अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत हो चुकी है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे ही भूमिपूजन के दौरान इसकी आधारशिला रखी, लिबरल प्रजाति के अगुआ लोगों को ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई भारी-भड़कम हाथी उनकी छाती पर पाँव रख कर गुजरा हो। वैसे भी इस ब्रीड का दाना-पानी राम मंदिर विवाद को लेकर ही चल रहा था और मोदी सरकार ने ये मौका भी उनसे छीन लिया।
जिन्होंने रामायण पढ़ी है वो जानते हैं कि जब भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक होना था, तब उनके पिता राजा दशरथ की तीसरी पत्नी कैकेयी कोपभवन में चली गई थी। राजा पर दो वरदान उधार था। कैकेयी ने भारत का राज्याभिषेक और राम का वनवास माँगा, जिसके लिए उन्हें स्वीकृति देनी ही पड़ी थी। लेकिन, लिबरलों के लिए दुःख की बात ये है कि अबकी वाला राजा कुछ ज्यादा ही कठोर प्रशासक है।
एक तो वो ऐरे-गैरों को वरदान नहीं देता, ऊपर से लिबरल ब्रीड के पत्रकार कैसे उसके पाँव तले बैठ कर गुजरात चुनावों में उसका इंटरव्यू लेते थे, ये उन्हें अब तक याद है। इसीलिए उन्हें पता है कि ये किसी कीमत पर नहीं पसीजने वाला। और राजा के मंत्री की तो बात ही क्या! राजा इनकी बात सुन कर थोड़ा-मोड़ा पसीज भी जाएँ तो मंत्री अपनी उँगली से सीधा उस ओर इशारा करते हैं, जिससे इस ब्रीड के पसीने छूट जाते हैं।
इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है। एक तो ये जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने की पहली बरसी है, ऊपर से लिबरल-सेक्युलर जमात को राम मंदिर भूमिपूजन का भव्य कार्यक्रम देखना पड़ा, जो उन्हें लगता था कि कोरोना के कारण फीका-फीका सा रहेगा। लेकिन, देश की जनता ने भी उनके मजे लेने शुरू कर दिए। घर-घर दीपक जलने लगे और लोग पूजा पर बैठ गए। कार्यक्रम के समय सब टीवी से चिपके रहे।
We launched the Gujarati edition in Oct 1992. Within 6 weeks, our circ rose to 75k. After this Ayodhya headline and coverage there was an avalanche of protest letters. In the next 4 weeks, circ fell to 25k. The edition died, as our marketing head had predicted. https://t.co/6URhdY99P9
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) August 5, 2020
अब कट्टर इस्लामी पत्रकार राणा अयूब को ही देख लीजिए। मैडम सीधा पहुँच गईं ‘वाशिंगटन पोस्ट’ में लेख लिखने और बताया कि किस तरह ये दिन भारत के समुदाय विशेष के लिए बहुत बुरा है। अब इस ब्रीड को कौन समझाए कि ये नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार तो है नहीं कि यहाँ की नीतियाँ अब चीन और अमेरिका जैसे देश डिसाइड करेंगे। शायद अथाह गमों के सागर में डूब कर लेख लिखने वाली अयूब को होश में आने के बाद पता होगा कि अरे, भारत तो अमेरिका की कॉलोनी है ही नहीं।
बेचारे शेखर गुप्ता तो अपने पुराने दिन ही याद कर-कर के काम चला रहे हैं। कभी वो गोधरा दंगों के बाद के ‘इंडिया टुडे’ का कवर याद करते हैं और कभी ‘द प्रिंट’ का वो लेख शेयर करते हैं जिसमें बताया जाता है कि कैसे बाबरी ध्वंस की सुनवाई सही से नहीं हो रही है। सब बूत उठवाने का नारा लगाने वाले राम मंदिर के गम में खुद के बूट के फीते भी नहीं बाँध पा रहे। सब ताज उछालने का नारा देने वाले आगरा वाले ताज की ओर देखने की भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे।
सब तख़्त उछालने का नारा देने वाले के तशरीफ़ खुद के घर में रखे तख़्त पर भी नहीं टिक पा रहे। ‘फक हिंदुत्व’ का नारा देने वालों को भी ‘Premature Ejaculation’ नामक रोग से गुजर रहे हैं। देश के ‘टुकड़े-टुकड़े’ का नारा देने वालों के आकाओं के पास अपने शार्गिदों को देने के लिए बिस्किट के टुकड़े भी नहीं हैं। अब स्वास्थ्य और तकनीक पर लेख लिख कर भारत को बदनाम करने वाली विद्या कृष्णन को ही देख लीजिए।
उनका कहना है कि जिन जेलों में ‘हमारे’ कवि, प्रोफेसर, एक्टिविस्ट और पत्रकार रखे जाते हैं, वो उनके लिए मंदिर से भी ज्यादा पवित्र है। एक हिन्दू के रूप में वो खुद को शर्मिन्दा पा रही हैं। वो कहती हैं कि एक आपदा के बीच टीवी के लिए ये सब ड्रामा रचा गया है। विद्या से पूछा जा सकता है कि कोरोना के बीच वो ट्विटर पर टट्टीनुमा ट्वीट क्यों कर रही हैं? कुछ लिबरलों से तो ये भी पूछा जा सकता है कि वो इस आपदा में साँस ही क्यों ले रहे हैं?
