वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम के मंच पर भारत की जो छवि उभरी, वह चुनौतियों के साथ-साथ उम्मीदों पर भी खरी है। इसमें दो राय नहीं कि पिछले पाँच सालों में तमाम उतार-चढ़ाव के बाद भी भारत की छवि वैश्विक मानदंडों पर पहले से मज़बूत हुई है।
INDIA IN DAVOS 2019: India’s Electronics Manufacturing and Information Technology success story at display at the Annual Meeting of the World Economic Forum 2019 in Davos. @MEAIndia @rsprasad @_digitalindia @PMOIndia @IndianIpn @misspeoi @IndianDiplomacy @swissmem @SICCOFFICIAL pic.twitter.com/Ww35FpKK29
— India in Switzerland, The Holy See & Liechtenstein (@IndiainSwiss) January 23, 2019
चाहे वो वैश्विक सलाहकार कंपनी प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स (Pricewaterhouse Coopers-PwC) की वैश्विक CEO सर्वे रिपोर्ट हो या ऑक्सफ़ैम रिपोर्ट या एडलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर रिपोर्ट, इन तीनो के पैमानें पर भारत की छवि वैश्विक सन्दर्भों में निखरती नज़र आई है।
वैश्विक CEO रिपोर्ट के अनुसार, 2018 की तुलना में 2019 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि की रफ्तार हालाँकि धीमी रहने के आसार हैं। लेकिन इसी रिपोर्ट में भारत की अर्थव्यवस्था के लिए सुखद भविष्यवाणी की गई है। बता दें कि प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स की वैश्विक CEO सर्वे रिपोर्ट के अनुसार यूनाइटेड किंगडम को पीछे छोड़ते हुए भारत 2019 में दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।
वैश्विक CEO सर्वे रिपोर्ट में भारत के लिए क्या है ख़ास
प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स ने 90 से अधिक देशों में सितंबर-अक्तूबर 2018 के दौरान वैश्विक स्तर पर 1378 CEOs का वार्षिक सर्वे किया। दावोस में विश्व आर्थिक मंच पर इस सर्वे रिपोर्ट को पेश किया गया।
रिपोर्ट के अनुसार, 2012 के बाद सबसे धीमी वृद्धि का अनुमान 2019 में लगाया गया है। अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में यह धीमी वृद्धि देखने को मिलेगी। उत्तरी अमेरिका और यूरोप में यह अंतराल ज़्यादा दिखाई देगा।
सर्वे में 29 फीसदी CEOs ने इस बात पर सहमति जताई थी और इनमें से बड़ी संख्या इन्हीं क्षेत्रों के CEOs की थी। इससे पहले, वर्ष 2018 में 48 फीसदी CEOs ने मंदी के आसार जताए थे। हालाँकि, सर्वे में 42 फीसदी CEOs ने यह भी माना कि 2019 में वृद्धि में सुधार की सम्भावना भी है, लेकिन यह 2018 के 57 फीसदी की तुलना में कम होने का अनुमान है। रिपोर्ट में वर्ल्ड बैंक के आँकड़ों के हवाले से कहा गया है कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) ने 2011 से ही 4% के बैरियर को पार नहीं किया है।
2019 में निवेश के हिसाब से भारत सबसे भरोसेमंद देशों में शामिल
इस रिपोर्ट का ख़ासा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ने की सम्भावना है। जिसका कारण ये है कि भारत में निवेश पर बेहतर रिटर्न मिलने की उम्मीद करने वाले CEOs की तादाद थोड़ी कम है। जबकि, 2019 में कहाँ निवेश किया जाए इसको लेकर अनिश्चितता की स्थिति में रहने वाले CEOs की सँख्या ज़्यादा है। लेकिन फिर भी भारत को सबसे भरोसेमंद देशों की सूची में रखा गया है। इसके पीछे भारत में राजनीतिक स्थिरता के साथ शासन का कठोर निर्णय लेने के साथ व्यापार के लिए भारत में समुचित माहौल उपलब्ध कराना भी है।
रिपोर्ट में लगभग 8% CEOs का स्पष्ट मानना है कि भारत उनकी वृद्धि के लिये अहम है। जबकि 15 फीसदी CEOs यह नहीं जानते कि कहाँ निवेश किया जाए। सर्वे रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बेहतर निवेश बाज़ार के तौर पर भारत अब जापान और ब्रिटेन से आगे निकल गया है। इस रिपोर्ट के ही अनुसार, ज़्यादातर निवेश बाजारों की सूची में भारत एक उभरता हुआ आकर्षक निवेश अनुकूल देश है।
विश्व अर्थव्यवस्था में भारत के पाँचवें स्थान पर आने की संभावना
