प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मातृ वंदना योजना को लेकर द हिन्दू अख़बार में आज एक ओपेड ‘द मदर ऑफ़ ऑल इश्यूज’ छपा। इस आर्टिकल में बताई गई जानकारी, ग्राफ से लेकर इसकी हेडलाइन तक संदिग्ध है। जब द हिन्दू में छपे इस लेख की जाँच विस्तार से की गई तो मालूम चला कि इसमें बहुत कुछ भ्रामक कहा गया है, इनके द्वारा दी गई जानकारी पर नज़र डालें तो भारत में बच्चों के पैदा होने की सालाना दर 270 लाख है, जिनमें आधे से भी कम केस वह हैं जहाँ कोई स्त्री पहली बार माँ बनी है। इस तरह के लोगों की तादाद 123 लाख यानी 1.2 करोड़ बताई गई है। इसका मतलब यह है कि आर्टिकल के अनुसार इस साल देश में करीब 1.2 करोड़ महिलाएँ पहली बार माँ बनी हैं। इस लिहाज़ से उन सभी को पीएम की मातृ वंदना योजना यानी पीएमएमवीवाई से लाभ पहुँचना चाहिए।
मगर इन 1.2 करोड़ महिलाओं के बीच सिर्फ 60 लाख ही ऐसी हैं जिन तक यह मदद पहुँच सकी है, रिपोर्ट के मुताबिक इन 60 लाख में भी सिर्फ 38 लाख ऐसी महिलाएँ हैं जिन्हें इस स्कीम के तहत पूरा पैसा मिल सका है। यह संख्या कुल महिलाओं की सिर्फ 31 फीसदी हैं।
दरअसल इस लेख को लिखने वाले और कोई नहीं बल्कि सोनिया गाँधी के करीबी ज्यां द्रेज़ हैं। ज्यां 2010 से लेकर 2014 तक मनमोहन सिंह के नेतृत्त्व वाली यूपीए सरकार में एनएसी के सदस्य भी रह चुके हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इन भ्रामक तथ्यों का खंडन किया जाना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि इस आर्टिकल को लिखने वाले से लेकर एडिट कर छपने भेजने वाले तक के पास यह ज्ञान भी नहीं था कि इस स्कीम का लाभ उठाने के लिए सभी 1.2 करोड़ महिलाओं में नियमानुसार सब इसका फायदा उठाने के लिए अधिकृत नहीं हैं। इस बात को जानकर एक बड़ा सवाल भी खड़ा होता है कि ज्यां द्रेज़ और उनकी बात पर हामी भरने वाले लोग आखिर क्यों चाहते हैं कि भारत सरकार उन महिलाओं को 6000 रूपए दे जो अपने बल पर अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाने में सक्षम हैं।
इससे यह साफ हो जाता है कि इस लेख को लिखने वाले द्रेज़ को इस योजना के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं है। दरअसल यह स्कीम गरीब और निर्धन परिवारों के लिए ही केन्द्रित है। इसके तहत सरकार उन्हें 6000 रुपए की मदद मुहैय्या कराती है। इस दौरान उन्हें 2000 रूपए की तीन इनस्टॉलमेंट दी जाती है।
यह रकम माँ बनने वाली स्त्री के लिए यह उस समय हुए नुकसान की भरपाई होती है जब वह गर्भवती होती है। इस अवस्था में उसे आराम की सख्त ज़रूरत होती है। यही वजह है कि इस दौरान गरीब परिवार की कामकाजी महिलाएँ घर से बाहर निकलकर पैसा कमाने के लिए शारीरिक रूप से सक्षम नहीं होतीं। इसके नियमानुसार महिला बच्चे को जन्म देने के पहले और बाद में आराम कर सकती है। इस योजना के लिए जिन 90 फीसदी महिलाओं ने आवेदन किया उन्हें पहली इनस्टॉलमेंट दी जा चुकी है। वहीं आवेदन करने वाली 60 फीसद महिलाएँ ऐसी हैं जिन्हें सारी तीन इनस्टॉलमेंट मिल चुकी हैं।
इससे साफ़ पता चलता है कि ज्यां द्रेज़ ने इन सभी बिन्दुओं पर ध्यान ही नहीं दिया है। अपने इस लेख में द्रेज़ ने सरकार की एक योजना को गलत ढंग से पेश किया है ताकि नरेंद्र मोदी सरकार को बदनाम किया जा सके। हैरानी इस बात पर होती है कि द हिन्दू अखबार ने झूठ और संदिग्ध तथ्यों से भरे इस लेख को लिखने वाले ज्यां द्रेज़ को रिसर्चर और डेवलपमेंट इकोनॉमिस्ट यानी विकासशील अर्थशास्त्री की संज्ञा तक दे डाली।
पीएम की मातृ वंदना योजना के प्रावधान को सुनकर कई लोगों के मन में यह सवाल उठाना वाजिब है कि क्या 6000 रुपए की धनराशि एक गर्भवती स्त्री के लिए पर्याप्त मदद है। बता दें कि गर्भवती स्त्रियों की मदद के लिए सिर्फ इतना ही प्रावधान भर नहीं है। इस सम्बन्ध में भारत सरकार की एक अन्य योजना संचालित होती है। इस योजना का नाम ‘प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान’ है। इस योजना के तहत नियमित रूपसे हर महीने की 9 तारीख को गर्भवती महिला की देखभाल की जाती है। सबसे ख़ास बात तो यह है कि इस योजना के तहत गर्भवती स्त्री को मिलने वाली सभी सुविधाओं के लिए कोई पैसा नहीं खर्चा करना पड़ता।
ज्यां द्रेज़ को इस बात से शिकायत है कि इस योजना के लिए लाभार्थी को फॉर्म भरने से लेकर आधार डिटेल जैसी फॉर्मेलिटी को पूरी करना पड़ता है। यह सब कहते वक़्त ज्यां इस बात को भूल गए कि आधार को लिंक कर देने के बाद से किसी भी योजना में अब घपले की गुंजाईश नहीं बची है। सरकार के इस कदम के बाद ज़रुरतमंद का हक मारकर अपनी दुकान चलाने वाले बिचौलियों का भी सफाया हो चुका है। बता दें कि आधार के लागू होने के बाद से किसी भी सरकारी योजना से मिलने वाला लाभ सीधे लाभार्थी तक पहुँचता है। यही वजह कि सरकार ने आधार को लगभग हर क्षेत्र में अनिवार्य कर दिया है।