एक शिक्षक ने एक बार एक छात्र को शेर पर निबंध लिखने के लिए कहा। बेचारे छात्र ने वही लिखा, जो उसने किताबों में पढ़ा था और शेर को देखने-सुनने वालों से जाना था। उसने कुछ ऐसे लिखा, “शेर एक मांसाहारी चौपाया जानवर है, जिसे जंगल का राजा भी कहा जाता है। सिंह शिकार में निपुण होता है। इसकी टाँगें शक्तिशाली होती है, जबड़े मजबूत होते हैं और दाँत ऐसे होते हैं कि किसी भी शिकार को ये खा सकते हैं। इसके गर्दन पर बाल (अयाल) इसे अलग रूप देते हैं।”
शिक्षक लिबरल गिरोह का था। वो भड़क गया। उसने छात्र को दो तमाचे मारे और कुछ मन ही मन बुदबुदाने लगा। उसने पूछा कि तुमने ऐसा शेर कहाँ देख लिया, ऐसा कोई शेर नहीं होता। तो फिर सिंह कैसा होता है? – छात्र ने सवाल पूछा। शिक्षक ने जवाब दिया, “अरे, शेर तो एक अहिंसक जानवर है। वो अहिंसा का प्रतीक है। महात्मा गाँधी का आधिकारिक वाहन वही हुआ करता था। सिंह के मुँह हमेशा बंद रहते हैं, वो भला क्या शिकार करेगा?”
शिक्षक ने आगे समझाया कि सिंह जो है, वो आक्रामक नहीं होता। अब भला शेर भी तो ‘Cat’ ही हैं अर्थात बिल्ली प्रजाति का। अतः, शिक्षक ने घोषणा कर दी क्लास में कि शेर एकदम बिल्ली की तरह होता है। ये कुत्ते की तरह ‘भौं-भौं’ करता है और बिल्लियों की तरह ही लोगों के घरों से रोटी-दूध चुरा कर खाता है। उसने ये भी बताया कि शेर तो चूहे की तरह छोटा होता है और किसी भी जीव को देखते ही डर के मारे भाग जाता है।
उक्त शिक्षक की बात जिन छात्रों ने मान ली, वो उसे क्रांतिकारी समझ कर उसके अनुयायी बन गए। इन अनुयायियों को कालांतर में ‘लिबरल गिरोह’ के नाम से जाना गया। इनमें से अधिकतर पत्रकारिता और नेतागिरी में सक्रिय हैं। अब जब नए संसद भवन के शीर्ष पर 9500 किलोग्राम का और 6.5 मीटर ऊँचे कांस्य के अशोक स्तंभ की प्रतिमा का अनावरण हुआ है, ‘लिबरल गिरोह’ हल्ला मचा रहा है कि शेर को बिल्ली की तरह क्यों नहीं दिखाया, शेर को शेर क्यों दिखा दिया?
अक्षय कुमार की एक फिल्म आई थी अक्टूबर 2015 में – Singh Is Bling (सिंह इज़ ब्लिंग), जिसका एक दृश्य यहाँ जिक्र करने लायक है। इसमें अक्षय कुमार का किरदार ‘रफ़्तार सिंह’ एक चिड़ियाघर में नौकरी कर रहा होता है, तभी साथी दोस्त उसे शेर की रखवाली में छोड़ कर अपनी बेटी का स्कूल में एडमिशन कराने चला जाता है। मेयर साहब आने वाले होते है, लेकिन शेर किसी तरह भाग जाता है। इसके बाद रफ़्तार एक कुत्ते को अयाल लगा कर उसे शेर बना देता है।
भरे कार्यक्रम में बेइज्जती तब हो जाती है, जब चिड़ियाघर का संचालक शेर को दहाड़वाने के लिए रफ़्तार से कहता है और अंत में वो शेर बना ‘कुत्ता’ भौंकने लगता है। नीचे आप भी इस दृश्य का आनंद ले सकते हैं। शायद यही है ‘लिबरल गिरोह’ वाला शेर। या तो इस गिरोह को कभी असली शेर से भेंट हुई ही नहीं, या फिर ये शेर से इतना डरते हैं कि उसकी मूर्ति तक कहीं नहीं देखना चाहते। शेर की मूर्ति से इतनी दिक्कत है, सोचिए अगर असली शेर इनके सामने दहाड़ मार दे तब?
शेर आक्रामक थोड़े होता है? नए संसद भवन पर तो गीदड़ की मूर्ति लगाई जानी चाहिए थी। तब शायद लिबरल गिरोह खुश होता। शेर तो बड़ा ही शांत होता है। एक प्रतियोगिता आयोजित करा के भूखे शेर के पिंजरे में साथ बंद होकर कोई लिबरल ऐसा साबित करना चाहेगा क्या? ‘अहिंसा के प्रतीक’ शेर के बाद आश्चर्य नहीं कि ये ‘भाईचारे का प्रतीक’ डायनासोर को घोषित कर दें। इनकी नजर में छिपकली की तरह ही होता हो कहीं डायनासोर?
ठीक वैसे ही, जैसे लिबरल गिरोह का शेर शांतचित्त, सद्भाव का प्रचार करने वाला और शांति-समानता का सन्देश देने के लिए लाल झंडा उठा कर घूमने वाला होता है। उसके बाल भी सलीके से जावेद-हबीब से कट कराए हुए और कंघी किए हुए होते हैं, किसी नागा साधु की तरह नहीं होते। ये सेक्युलर होता है, 5 वक्त की नमाज पढ़ता है। किसी के मिलते ही हाथ जोड़ कर ‘लोल सलाम’ कहता है। इस शेर के दाँत और पंजे नुकीले नहीं होते, मुलायम और गद्देदार होते हैं।