अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को रामजन्मभूमि पर रामलला की विग्रह पूरे विधि-विधान से स्थापित हो गई। इस अवसर पर दुनिया भर के हिन्दू उन तमाम ज्ञात-अज्ञात रामभक्तों के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे हैं, जिन्होंने बाबर से लेकर मुलायम सिंह यादव तक काल के बीच हुए संघर्षों में अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। मुगल काल में संघर्ष करने वाले उन तमाम योद्धाओं में एक नाम देवीदीन पांडेय का भी है। रामजन्मभूमि के लिए वीरगति पाने वाले भीटी नरेश महताब सिंह के बाद देवीदीन पांडेय दूसरे योद्धा थे। ऑपइंडिया की टीम ने उनके घर जाकर इतिहास और वर्तमान की जानकारी जुटाई।
देवीदीन पांडेय मूल रूप से उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले में ही पड़ने वाले गाँव रहीमपुर दुगवा के रहने वाले थे। उनका मूल काम धर्म का प्रचार था। उनकी यजमानी सरायरसी, राजेपुर और सनेथू गाँवों में थी। यहाँ वो लोगों के घर भागवत कथा आदि का पाठ करते थे। थोड़े समय बाद वो अपने पैतृक गाँव दुगवा रहीमपुर से लगभग 8 किलोमीटर दूर सनेथू के पास बस गए। उनके ही नाम पर अब उस जगह को पंडित का पुरवा कहा जाता है। इस पुरवा में घुसते ही गाँव के बाहर एक देवस्थान बना हुआ है। इस जगह हिन्दू अपने घर में पड़ने वाले शुभकर्म में मत्था टेकते हैं।
घर में आज भी चारों तरफ धार्मिकता
जब ऑपइंडिया की टीम देवीदीन पांडेय के वंशजों के घर पहुँची, तब उनमें से कई दरवाजे पर ही मौजूद मिले। घर के गेट पर स्वस्तिक चिह्न, दोनों तरफ महादेव शिव और बजरंग बली के चित्र बने हुए हैं। घर के अंदर घुसते ही एक बड़ा मंदिर बना हुआ है। परिवार वालों ने बताया कि उस जगह पर मंदिर देवीदीन पांडेय के समय से ही बना हुआ था। बीच में जर्जर होने के चलते वर्तमान पीढ़ी ने नए रूप में उसका जीर्णोद्धार करवाया है। मंदिर के ऊपर कई भगवा ध्वज लगे हुए हैं। अंदर तमाम देवताओं की मूर्तियों के साथ राम दरबार बना हुआ है।
आज भी उस मंदिर में विधि-विधान से पूजा होती है, जिसे कभी देवीदीन पांडेय ने बनवाया था। उनका पुराना पारम्परिक पूजा-पाठ का काम आज भी देवीदीन की 7वीं पीढ़ी करती है। इस परिवार के यजमान भी वही हैं जिनके पूर्वज कभी देवीदीन के साथ रामजन्मभूमि की रक्षा करते हुए बलिदान हो गए थे।
राममंदिर पर हमले से दुखी होकर उठा लिया था शस्त्र
घर पर मौजूद राजेंद्र प्रसाद पांडेय ने खुद को देवीदीन पांडेय की 7वीं पीढ़ी बताया। इतिहास का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज मूल रूप से शास्त्रों की शिक्षा आसपास के गाँवों में देते थे। हालाँकि वो शस्त्र चलाने में भी पारंगत थे। सन 1526-27 में जब पंडित देवीदीन को पता चला कि बाबर के सेनापति मीर बाकी ने राम मंदिर को तोड़ दिया तो वो बेहद दुखी हो गए। इसी बीच उन्हें मंदिर के लिए लड़कर बलिदान हुए राजा महताब सिंह के बारे में भी पता चला। तब उन्होंने शास्त्र त्याग कर शस्त्र उठा लिया और अयोध्या के लिए निकल पड़े। अयोध्या उनके घर से लगभग 15 किलोमीटर दूर है।
आसपास के ग्रामीणों को जमाकर के बनाई सेना
स्वर्गीय रामगोपाल शारद द्वारा कई दशक पहले लिखी गई और अब लगभग विलुप्त हो चुकी पुस्तक ‘श्रीरामजन्मभूमि का रोमांचकारी इतिहास’ में पंडित देवीदीन का उल्लेख मिलता है। इस पुस्तक के मुताबिक, पंडित देवीदीन ने अपने साथ लगभग 10 हजार हिंदुओं की सेना तैयार की थी। इस सेना में पंडित का पुरवा के आसपास के गाँव सरायरसी, राजेपुर और सनेथू आदि के निवासी थे। इनमें से अधिकतर पंडित देवीदीन के यजमान थे। सभी सैनिक रामजन्मभूमि पर मीर बाक़ी के हमले से आक्रोशित थे। जैसे ही ये लोग रामजन्मभूमि के पास पहुँचे, वहाँ मौजूद मुगल फौजों से इनका युद्ध शुरू हो गया।