ऑपइंडिया के सटायर विभाग के सूत्रों से पता चला है कि इन सबके बीच सेक्युलर-लिबरल ब्रीड ने सोनू सूद से संपर्क किया है। दरअसल, उन्हें लगता है कि ये वो भारत नहीं है जिसमें वो बड़े हुए हैं, जिसका उन्होंने स्वप्न देखा था और जिसके बारे में किताबों में पढ़ा था। अब उनके लिए तो इस देश में कुछ काम रहा ही नहीं। अरे, ये देश उनके लिए अब अच्छा नहीं रहा न? तो अब वो जाएँगे किसी न किसी देश में।
Today is a day of mourning. For me, the prisons that lodge our poets, profs,activists & journalists are holier than the land on which temples stand.
— Vidya (@VidyaKrishnan) August 5, 2020
As a Hindu, I’m ashamed. As a citizen, I’m appalled at this spectacle made for live television- in the middle of a pandemic.
उन्होंने सोनू सूद से संपर्क किया और समाजिक कामों के लिए जाने जाने वाले अभिनेता ने उनकी बात मान ली। लिबरलों ने गूगल सर्च कर के पाया कि दुनिया में मजहब विशेष के सबसे ज्यादा लोग इंडोनेशिया में हैं। लेकिन, उन्हें जैसे ही पता चला कि वहाँ की एक करेंसी पर भगवान गणेश का चित्र होता है, उन्होंने प्लान कैंसल कर दिया। हालाँकि, पाकिस्तान बगल में है। वहाँ वो क्यों नहीं जा रहे, इस बारे में अभी हमें कुछ पता नहीं चल पाया है।
फिलहाल, उनके पास तुर्की और मलेशिया जैसे विकल्प भी हैं जहाँ ज़ाकिर नाइक भी रह रहा है। लेकिन, गिरोह विशेष दयावान सोनू सूद द्वारा मुफ्त में दी जाने वाली इस सेवा का फायदा उठाने को लेकर विचार-विमर्श करने में ही जुटा हुआ है। जब हिन्दू मेजोरिटी वाले भारत में रह कर भारत और हिन्दुओं को गाली दी जा सकती है और उन्हें बदनाम किया जा सकता है तो फिर कहीं और जाने से क्या फायदा?
उधर सोनू सूद तो फ्लाइट की व्यवस्था किए ही बैठे हैं। वो इसी इन्तजार में हैं कि कोपभवन में से विचार कर के लिबरल गैंग आएगा तो उन्हें कहीं ले जाने के लिए विमान सेवा उपलब्ध कराएँगे। लिबरलों की चिंता ये है कि तुर्की और मलेशिया जैसे देशों में रह कर उन्हें गाली नहीं दी जा सकती। ‘ये हमारा भारत नहीं रहा’ कहने वाले भारत छोड़ने के लिए क्यों तैयार नहीं है, ये तो सबके लिए सोचने वाली बात है।