उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली आग मुख्यधारा की मीडिया का हॉट टॉपिक बना हुआ है। लेकिन क्या उत्तराखंड के जंगल इस साल की गर्मियों में वास्तव में आग में झुलस रहे हैं? जवाब है- नहीं।
सोशल मीडिया पर आजकल कुछ तस्वीरों को बड़ी मात्रा में शेयर किया जा रहा है। ‘टूरिज्म-एडवेंचर’ के फेसबुक ग्रुप्स से शुरू हुई ये तस्वीरें आखिरकार इन्हीं इन्टरनेट ग्रुप्स पर आधारित ‘वोक-युवा फ्रेंडली’ वेबसाइट्स स्कूपव्हूप, द लॉजिकल इन्डियन आदि के पास पहुँची और उन्होंने भ्रामक, ‘क्लिकबेट’ हेडलाइन और फर्जी तस्वीरों के जरिए सनसनी को आग देने का काम किया।
द लॉजिकल इन्डियन ने एक कदम आगे जाते हुए अपने ही द्वारा 2016 में प्रकाशित की गई खबर में इस्तेमाल भ्रामक बातों को 2020 में एक बार फिर भुनाने की कोशिश की है। ऐसे कर उसने साबित किया है कि केवल वेबसाइट के नाम में लॉजिक है, खबरों से उसका कोई लेना-देना नहीं है।
नतीजा यह हुआ कि सोशल मीडिया पर सिर्फ और सिर्फ उत्तराखंड के जंगलों की आग चर्चा का विषय बन गई।
हालाँकि, ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड के जंगलों में इस वर्ष आग ही ना लगी हो। लेकिन जितनी हेक्टेयर वन भूमि पर आग की ख़बरों को बिना किसी पुष्टि के पुरानी तस्वीरों के साथ फैलाया जा रहा है, वह बेबुनियाद तथ्य है।
पिछले साल, इसी समय उत्तराखंड ने लगभग 1600 हेक्टेयर जंगलों के नुकसान की सूचना दी थी। इस साल अब तक प्राप्त आँकड़ों के अनुसार उत्तराखंड के 71 हेक्टेयर वन भूमि को नुकसान हुआ है। निसंदेह जंगलों की आग एक बड़ी विभीषिका है, लेकिन इस तरह की घटनाओं के बारे में भ्रामक जानकारियाँ और फर्जी खबरें व्यवस्थाओं और संस्थाओं का काम बढ़ाने का ही कार्य करते हैं।
जंगलों में आग का एक प्रमुख कारण यहाँ पर पाए जाने वाले चीड़ के पेड़ होते हैं, जिनमें ज्वलनशील लीसा पाया जाता है। साथ ही चीड़ की पत्ती में मौजूद राल इसे सड़ने-गलने भी नहीं देती है। ये राल भी बेहद ज्वलनशील होती है। इससे जंगल में आग लगने का खतरा बना रहता है। कई बार देखा गया है कि जंगलों से गुजरने वाले लोग अक्सर अधजली बीड़ी-सिगरेट फेंक देते हैं, जिसके कारण आग लग जाती है। आकाशीय बिजली के कारण भी जंगल दहक उठते हैं।
मुझे यह कहते हुए बड़ा दुःख हो रहा है कि सोशल मीडिया पर कई नामी-गिरामी हस्तियाँ “उत्तराखंड जल रहा है” जैसे एक भ्रामक दुष्प्रचार का हिस्सा बनी हैं. आप सभी से इतनी अपेक्षा है कि अपने नाम का इस तरह से दुरुपयोग न होने दें. https://t.co/UuQLTORMpX
— Trivendra Singh Rawat (@tsrawatbjp) May 27, 2020
उत्तराखंड में पश्चिमी सर्कल के वनों के मुख्य संरक्षक (CCF) पराग मधुकर धकाते ने बताया कि सोशल मीडिया पर बहुत सी गलत सूचनाएँ, पुरानी तस्वीरें और फर्जी खबरें प्रसारित हो रही हैं। उन्होंने कहा कि गत वर्षों की तुलना में इस वर्ष जंगलों में लगने वाली आग में कमी आई है। साथ ही कुछ दिनों में बारिश हो रही है, इसलिए नमी बरकारार है और जंगल की आग की कम घटनाएँ सामने आ रही हैं।