प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स की वैश्विक CEO सर्वे रिपोर्ट में यह संभावना जताई गई है कि 2019 में भारत विश्व अर्थव्यस्था में पाँचवां स्थान प्राप्त कर सकता है। वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत की रैंकिंग अभी छठवीं है।
रिपोर्ट में बताया गया है लगभग समान विकास दर और जनसंख्या के कारण ब्रिटेन और फ्राँस दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की सूची में अक्सर आगे-पीछे होते रहते हैं। लेकिन यदि भारत इस सूची में आगे निकलता है तो उसका स्थान स्थाई रहेगा।
International Monetary Fund (IMF) sees India gathering pace
— Prerana (@Prerana15999) January 27, 2019
Forecasts India GDP at 7.5% in FY20 & 7.7% in FY21
India is the rising star on the list of the most attractive investment markets, according to PwC annual global survey at World Economic Forum in Davos
ET dt. 22-Jan-2019 pic.twitter.com/qPsSZhXpQL
प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स की वैश्विक अर्थव्यवस्था निगरानी (ग्लोबल इकोनॉमी वॉच) रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इस वर्ष (2019 में) ब्रिटेन की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर 1.6%, फ्राँस की 1.7% तथा भारत की 7.6% रहने की सम्भावना है।
एडलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर रिपोर्ट-2019: भारत विश्वसनीय देशों में शामिल
वैश्विक CEO रिपोर्ट और ऑक्सफ़ैम रिपोर्ट के अलावा एडलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर रिपोर्ट भी दावोस में विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम) के वार्षिक सम्मेलन शुरू होने से पहले जारी की गई। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत कारोबार, सरकार, NGOs और मीडिया के मामले में दुनिया के सबसे विश्वसनीय देशों में शामिल है। हालाँकि, देश के कारोबारी ब्रांडों की विश्वसनीयता थोड़ी कम ज़रूर हुई है। जिसके जल्द ही सुधरने के आसार हैं।
वैश्विक विश्वसनीयता के पैमाने पर देंखे तो भारत की वैश्विक विश्वसनीयता सूचकांक 3 अंक के सुधार के साथ 52 अंक के आँकड़े पर पहुँच गया है। इस रिपोर्ट में चीन जागरूक जनता और सामान्य आबादी के भरोसा सूचकांक में क्रमश: 79 और 88 अंकों के साथ शीर्ष पर है। जबकि, भारत इन दोनों श्रेणियों में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहा। बता दें कि एडलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर की यह रिपोर्ट NGOs, कारोबार, सरकार और मीडिया में भरोसे के औसत पर आधारित है।
ऑक्सफैम रिपोर्ट: क्या कहती है भारत के बारे में
प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स की वैश्विक CEOs की उपरोक्त रिपोर्ट के साथ ऑक्सफैम ने भी अपनी रिपोर्ट जारी की। जानकारी के लिए बता दूँ कि 1942 में स्थापित ऑक्सफैम 20 स्वतंत्र चैरिटेबल संगठनों का एक संघ है। यह वैश्विक स्तर पर ग़रीबी उन्मूलन के लिये काम करता है और ऑक्सफ़ैम इंटरनेशनल इसकी अगुवाई करता है। वर्तमान में विनी ब्यानिमा इस गैर-लाभकारी समूह की कार्यकारी निदेशक हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 2018 में प्रतिदिन 2,200 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है। इस दौरान देश के शीर्ष 1% अमीरों की संपत्ति में 39 % की वृद्धि हुई। हालाँकि इस दौरान 50% ग़रीब आबादी की संपत्ति में भी 3% की बढ़ोतरी हुई है। इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश के शीर्ष 9 अमीरों की संपत्ति 50 फीसदी ग़रीब आबादी की संपत्ति के बराबर है। यह आँकड़ा पहली नज़र में भयावह दिखता ज़रूर है, लेकिन आय की अवधारणा पर एकदम सामान्य बात है, चूँकि अमीरों के पास पहले से ही ज़्यादा संपत्ति है, इसलिए उनके निवेश की तुलना में वृद्धि भी उसी अनुपात में होती है। इस अंतराल को भरने में अभी काफ़ी वक़्त लगने के आसार हैं।
