सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही है, जिसे स्वीडन का बताया जा रहा है। इस तस्वीर में कुछ लोग ह्यूमन चेन बनाए दिख रहे हैं। इसे शेयर करते हुए लोग पूछ रहे हैं कि ये असली है या फिर फॉटोशॉप? बता दें कि स्वीडन में हाल ही में हुए दंगों को लेकर लोग ये पूछ रहे थे कि क्या अभी तक बेंगलुरु की तरह संप्रदाय विशेष के लोगों ने ह्यूमन चेन नहीं बनाया या फिर मीडिया में इस तरह की खबर नहीं चली, जिससे दंगाइयों की करतूतें और पहचान छिपाई जा सके।
ज्ञात हो कि हाल ही में बेंगलुरु में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों में संप्रदाय विशेष की भीड़ ने जम कर उत्पात मचाया था। पैगंबर मुहम्मद का अपमान करने का आरोप लगाते हुए एक कॉन्ग्रेस विधायक के घर को घेर लिया गया था और जम कर आगजनी व पत्थरबाजी की गई थी। इसके बाद मीडिया में इस तरह की खबरें जम कर चली थीं कि कैसे कुछ संप्रदाय विशेष के लोगों ने ह्यूमन चेन बना कर एक मंदिर को बचाया। हालाँकि, मीडिया के हिसाब से बचाने वालों का तो मजहब था, लेकिन जिनसे वो मंदिर को बचा रहे थे, उनका कोई मजहब नहीं था।
ठीक इसी तरह, स्वीडन के बारे में भी ऐसा ही दावा करते हुए तस्वीर वायरल हुई। ये तस्वीर किसी अब्दुल हमीद के फ़ेसबुक पोस्ट की स्क्रीनशॉट के रूप में है, जिसके बारे में कहा गया है कि ये एडिटेड भी हो सकती है। इस पोस्ट में लिखा हुआ है कि स्वीडन में चर्चों को भीड़ से बचाने के लिए संप्रदाय विशेष के लोगों ने ह्यूमन चेन बनाया है। साथ ही ये सवाल भी पूछा गया है कि क्या आपने कभी यहूदी, ईसाई या हिन्दू को मस्जिदों को बचाते हुए देखा है?
This happened for real or photoshopped? 😭😭😭😭😭😭😭 pic.twitter.com/vzEen2tvhq
— SuperStar Raj 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 (@NagpurKaRajini) August 31, 2020
साथ ही इस फ़ेसबुक पोस्ट में दावा किया गया है कि ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि इस्लाम दुनिया का सबसे शांतिपूर्ण मजहब है और जब तक पूरी दुनिया इस्लाम नहीं अपनाएगी, तब तक विश्व में शांति नहीं आ सकती। अब्दुल हामिद के इस स्क्रीनशॉट को शेयर करते हुए ट्विटर हैंडल ‘सूपस्टार राज’ ने पूछा कि क्या ये सच में हुआ है या फिर किसी ने तस्वीर के साथ छेड़छाड़ की है? जब हमने इस तस्वीर को खँगाला तो कुछ और सच्चाई सामने आई।
जब हमने इसका फैक्ट-चेक किया तो पाया कि ह्यूमन चेन वाली ये तस्वीर 5 साल पुरानी है। 2015 की यह तस्वीर नॉर्वे की है। ओस्लो के चर्च का समर्थन करने के लिए संप्रदाय विशेष के लोगों ने ऐसा किया था। उनका दावा था कि वो नॉर्वे के यहूदियों के साथ सहानुभूति जताने के लिए ऐसा कर रहे हैं। इस ‘रिंग ऑफ पीस’ में करीब 1000 संप्रदाय विशेष के लोगों ने भाग लिया था। ये वही संप्रदाय विशेष के लोग थे, जो फिलिस्तीन का समर्थन करते हुए इजरायल को गाली देते हैं। दिलचस्प यह है कि स्वीडन में हिंसा और आगजनी के अगले दिन संप्रदाय विशेष के लोगों ने ओस्लो में भी दंगे किए थे।
मीडिया हमेशा ऐसी किसी भी घटना में हमलावरों के मजहब को छिपाने के लिए ऐसी खबर बनाता है, जिससे पता चले कि किसी खास मजहब के लोग मानवता के लिए कितना अच्छा काम कर रहे हैं और दंगों के दौरान भी समाजसेवा में लगे रहे। इसके लिए मंदिरों को बचाने के लिए ह्यूमन चेन बनाने या फिर महिलाओं-बच्चों की सुरक्षा करते हुए संप्रदाय विशेष के लोगों को दिखाया जाता है और सैकड़ों की भीड़ द्वारा की गई हिंसा को छिपाने की कोशिश की जाती है।
बता दें कि बेंगलुरु दंगों के दौरान बने ह्यूमन चेन का भी एक वीडियो वायरल हुआ था, जिससे ऐसा लग रहा था कि ये सब पब्लिसिटी के लिए किया जा रहा है। बाद में एक और वीडियो सामने था। इसमें वीडियो शूट करने वाले व्यक्ति को बैकग्राउंड से किसी को ये कहते हुए सुना जा सकता है कि इसे ‘जल्दी से अपलोड करे।’