दिन था शनिवार। कोलकाता में ‘ममता’मयी महफ़िल सजी हुई थी। बड़े-बड़े धुरंधरों से रौनक बिछी हुई थी। जमावड़ा था एक गिरोह का, जिनके लिए ‘चौकीदार’ को हटाना ही जीवन का परम लक्ष्य बन चुका है। अब मौका था, दस्तूर था। सभी एक के बाद एक प्रवचन ‘चौकीदार’ के लिए दे रहे थे। तभी अरविंद केजरीवाल को जोश आया और उठ खड़े हुए महफ़िल को लूटने की जल्दी में। जल्दी इतनी कि दूसरे के गुनाहों की फ़ेहरिस्त तीसरे पर थोप दिया।
केजरीवाल ने अपने आकर्षित करने वाले भाषण में कहा कि देश में बीजेपी हिंदू-मुस्लिम को लड़ा रही है। अब केजरी ‘सड़जी’ को कौन समझाए! जिस गिरोह के साथ वे खड़े थे, उनका इतिहास ही भूल गए या फिर अवसर की रबड़ी चापने के जोश में होश खो दिए। केजरी ‘सड़जी’ आप भूल गए कि देश में सबसे ज्यादा सत्ता में रहने वाले पार्टी का नाम कॉन्ग्रेस है।
1984, 1987, 90… 1993 की घटनाओं को भूले
आप ये भी भूल गए कि हाशिमपुरा और उसके नज़दीक के एक गांव मलियाना में 22 और 23 मई 1987 को करीब 100 मुस्लिमों को मौत के घाट उतार दिया गया था। बस बता रहे हैं कि उस वक्त सरकार कॉन्ग्रेस की थी। खैर आप तो भूल गए होंगे 1984 का सिख दंगा भी, जिसमें करीब 3000 लोग मारे गए थे। ‘सड़जी’ उस वक्त भी सरकार कॉन्ग्रेस की थी। और हाँ, आपको याद दिला दें कि 1990 में कश्मीरी पंडितों को बेघर करने का श्रेय भी कॉन्ग्रेस की पॉलिसी को ही जाता है।
मुझे यकीन है कि आपको श्रीकृष्ण कमीशन की रिपोर्ट बिल्कुल याद नहीं होगी। इसमें कहा गया था कि 1992, 1993 के दौरान मुंबई में हुए दंगों के दौरान 900 लोग मारे गए थे। इसमें 575 मुस्लिम, 275 हिंदू, 45 अज्ञात थे। लेकिन क्या कीजिएगा ‘सड़जी’ यह जानकर कि तब भी कॉन्ग्रेस की ही सरकार थी। क्योंकि जानने के बाद भी आप तो यही कहेंगे कि देश में बीजेपी हिंदू-मुस्लिम को लड़ा रही है! है न? अब केजरी ‘सड़जी’ ये बताइए कि 2014 में जब से बीजेपी की सरकार बनी, देश में कितने दंगे हुए हैं?
जिस कॉन्ग्रेस के सामने आप सीना चौड़ा करके प्रवचन दे रहे थे, दरअसल भारत में सांप्रदायिक दंगों की जननी वही है। लेकिन नहीं। आप तो हैं युगपुरुष। अंग्रेजो ने “बांटों व राज करो” की नीति देकर जिस सांप्रदायिकता का बीज बोया था, उसे आजाद भारत के कॉन्ग्रेसी व वामपंथी नेताओं के बजाय आप तो BJP को ही इसका असली खेवनहार बताएंगे। ‘चौकीदार’ से लड़ने के लिए क्या-क्या भूलोगे ‘सड़जी’
अपने गिरेबान में भी झांकिए ‘युगपुरुष जी’
आरोप-प्रत्यारोप तो राजनीति का हिस्सा है। खूब करिए लेकिन कभी अपने गिरेबान में मौका निकालकर झाँक लीजिएगा। आप वही हैं न, जिन्होंने अपनी नौकरी देश की सेवा के लिए छोड़ी थी? और अपने गुरु अन्ना हजारे की पीठ में राजनीति की रबड़ी खाने के लिए छुरा घोंपा था। एक बात कभी आपने सोची की आपके अपने साथ क्यों छोड़ रहे हैं?
कभी सोचिए कि आपके चहेते आशुतोष, आशीष खेतान, कुमार विश्वास ने क्यों आपसे किनारा कर लिया? दरअसल, केजरीवाल जी जब आपने अपनी नौकरी छोड़ी थी तो देश को उम्मीद थी कि कुछ बदलाव होगा लेकिन आपके सुर तो बदल गए हैं। अब आपके लिए सत्ता ही सबकुछ है। तभी तो आप जो मन में आ रहा है, बोल रहे हैं।
कांग्रेस भगा रही, फिर भी पकड़ रहे हैं पल्लू
कॉन्ग्रेस आपसे और आपकी पार्टी ‘आप’ से कोई गठबंधन नहीं करना चाहती है। फिर भी आप उसका पीछा कर रहे हैं। ठीक वैसे जैसे छोटा बच्चा अपनी माँ का आँचल नहीं छोड़ता। कांग्रेस तो आपकी विरोधी पार्टी रही है। माँ तो है नहीं जो आप चिपक गए हैं – आखिर क्यों!
युग पुरुष जी कॉन्ग्रेस की शीला दीक्षित कह चुकी हैं कि वो किसी भी तरह से आप और आपकी पार्टी से कोई गठबंधन नहीं करेंगी फिर भी आपको उनके पीछे जाने में शर्म नहीं आती है? और चले भी गए तो पश्चिम बंगाल तक! जाकर पीएम मोदी और अमित शाह पर कॉन्ग्रेस के 70 सालों के कारनामों को बीजेपी के सिर पर मढ़ दिया। ‘सड़जी’ आखिर कब तक ‘ऊल-जुलूल’ बोलकर देश को गुमराह करेंगे?
कभी खाली बैठकर सोचिएगा तो पता चलेगा कि जिस केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जंग छेड़ी थी, वही केजरीवाल आज भ्रष्टाचार में लिप्त कॉन्ग्रेस का दामन थामने के लिए तैयार है!
याद रखिए ‘सड़जी’, जिस जनता ने आपको फर्श से उठाकर अर्स पर बिठाया था, वही जनता 2019 के राजनीतिक समर को भी डिसाइड करेगी। जनता सब जानती है ‘सड़जी’!