बनारस की होली भी बनारस के मिजाज के अनुसार ही अड़भंगी और निराली है। यह दुनिया का इकलौता शहर जहाँ अबीर, गुलाल के अलावा धधकती चिताओं के बीच चिता-भस्म से होली खेली जाती है। घाट से लेकर गलियों तक आती-जाती चिताओं के साथ मृत्यु को भी उत्सव का स्वरुप मानते हुए होली के हुड़दंग का हर रंग मनमोहक होता है।
महादेव की नगरी काशी की होली भी अड़भंगी शिव की तरह ही निराली है। काशी में रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाश्मशान में होली खेली जाती है। यह दुनिया की सबसे अनूठी होली है। महादेव के भक्त, अनुयाई, शैव, शाक्त, अवघड़ सब भूतभावन भगवान के साथ इस होली में शामिल होते हैं।
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष रंगभरी एकादशी बुधवार (मार्च 24, 2021) थी और महाश्मशान की होली गुरुवार (मार्च 25, 2021) को महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर मनाई जा रही है।
ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शिव रंगभरी एकादशी के दिन माता पार्वती और पुत्र गणेश के साथ गौना कराकर काशी लौटते हैं तो उनका स्वागत सभी लोकों के लोग करते हैं लेकिन उसमें शिव के भूत-पिशाच भक्त गण और दृश्य-अदृश्य आत्माएँ मौजूद नहीं होतीं।
इसलिए, रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाश्मशान में महादेव अपने भक्तों के साथ भस्म से होली खेलते हैं। यह भस्म कोई साधारण भस्म नहीं होती, बल्कि इंसान के शव जलने के बाद पैदा होने वाली राख होती है।
बनारस में कहा जाता है कि महादेव कितनी भी मस्ती में क्यों न हों लेकिन अपने दृश्य-अदृश्य उन गणों को उत्सव में बिसरा दें यह हो नहीं सकता। वे गण जो थोड़े डरावने हैं।
वही जो बिना बुलाए जब शिव बारात में सब चलें गए तो द्वारचार में माँ गौरा की माँ ऐसी बारात और बारातियों को देखकर बेहोश हो गई थीं। उनके साथ शिव आज उत्सव मनाते हैं।
इसलिए, कहा जाता है कि गौना में ऐसे भूत-पिचास, अदृश्य आत्माएँ थोड़ी दूरी बना लेती हैं ताकि सब सकुशल संपन्न हो जाए। आज महाश्मशान मणिकर्णिका में ऐसे ही गणों का उत्सव है।
अब अपने उन्हीं गणों के लिए भूतभावन भगवान महादेव गौना के अगले दिन यानी रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद महाश्मशान मणिकर्णिका पर स्वयं अपने दृश्य-अदृश्य गणों के साथ उत्सव मनाने अर्थात होली खेलने आते हैं।
भारतीय सनातन संस्कृति की इसी परंपरा पर बात करते हुए पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित छन्नूलाल मिश्र बताते हैं कि बनारस की होली भी बनारस के मिजाज के अनुसार ही अड़भंगी है।
वह कुछ याद करते हुए गुनगुनाने लगते हैं कि खेले मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी, भूत पिशाच बटोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी…। वह कहते हैं कि लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के चिता भस्म भर झोरी… दिगंबर खेले मसाने में होरी….।
आखिर ऐसा दृश्य कहाँ देखने को मिलेगा कि भगवान शिव के गण अपने झोली में चिता भस्म की राख भरकर मन भर होली खेलकर तृप्त हो जाते हैं। उनका कहना है कि काशी की होली में राग और विराग दोनों नजर आते हैं।
पंडित छन्नूलाल मिश्र ठहरकर कुछ समझाते हुए आगे गुनगुनाते लगते हैं कि गोप न गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना कवनो बाधा, ना साजन ना गोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी…।
भावविभोर हो वह कह उठते हैं कि शिव की नगरी काशी की होली की बात ही निराली है। जब महादेव महाश्मशान में उतरते हैं तो भूतनाथ की मंगल-होरी, देखि सिहाएं बिरिज के गोरी, धन-धन नाथ अघोरी… दिगंबर खेलैं मसाने में होरी।
काशी मोक्ष की नगरी है और मान्यता है कि यहाँ भगवान शिव स्वयं तारक मंत्र देते हैं।
लिहाजा यहाँ पर मृत्यु भी उत्सव है और आज चिता की भस्म को उनके गण अबीर और गुलाल की भाँति एक दूसरे पर फेंककर सुख-समृद्धि-वैभव संग शिव की कृपा पाने का मनोरथ करते हैं।
(तस्वीर और वीडियो साभार: डॉ. मुनीश कुमार मिश्रा)