इस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि भारत में रहने वाले 13.6 करोड़ लोग वर्ष 2004 से कर्ज़दार बने हुए हैं। यह देश की सबसे ग़रीब आबादी का 10% है। जिसे अधिकांश मीडिया रिपोर्टों में इस तरह पेश किया गया कि भारत की ये 10% आबादी 2014 के बाद ग़रीबी के दायरे में आई है। जबकि ये आँकड़ा 2004 के बाद का है। 2014 के बाद मोदी सरकार की तमाम योजनाओं के फ़लस्वरूप ग़रीबी रेखा के नीचे के लोगों को जहाँ मनरेगा से निश्चित रोज़गार मिला, वहीं उन्हें डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम के तहत सीधे लाभ भी। साथ ही उज्ज्वला, जन-धन योजना, मुद्रा योजना एवं अन्य योजनाओं के तहत भी ग़रीबों-किसानों की स्थिति में काफ़ी सुधार आया है।
What does #inequality actually mean? #wef19 pic.twitter.com/bjOUCnnnZI
— Oxfam (@oxfamgb) January 21, 2019
हालाँकि, आय में बढ़ोतरी के बाद वर्ग अंतराल में कमी आने के बावजूद भी भारत में विषमता बनी हुई है, रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि भारत की शीर्ष 10% आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 77.4% हिस्सा है और इनमें से सिर्फ़ 1% आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 51.53% हिस्सा है। जबकि, 60% आबादी के पास देश की सिर्फ़ 4.8% संपत्ति है।
ऑक्सफ़ैम रिपोर्ट में संभावनाशील भारत की तस्वीर पेश करते हुए यह भी कहा गया है कि 2018 से 2022 के बीच भारत में प्रतिदिन 70 नए करोड़पति बनेंगे। पिछले साल, 2018 में देश में 18 नए अरबपति बने और इस प्रकार, अरबपतियों की कुल संख्या बढ़कर 119 हो गई है। इनकी संपत्ति 2017 में 325.5 अरब डॉलर से बढ़कर 2018 में 440.1 अरब डॉलर हो गई है।
दुनिया भर में 10 अरब डॉलर का काम महिलाएँ मुफ़्त में करती हैं
ऑक्सफ़ैम रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में घर और बच्चों की देखभाल करते हुए घरेलू महिलाएँ सालभर में कुल 10 हज़ार अरब डॉलर के बराबर काम करती हैं, जिसका उन्हें कोई भुगतान नहीं किया जाता। यह दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी ऐपल के वार्षिक कारोबार का 43 गुना है।
इसी सन्दर्भ में, रिपोर्ट में भारत की महिलाओं का भी जिक्र है, भारत में महिलाएँ घर और बच्चों की देखभाल जैसी जो अवैतनिक काम करती हैं, उसका मूल्य देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 3.1% के बराबर है। इस तरह के कामों में शहरी महिलाएँ प्रतिदिन लगभग 312 मिनट और ग्रामीण महिलाएँ 291 मिनट लगाती हैं। इसकी तुलना में शहरी क्षेत्र के पुरुष बिना भुगतान वाले कामों में सिर्फ 29 मिनट ही लगाते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले पुरुष 32 मिनट ख़र्च करते हैं।
फ़िलहाल भारतीय सन्दर्भ में अभी घरेलू श्रम का भुगतान दूर की कौड़ी है। फिर भी यहाँ की मेहनतकश आबादी अनेक संभावनाओं से भरपूर है। आज वैश्विक पटल पर भारत की असीम संभावनाओं पर दुनिया की नज़र है। आने वाले दौर में निवेश और व्यापार दोनों के लिए भारतीय माहौल अनुकूल होगा।
इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता और रिस्क लेने की क्षमता की सराहना करनी होगी। पिछले पाँच सालों में उनके द्वारा चलाई गई विभिन्न योजनाओं के साथ, व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए उठाये गए कई कठोर क़दम हैं जिनके परिणाम न सिर्फ़ भारत में बल्कि विश्व पटल पर भी नज़र आ रहें है। चाहे वह इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के रूप में हो, बिजली उत्पादन और वितरण में सुधार, मेक इन इंडिया, भ्रष्टाचार पर लग़ाम कसने के लिए नोटबंदी जैसा कठोर कदम, जिसका परिणाम टैक्स स्लैब में बढ़ोतरी के रूप में नज़र आया।
किसी भी देश में विकास योजनाओं को लागू करने में धन की आवश्यकता होती है। जिसकी भरपाई सरकार विभिन्न प्रकार के करों से करती है। टैक्सेशन में सुधार के लिए ही GST लागू हुआ, जिससे एक तरफ़ जहाँ मुद्रास्फीति में सुधार हुआ वहीं सरकार का कर दायरा भी बढ़ा। जिसका उपयोग मुद्रा योजना, उज्ज्वला योजना, जन आरोग्य योजना के साथ ही ‘सबका साथ, सबका विकास’ को मूलमंत्र मानते हुए मोदी सरकार ने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जन-जन के सम्पूर्ण विकास का ख़ाका खींचते हुए बदलते भारत की तस्वीर पेश कर वैश्विक धरातल पर भी सुनहरे व संभावनाशील भारत से दुनिया का परिचय कराया।