नोबेल पुरस्कार विजेता एंगस डेटन ने ‘उभरते हुए कहानीकार’ शेखर गुप्ता के प्रोपेगैंडा के लिए मशहूर न्यूज़ पोर्टल ‘The Print’ की उस रिपोर्ट का खंडन किया है, जिसमें दावा किया गया था कि वह कॉन्ग्रेस को न्यूनतम आय योजना बनाने में मदद कर रहे हैं।
31 जनवरी को, The Print के डी के सिंह की एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें दावा किया गया था कि ब्रिटिश अर्थशास्त्री एंगस डेटन, जिन्होंने वर्ष 2015 में फ़्रांसिसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी के साथ नोबेल पुरस्कार जीता था, कॉन्ग्रेस को अपने न्यूनतम आय गारंटी कार्यक्रम में सलाह दे रहे हैं।
The Print ने अपनी इस रिपोर्ट में लिखा है, “कॉन्ग्रेस पार्टी के नेताओं के अनुसार, पार्टी दो अर्थशास्त्रियों के पास पहुँची क्योंकि राहुल गाँधी ने उनके काम का ‘अध्ययन’ किया था।” हालाँकि, जब OpIndia ने अर्थशास्त्री डेटन से सम्पर्क किया, तो उन्होंने कॉन्ग्रेस या राहुल गाँधी में से किसी के साथ भी जुड़े होने से स्पष्ट मना कर दिया।
एक लाइन के ई-मेल में, डेटन ने लिखा है कि उनका इस मामले या किसी अन्य मामले के सम्बन्ध में कॉन्ग्रेस से कोई संपर्क नहीं है। हालाँकि, फ़्रांसिसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी ने इस बात की पुष्टि की, कि कॉन्ग्रेस के साथ उन्होंने सिर्फ इसकी ‘लागत और इसे लागू किए जाने’ के बारे में बातचीत की थी। इसके साथ ही डेटन ने कहा, “समय आ गया है कि जाति संघर्ष की राजनीति से, आय और धन के पुनर्वितरण की राजनीति की ओर बढ़ा जाए।”
पिछले सप्ताह कुछ मीडिया रिपोर्ट्स सामने आई थीं, जिनमें दावा किया गया था कि भारतीय सेना को बदनाम करने के लिए ही वर्ष 2011-2012 में कॉन्ग्रेस के नेताओं ने एक कहानी रची थी, जिसमें कहा जा रहा था कि सेना की मदद से तख्तापलट की कोशिश की जा रही हैं। संडे गार्जियन ने एक इंटेलिजेंस ब्यूरो अधिकारी के हवाले से स्पष्ट किया था कि ऐसी तख्तापलट की कोई कोशिश नहीं की गई थी।
इस रिपोर्ट में कहा गया है, “यूपीए 2 सरकार के शीर्ष नेतृत्व ने वर्ष 2011 और 2012 के शुरुआती महीनों में अनौपचारिक रूप से इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) को यह संकेत देने का प्रयास किया था कि सेना अपने तत्कालीन प्रमुख जनरल वी के सिंह के नेतृत्व में सरकार को गिराने के लिए तख्तापलट की कोशिश कर रही थी।”
जब IB ने बताया कि वीके सिंह किसी भी राजनीतिक तख्तापलट को अंजाम नहीं देने जा रहे थे, यह कहानी मीडिया के लिए ही ‘लीक’ की गई थी, यह कहानी उसी तरह से चलाई गयी थी, जिस तरह से उस वक़्त राजनीतिक नेतृत्व द्वारा सुनाई गई थी। इसमें एक नेता भी शामिल था, जिसने बाद में अपने करियर में एक शीर्ष संवैधानिक पद पर कब्जा किया था।”
ख़ास बात यह है कि रिपोर्ट में ‘सेना के तख्तापलट’ की कहानी अंग्रेजी दैनिक अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी। उस कहानी के कहानीकार भी शेखर गुप्ता ही थे। यही शेखर गुप्ता तब इंडियन एक्सप्रेस में संपादक थे।
कहानियों की पटकथा बनाना पत्रकारिता जितनी ही पुरानी बात हो चुकी है। हालाँकि,जब सेना से सम्बंधित मामले पर वो कहानी गढ़ रहे थे तब शेखर गुप्ता जैसे वरिष्ठ पत्रकार को मामले की पूरी जानकारी होनी चाहिए थी और उन्हें यह बेहतर तरीके से पता होना चाहिए था।
‘ऑपइंडिया’ सेना की तख्तापलट की ‘लीक’ कहानी के आरोपों पर शेखर गुप्ता के विचार जानने के लिए पहुँचने के प्रयास किए, जिस कहानी को उन्होंने भारत के प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक में बतौर ‘संपादक’ पहले पेज पर छाप लिया था।
हालाँकि, शेखर गुप्ता ने इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के समय तक कोई उत्तर नहीं दिया है।