सोशल मीडिया पर जंगलों की आग की जो तस्वीरें ‘द लॉजिकल इंडियन’ से लेकर ‘स्कूपव्हूप’ आदि ‘वोक-युवा फ्रेंडली’ वेबसाइट्स पर शेयर की जा रही हैं, वह वर्ष 2016 की हैं, ना कि 2020 की। PIB उत्तराखंड ने भी इन ख़बरों को भ्रामक और फर्जी बताया है।
सोशल मीडिया में दिखाया जा रहा है कि उत्तराखंड के जंगलों में आग बढ़ती जा रही है लेकिन सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है|@PIBFactCheck : दिखायी जा रही तस्वीरे पुरानी हैं तथा इनमें से कई दूसरे देशों से संबंधित हैं| कृपया ऐसी भ्रामक खबरों से सावधान रहें|@PIBHindi @tsrawatbjp pic.twitter.com/3I4ywVUwJ8
— PIB in Uttarakhand (@PIBDehradun) May 27, 2020
आईएफएस एसोसिएशन उत्तराखंड के ट्विटर अकाउंट ने उत्तराखंड में वर्ष 2020 में जंगलों में लगने वाली आग के वास्तविक तथ्यों की तुलना ग्राफ के माध्यम से सामने रखी है। इसमें 2019 और 2020 में लगने वाली जंगलों की आग की तुलना से स्पष्ट होता है कि 2020 की आग पिछले वर्ष की तुलना में बहुत ही कम है।
Official source of information – https://t.co/hYpi5N4cGd
— IFS Association Uttarakhand (@IFS_Uttarakhand) May 26, 2020
There are very sporadic incidents. https://t.co/HGi5StySKj pic.twitter.com/RvU6iLhpq0
मीडिया गिरोह का है कारनामा
वास्तव में विपक्ष और प्रोपेगेंडा मीडिया निरंतर ही केंद्र सरकार से लेकर भाजपा-शासित राज्यों को निशाना बनाने का प्रयास कर रहा है। प्रोपेगेंडा मीडिया द्वारा चलाई जा रही कोरोना वायरस की महामारी के समय में जब टेस्टिंग किट, वेंटिलेटर, पीपीई किट, 26 करोड़ संक्रमण आदि की नौटंकी फ्लॉप हो गई तो, यह मीडिया गिरोह उत्तराखंड के जंगलों की आग को ऐसे दिखा रहा है जैसे इससे भयावह आग कभी लगी ही न हो।
Rumours that Uttarakhand is in the grip of forest fires are completely false & mischievous. We urge the public not to fall prey to such rumours. FIR will be lodged against all persons spreading such rumours. Do report them to us. @tsrawatbjp @ABPNews @aajtak @ANI @ZeeNews
— Uttarakhand Police (@uttarakhandcops) May 27, 2020
जंगलों की आग भयावह होती है, लेकिन 2020 के आँकड़े पिछले सालों की तुलना में कहीं भी नहीं ठहरते। इसी कारण, जब पूरा गिरोह एक साथ हल्ला मचा रहा है तो इनका प्रयोजन उत्तराखंड के जंगल या जानवरों से प्रेम दिखाना नहीं, बल्कि पैनिक बाँटना है।
इन ख़बरों को ‘भावुक किन्तु फर्जी’ तस्वीरों के जरिए ‘पशु प्रेमियों’ और ‘प्रगतिशीलों’ के फेसबुक ग्रुप्स में शेयर किया जा रहा है, ताकि सरकार के खिलाफ एक प्रकार का दबाव बनाया जाए कि यदि यह कोरोना से निपटने में सक्षम है तो वह जंगलों की आग की ओर ध्यान नहीं दे रही।