावों को मुद्दे नहीं मिलते आज-कल। लेकिन ख़बरों में बने रहने की लालसा भी नहीं जाती। ऐसे में बेचारे झूठ की माला फेरते हैं और धरे जाते हैं। यहाँ तो खैर रगड़ दिए जाते हैं।
यह राहुल गाँधी, सोशल मीडिया के वामपंथी ट्रोल और फुल टाइम प्रचारक पत्रकारों द्वारा प्रचारित एक और झूठ, उनकी कभी न खत्म होने वाली महाझूठ और प्रोपेगंडा का हिस्सा है।
पुलवामा हमले के बाद, कई पत्रकारों ने फ़र्ज़ी ख़बर फैलाई थी कि विभिन्न स्थानों पर कश्मीरी मुस्लिम छात्रों पर दक्षिणपंथी समूहों द्वारा हमला किया जा रहा है। इस तरह के निराधार दावों के कारण लोगों ने सोशल मीडिया पर उनकी आलोचनाएँ भी की थीं।
विवादस्पद NDTV की पहचान अब अक्सर फ़ेक न्यूज़ को प्रचारित करने की बन चुकी है। NDTV ने अपनी वेबसाइट में एक ऐसी भ्रामक हेडलाइन को प्रमुखता से जगह दी जिसमें यह दर्शाया गया कि पीएम मोदी ने वंदे भारत ट्रेन-18 का मजाक उड़ाते हुए लोगों के ख़िलाफ़ सज़ा की माँग की।
ऑल्ट न्यूज़ के कट्टर भक्त @zoo_bear ने अपने भक्तों से उसी ‘क्रॉप्ड वीडियो’ को री-ट्वीट करने का आग्रह किया, ताकि सांप्रदायिक द्वेष को भड़काया जा सके और इस फ़र्ज़ी ख़बर को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके।
दैनिक जागरण में रुपए की जिस ख़बर का हवाला देते हुए उन्होंने एक लंबा फर्जी लेख ''मीडिया विजिल'' में लिख मारा है, वह पूरी स्टोरी विशेषज्ञों के हवाले से लिखी गई है। काश! रवीश अंग्रेजी जानते और ऑरिजिनल आर्टिकल पढ़ पाते।
पाठकों की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए ऑपइंडिया ने अपने फ़ैक्ट चेक के माध्यम से यह कोशिश की थी कि नवभारत टाइम्स जैसे नामी अख़बार अपने पाठकों को सही जानकारी से अवगत कराएँ।
सोशल मीडिया के जमाने में मीडिया कुछ भी बोल-लिख-दिखा दे और ग़लतफ़हमी पैदा कर दे, यह अब संभव नहीं। कुछ ऐसे भी पाठक होते हैं जो ख़बरों को गंभीरता से पढ़ते हैं और उटपटांग लगने पर अपनी प्रतिक्रिया भी दर्ज करते हैं।
जब तक इन्हें छीलेंगे नहीं, ये अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आएँगे। इसलिए, इनके ट्वीट तो छोड़िए, एपिडर्मिस, इन्डोडर्मिस से लेकर डीएनए तक खँगालते रहिए क्योंकि बाय गॉड, ये लोग बहुत ही बेहूदे क़िस्म के हैं।