सोशल मीडिया के विशाल वटवृक्ष के नीचे बैठे हुए ट्रोलाचार्य का सर झुका हुआ और नयन अधखुले थे, दृष्टि बाएँ हाथ में स्थित मोबाइल की स्क्रीन पर स्थिर थी। स्क्रीन से आता हुआ प्रकाश उनके मुख पर पड़ता तो वे चन्द्रमा के समान दमक उठते थे। यदा-कदा अनुयायी फ़्लैश सहित छायाचित्र खींचकर उनका प्रकाशाभिषेक करते। अनंत अनुयायी सामने बैठे हुए, ट्रोलाचार्य की अगली गतिविधि की प्रतीक्षा में थे। ट्रोलाचार्य सूत्रपात करते और अनुयायी शृंखला अभिक्रिया में जुट जाते।
ऐसे में ट्रोल की संज्ञा प्राप्त कर किसी लुटियन-मोहिनी द्वारा अभी-अभी ब्लॉक हुए एक ट्रोल ने प्रश्न किया, “हे ट्रोलाचार्य! आज मुझे ट्रोल कहलाने का प्रथम अनुभव हुआ है। अब मैं स्वयं को जानना चाहता हूँ। विस्तारपूर्वक मार्गदर्शन करें कि ट्रोल कौन हैं और इन्हें किस प्रकार पहचाना जाता है। इनका प्रादुर्भाव किस प्रकार हुआ?”
ट्रोलाचार्य ने प्रेमपूर्वक कहा, “हे अनुयायी! आपने उत्तम प्रश्न किया है, अब इसके उत्तर का ध्यानपूर्वक श्रवण करो- जब सत्यान्वेषियों के प्रयासों से प्राणियों ने जाना कि स्वधन्य पत्रकार विषवमन करने वाले भयंकर षड्यंत्रकारी हैं।”
“समाज ने स्वयं ही सामाजिक-संचार की व्यवस्था को जन्म दिया। स्वधन्य पत्रकारों के प्रत्येक कथन का परीक्षण होने से उनके अहं पर गंभीर चोट पहुँची। फिर भी असत्य बोलते रहने पर वे और उनके मित्र उपहास का पात्र बने, वे हाहाकार कर उठे। उनका आवरण हटा कर उनकी वैचारिक नग्नता को सामने लाने वालों को उन्होंने ट्रोल की संज्ञा दी। विशेषकर जिसने भी वामपंथ के प्रचारकों के षड्यंत्रों का रहस्योद्घाटन किया वह ट्रोल कहा गया। यह ट्रोलवाद का उदय था। ट्रोल समाज के मार्गदर्शन करने हेतु मैंने यह ट्रोलाचार्य का अवतार लिया है। शृंखला अभिक्रिया ट्रोलवाद का मुख्य लक्षण है।”
“क्या वामपंथियों में कोई ट्रोल नहीं होता ट्रोलाचार्य?”, अनुयायी ट्रोल ने प्रश्न किया। ट्रोलाचार्य ने कहा, “उन्हें स्टैंड-अप-आर्टिस्ट कहा जाता है, और ये विशेष सम्मान प्राप्त करते हैं। लिट्फेस्ट आदि में ससम्मान बुलाए जाते हैं। ये अत्यंत भयानक अपशब्द बोलने वाले व अशिष्ट हो सकते हैं। अश्लीलता ही हास्य है ऐसा मानने वाले स्टैंड-अप-आर्टिस्ट मूलाधार चक्र से ऊपर उठ ही नहीं पाते। इनका सम्पूर्ण जीवन-दर्शन-चिंतन-सृजन मूलाधार चक्र में ही घूमता रहता है। सनातन धार्मिक भावनाओं का उपहास कर ये स्वयं ही स्वयं से आनंदित होते हैं।”
“वामपंथियों द्वारा ट्रोलीकरण की क्रिया को “फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन” कहा जाता है जिससे उन्हें किसी भी प्रकार की निम्नस्तर की बात किसी के भी विरुद्ध करने की स्वतंत्रता प्राप्त होती है। लुटियन सुंदरियाँ उनके अपशब्दों पर अट्टहास करती हैं।”
ट्रोल ने पुनः प्रश्न किया, “मुझे एक ट्रोल के रूप में क्या करना चाहिए और मेरे निहित अधिकार और कर्तव्य क्या हैं?” ट्रोलाचार्य ने उत्तर दिया, “ट्रोल करना ही ट्रोल का परम कर्तव्य है। दोहा से दुपाया, चौपाई से चौपाया जीव को ट्रोलित करते रहना चाहिए। कभी कभी कुछ विभूतियाँ लिखे हुए से कम ट्रोल होती हैं ऐसे में उन पर चित्रकला द्वारा ट्रोल करने का विधान है। चित्र अथवा चलचित्र के माध्यम से ट्रोल करने वाले ट्रोल लोक में पूजनीय होते हैं। ये उन विभूतियों को भी ट्रोल करने में सक्षम होते हैं जो मानव भाषा नहीं समझते।”
