दिल्ली के शराब घोटाला मामले में आम आदमी पार्टी की मुश्किलें बढ़ती जा रहीं हैं। खबर आ रही है कि मनीष सिसोदिया के बाद अब CBI दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से पूछताछ करना चाहती है। इसके लिए सीबीआई ने केजरीवाल को समन भेजा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, शराब घोटाला मामले में गिरफ्तार आरोपित दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समेत अन्य लोगों से पूछताछ के बाद अब CBI ने केजरीवाल को समन जारी किया है। इस समन में, सीबीआई ने केजरीवाल को रविवार (16 अप्रैल 2023) को पूछताछ के लिए बुलाया है।
CBI summons Delhi CM and AAP national convenor Arvind Kejriwal on April 16 to question him in the excise policy case. pic.twitter.com/jlStNKhU2Y
— ANI (@ANI) April 14, 2023
बता दें कि इसी घोटाले में दिल्ली के उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी 26 फरवरी 2023 को हुई थी। उसके बाद से उन्हें जमानत नहीं मिल पाई है। राउज एवेन्यू कोर्ट में उनकी जमानत याचिका पर अब 18 अप्रैल को सुनवाई होनी है। पिछली सुनवाई में ईडी ने सिसोदिया को इस मामले का मुख्य साजिशकर्ता बताया था। साथ ही कहा था कि आबकारी नीति पर जनता की सहमति दिखाने के लिए उन्होंने फर्जी ईमेल कराए थे।
15 प्वाइंट्स में समझें दिल्ली का शराब घोटाला
1.) नवंबर 2021 में लागू की गई दिल्ली सरकार की नई शराब नीति के तहत राज्य में कुल 849 दुकानें खोली गईं। इस शराब नीति से पहले 60 प्रतिशत दुकानें सरकारी और 40% प्राइवेट होती थीं। वहीं, घोटाले के लिए तैयार की गई शराब नीति में सभी दुकानें प्राइवेट कर दी गईं। इससे सरकार को सीधी तरह नुकसान हुआ।
2.) दिल्ली सरकार ने शराब बेचने के लिए मिलने वाले लाइसेंस की फीस कई गुना बढ़ा दी। L-1 लाइसेंस पहले ठेकेदारों को 25 लाख रुपए में मिल जाता था। हालाँकि नई शराब नीति लागू होने के बाद इसके लिए ठेकेदारों को 5 करोड़ रुपए देने पड़े। इसी तरह अन्य लाइसेंस के लिए भी फीस कई गुना तक बढ़ा दी गई। इससे छोटे ठेकेदार लाइसेंस नहीं ले सके। इसका सीधा फायदा बड़े व्यपारियों को मिला।
3.) उप मुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया के कहने पर आबकारी विभाग द्वारा L-1 बिडर को 30 करोड़ रुपए वापस कर दिए। दिल्ली एक्साइज पॉलिसी में किसी भी बिडर का पैसा करने का नियम नहीं है। लेकिन सिसोदिया के कहने पर भी यह भी हुआ।
4.) कोरोना काल में शराब कंपनियों को हुए नुकसान की भरपाई करने के नाम पर केजरीवाल सरकार ने लाइसेंस फीस में बड़ी छूट दी। वास्तव में सरकार ने कंपनियों की 144.36 करोड़ रुपए की लाइसेंस फीस माफ कर दी थी।
5.) विदेशी शराब और बियर के पर मनमाने ढंग से 50 रुपए प्रति केस की छूट दी गई। यह छूट कंपनियों को फायदा देने के लिए दी गई थी।
6.) दिल्ली सरकार ने नई शराब नीति के तहत राज्य को 32 जोन में बाँटा था। इसमें से 2 जोन के ठेके एक ऐसी कंपनी को दिए गए जो ब्लैक लिस्टेड थी।
7.) शराब बेचने वाली कंपनियों के बीच कार्टेल पर प्रतिबंध होने के बाद भी केजरीवाल सरकार ने शराब विक्रेता कंपनियों के कार्टेल को लाइसेंस दिए थे। इसके तहत शराब कंपनियों को शराब पर डिस्काउंट देने और एमआरपी पर बेचने के बजाय खुद कीमत तय करने की छूट मिल गई। इसका फायदा भी शराब बेचने वालों को हुआ।
8.) नई शराब नीति को लेकर कैबिनेट की बैठकों में मनमाने ढंग से फैसले लिए गए। यही नहीं, नियमों को ताक पर रखते हुए कैबिनेट नोट सर्कुलेशन के बिना ही प्रस्ताव पास करा दिए गए।
9.) शराब विक्रेताओं को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से ड्राई डे की संख्या घटा दी गई। यह संख्या पहले 21 थी, वहीं नई शराब नीति के तहत दिल्ली में ड्राई डे महज 3 दिन ही था।
10.) शराब ठेकेदारों को पहले 2.5 प्रतिशत कमीशन मिलता था। वहीं नई शराब नीति के तहत इसे बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया। इससे शराब ठेकेदारों को फायदा हुआ। वहीं सरकारी खजाने को नुकसान झेलना पड़ा।
11.) केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के 2 जोन में शराब निर्माता कंपनी को रिटेल में शराब बेचने की अनुमति दी। वहीं, नियम यह है कि शराब निर्माता और रिटेल विक्रेता अलग-अलग होगा।
12.) उपराज्यपाल से अनुमति लिए बिना ही दो बार आबकारी नीति को आगे बढ़ाया गया। साथ ही मनमाने ढंग से छूट दी गई। इसका शराब कंपनियों ने फायदा उठाया। कैबिनेट की बैठक बुलाकर ही सारे फैसले ले लिए गए।
13.) दिल्ली सरकार ने बिना किसी ठोस आधार के टेंडर में नई शर्त जोड़ते हुए कहा था कि हर वार्ड में कम से कम दो दुकानें खोलनी पड़ेंगीं। इसके लिए दिल्ली के आबकारी विभाग ने भी केंद्र सरकार से अनुमति लिए बिना ही अतिरिक्त दुकानें खोलने की अनुमति दे दी। इसका शराब निर्माता कंपनियों ने फायदा उठाया।
14.) सोशल मीडिया, बैनर्स और होर्डिंग्स के जरिए शराब को बढ़ावा देने वालों पर दिल्ली सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। यह दिल्ली एक्साइज नियम 2010 के 26 और 27 नियम का उल्लंघन है।
15.) नई आबकारी नीति लागू करने के लिए केजरीवाल सरकार ने जीएनसीटी एक्ट-1991, ट्रांजैक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स 1993, दिल्ली एक्साइज एक्ट 2009 और दिल्ली एक्साइज रूल्स 2010 का सीधे तौर पर उल्लंघन किया।