नमस्कार,
मैं चुच्चा कुमार
जो काम इस महान लोकतांत्रिक देश की वह सरकार नहीं कर पाई जो खुद के मजबूत होने का ढोल पीटती है, वह तालिबान ने कर दिखाया है। उसने साबित किया है कि 56 इंच के सीने से कुछ नहीं होता, एके-56 हाथ में हो तो बहुत कुछ हो जाता है। जो काम इस महान देश की न्यायपालिका नहीं कर सकी, वह अफगानिस्तान में सरकार के ऐलान ने कर दिया है। व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी का ज्ञान लेकर भक्त जो कमाल न कर पाए, वह शरिया से चलने वालों ने कर दिखाया है। वाजपेयी यूँ ही नहीं कहते थे कि आप दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं!
असल में वाजपेयी जानते थे शरिया की ताकत! तालिबान की ताकत! तभी तो विदेश मंत्री रहते जब अफगानिस्तान गए तो गजनी देखने का ख्वाब जताया था। अरे गजनी… वहीं से तो आया था शांतिदूत महमूद गजनवी, जिसने कई बार सोमनाथ मंदिर का सौंदर्यीकरण किया। पर इन्होंने वाजपेयी की सुनी कब।
खैर ताजा खबर यह है कि दिल्ली के बॉर्डर पर महीनों से जमे टेंट उखाड़े जा रहे हैं। करनाल में लंगर डाले किसान भी हट रहे हैं। सब कूच कर रहे हैं इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की ओर। वहाँ खड़ी है काबुल जाने के लिए विमान। इसे विमान में केवल किसान ही सवार नहीं होने जा रहे हैं। बुआ-बबुआ से लेकर भारत का पूरा विपक्ष इसके सवार हैं। यह तालिबान की ही ताकत है कि उसने उत्तर प्रदेश के चुनावों से पहले पूरे विपक्ष को एक कर दिया है। अब योगी जी की खैर नहीं। हें हें हें…
यह चमत्कार तालिबान के एक फैसले से हुआ है। मैं तो खैर इसे फैसला नहीं मानता है। मेरी नजर में यह मास्टरस्ट्रोक है। वक्त की जरूरत थी कि तालिबान कुछ ऐसा कर जिससे भारत का विपक्ष एक हो और इस सांप्रदायिक सरकार को उखाड़ फेंके। वह कैसा लोकतंत्र जो शरिया से न चले? तो तालिबान ने जो 33 मंत्रियों वाली अपनी नई सरकार बनाई है उसमें से 30 मंत्री पश्तून रखे हैं। गाँधी परिवार के समर्थन में 4 मेंबर हक्कानी फैमिली से भी लिए गए हैं। ताजिक और उज्बेक मूल के लोगों को जगह देकर अल्पसंख्यकों को उनका अधिकार भी दिया है। हजारा को बाहर रखा है ताकि उन शियाओं को संदेश मिले जो पड़ोसी मुल्क में सांप्रदायिक सरकार के साथ कई मौके पर खड़े दिखते हैं। पर मास्टरस्ट्रोक वह फैसला है जिसके तहत इस सरकार में न तो दलितों को रखा गया है, न पिछड़ों को। ब्राह्मणों को भी बाहर रखा गया है।
तालिबान ने ऐसा भारत के विपक्षी नेताओं को संदेश देने के लिए किया और चंद घंटे में इसका प्रभाव दिखने लगा है। हमारे संवाददाता अरिमल कुमार को टिकैत ने बताया हमने अल्लाह हू अकबर का नारा लगाया, लेकिन सरकार में केवल मीम को रखा गया। भीम को उनका हक दिलाने के लिए हमने तय किया है कि काबुल जाएँगे। बहन मायावती ने भी ब्राह्मण सम्मेलन रोक दिए हैं। बबुआ अखिलेश यादव ने परशुराम प्रतिमा का निर्माण रुकवा दिया है। ब्राह्मणों के लिए बुआ त्रिशूल लेकर रवाना हुई हैं। बबुआ ने हवाई अड्डे तक पहुँचने के लिए उन्हें अपनी साइकिल पर लिफ्ट दिया है। जय भीम-जय मीम वाले रावण भी साथ हैं। हमारे कैमरामैन खाबा ये एक्सक्लूसिव वीडियो लेकर आए हैं। आप इन्हें देखिए और सहेज कर रखिए। यह भारतीय राजनीति को बदलने वाले क्षण हैं।
पहली नजर में आपको भले ऐसे लगता हो कि ये सब तालिबान से नाराज हैं। पर दूर की सोचिए। शरिया वाली सरकार तो शांति प्रिय है। वार्ता में भरोसा रखती है। वे तो सबका साथ-सबका विकास सुनिश्चित कर देगी। लेकिन जब पलटन काबुल से लौटेगी तो सोचिए यहाँ क्या-क्या उखड़ेगा…
मजा आया न सोचकर… तो सलाम करिए तालिबान प्रवक्ता के उस मुँह को जिसने नई सरकार के गठन का ऐलान किया और लानत भेजिए उन महिलाओं को जो पर्दे का अपना अधिकार नहीं पाना चाहतीं। सजा ही इनकी नियति है। आखिर वह तालिबान की सरकार है और वहाँ साहस की भी मंदी नहीं है।