“थ्रेड में ट्रोल करने वाले अधम प्रकार के विस्तारवादी ट्रोल होते हैं। ये प्रायः लम्बे थ्रेड लिखकर ट्रोल करते हैं। इन्हें एक बार में उठाकर पटकने में आनंद नहीं आता। जब तक दस बारह बार उठाकर पटक नहीं लेते ये शांत नहीं होते। मध्यम कोटि के ट्रोल एक ट्वीट में चेतना शून्य कर देने वाले होते हैं। उत्तम कोटि के ट्रोल एक वाक्य में ही अचेत कर देते हैं और सर्वोत्तम ट्रोल एक शब्द लिखकर ही नासिका लाल कर कर्णछिद्रों से धूम्र-वाष्प निष्कासन की प्रक्रिया का सूत्रपात कर देते हैं।”
अनुयायी ने पूछा, “हे ट्रोलाचार्य! ट्रोलगति क्या है? ट्रोलगति को कौन प्राप्त होते हैं? ट्रोल को ब्लॉक क्यों किया जाता है?” इस पर ट्रोलाचार्य ने कहा, “किसी का उपहास करने पर दण्डात्मक कार्यवाही का पात्र हो जाना ही ट्रोलगति है। न्यायायिक प्रक्रिया के बिना कारावास प्राप्त होना गंभीर ट्रोलगति है, ब्लॉक किया जाना सामान्य ट्रोलगति है। वे तीक्ष्णबुद्धि जो अपनी छोटी सी बात से बड़े बड़े महलों को हिलाने में सक्षम हैं वे ट्रोलगति को प्राप्त होते हैं। हे ट्रोल! ट्रोल को ब्लॉक किये जाने के अनेक कारण हैं। उसमे प्रमुख कारण ट्रोल का किसी विवाद में विजयी होना प्रमुख है।”
“जब ट्रोलित होने वाले के पास कोई उत्तर न रह जाए, या उसकी गलती पकड़ी जाए, अथवा वह हास्य का पात्र बन जाए तो वह ट्रोल को ब्लॉक कर स्वयं को शांति प्रदान करता है। कभी-कभी ट्रोल भावनाओं में बहकर स्वयं को स्टैंड-अप-आर्टिस्ट के सामान समझकर अश्लीलता कर बैठते हैं, जिससे कुपित होकर ट्रोल को ब्लॉक कर दिया जाता है। ट्रोल को शालीनता के साथ रहने का नियम है, अश्लीलता का अधिकार वामपंथ का है अतः उनके पास ही रहने देना चाहिए।”
अनुयायी ने पुनः प्रश्न किया, “अधिट्रोलः कथं कोऽत्र सोशल-मीडियाऽस्मिन् ट्रोलाचार्य?” (सोशल मीडिया पर ट्रोलित होने का अधिकारी कौन है और किसे ट्रोल नहीं करना चाहिए?) ट्रोलाचार्य ने सहज भाव से उत्तर दिया, “ट्रोल किसी को भी किया जा सकता है, कैसे भी किया जा सकता है, सामाजिक मंच पर जो भी है वह बिना भेदभाव के ट्रोलित होने का अधिकारी है। पूर्व दिशा में स्थित पश्चिम बंगाल में ट्रोल करना दुःख का कारण बनता है। पूर्व में रहते हुए भी पश्चिम हुए जा रहे बंगाल में अलग विधि विधान है।”
“ट्रोल करने पर जेल में ठूंस देने वाली शासक का भयानक आतंक है। वह कभी भी किसी भी बात से स्वयं को ट्रोलित जानकर आक्रामक हो उठती है। एक बार ऐसे ही किसी कन्या ने उस शून्यात्मा का परिहास करते हुए चित्र बनाया जिसपर उसे कारावास में डाल दिया गया। पश्चिम बंगाल में न्यायालय भी मुंह में रोशोगुल्ला भर कर नयन मूँद लेते हैं। किसी को छोड़ देना भी ट्रोलधर्म नहीं है किन्तु ऐसे विषादग्रस्त, जीवन से निराश, सदा खिन्न रहने वालों को ट्रोलित करना आत्मघात के समान है।”
अनुयायी- “फिर ट्रोलधर्म का पालन कैसे किया जाए?”
ट्रोलाचार्य मुस्कुराए, और तत्काल एक ट्वीट किया जिसमे लिखा था- “दीदी, जय श्रीराम!”
शीतल पवन के प्रवाह से वातावरण में आनंद था, पृष्भूमि में झींगुरों का स्वर सुनाई दे रहा था। ट्रोलाचार्य पुनः अपने मोबाइल की स्क्रीन में लीन हो गए।