बाबर के समय से ही पत्थरबाजी करते थे मुगल
स्थानीय इतिहासकार बलराम मिश्रा ने ऑपइंडिया को बताया कि लाखों की तादाद में मौजूद मुगल फ़ौज से महज 10 हजार सैनिकों के साथ भिड़ने वाले देवीदीन पांडेय शुरू में भारी पड़ रहे थे। इसी बीच मुगल फ़ौज ने बाबरी बनवाने के लिए जमा की गईं ईंटों और आसपास से रोड़े उठाकर पत्थरबाजी शुरू कर दी। अचानक हुए इस पथराव से देवीदीन पांडेय कुछ समय के लिए रणनीति नहीं बदल पाए। इसी बीच एक पत्थर उनके सिर पर लगा और खून बहने लगा। देवीदीन पांडेय ने अपनी पगड़ी से बहते खून को रोका और लड़ाई जारी रखी।
मार डाला था मीर बाकी के हाथी और माहवत को
इतिहासकार रामगोपाल शारद अपनी पुस्तक ‘श्रीरामजन्मभूमि का रोमांचकारी इतिहास’ में लिखते हैं कि सिर फट जाने के बाद देवीदीन पांडेय मुगल फ़ौज पर और अधिक आक्रामक हो गए थे। वो अपने घोड़े पर सवार होकर सीधे हाथी पर बैठे मुगल सेनापति मीर बाक़ी के सामने आ गए। उनके ताबड़तोड़ हमलों से मीर बाक़ी का हाथी घायल होकर गिर पड़ा। इसे नियंत्रित करता महावत भी नीचे गिरकर मर गया। हाथी की पीठ पर बंधे हौदे की वजह से मीर बाकी घायल तो हुआ पर वो बच गया। उसने हौदे से ही छिपकर बंदूक से देवीदीन पांडेय पर गोली चला दी।
बलिदान से पहले मारे 700 मुगल फौजी
देवीदीन पांडेय के परिजनों ने हमें बताया कि उनके पूर्वज को वीरगति मीर बाक़ी द्वारा छिपकर चलाई गई गोली से हुई थी। हिन्दू पक्ष की हार का कारण उन्होंने मुगल फ़ौज जैसे उन्नत हथियार न होना और विपक्षी द्वारा युद्ध में नीति का नहीं अपनाना बताया। वंशजों का दावा है कि वीरगति से पहले कई दिनों तक युद्ध चला था। इस युद्ध में अकेले देवीदीन के हाथों सात सौ (700) मुगल फौजियों का वध हुआ था। इतिहासकार स्वर्गीय रामगोपाल शारद भी अपनी किताब में इस आँकड़े की पुष्टि करते हैं। उन्होंने दावा किया है कि यही आँकड़ा बाबर के समकालीन पुस्तक ‘तुजुक बाबरी’ में भी लिखा हुआ है।
देवीदीन पांडेय के साथ गए कुछ को छोड़कर लगभग 10 हजार हिन्दू इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए। परिजन बताते हैं कि देवीदीन का पार्थिव शव उसी जगह पड़ा था, जहाँ आज राम मंदिर का गर्भगृह है। बलिदानी सैनिकों के शवों के साथ भी क्रूरता हुई थी। इस बलिदान से आसपास के क्षत्रिय राजाओं में आक्रोश फैल गया था। देवीदीन पांडेय के बलिदान के बाद रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए क्षत्रिय नरेशों ने लगातार हमले किए। तभी से सरायरसी, राजेपुर और सनेथू आदि क्षेत्रों के तमाम क्षत्रियों ने पगड़ी का त्याग कर दिया था और हर पीढ़ी में रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए संघर्ष का संकल्प लिया था।
आज भी घर पर रखी है देवीदीन की तलवार
देवीदीन के परिजनों ने हमें काफी सहेजकर रखी गई एक तलवार दिखाई। यह तलवार काफी पुरानी है और इस पर जंग लग गया है। इसे एक बेहद पुरानी लकड़ी के खोल में रखा गया है। ऊपर से भगवा कपड़ा लपेटा गया है। इस तलवार पर जगह-जगह खरोंच के निशान बने हैं। नीचे मूँठ बनी हुई है, जो अब हिलती है। युद्ध में बचे गिने-चुने हिन्दू सैनिक इस तलवार को बचाकर गाँव लाए थे। इस परिवार का दावा है कि हनुमानगढ़ी के अंदर अभी भी एक जगह युद्ध में प्रयोग हुआ देवीदीन पांडेय का भाला गड़ा हुआ है। यह जगह हनुमानगढ़ी के मुख्य द्वार पर है, जहाँ आज भी लोग श्रद्धा से शीश झुकाते हैं।
अयोध्या जिले के अधिकतर मुगल बाबर के जमाने के
देवीदीन के परिजन सुनील पांडेय ऑपइंडिया से बात करते हुए दावा करते हैं कि अयोध्या जनपद और आसपास की सीमाओं के अंदर मौजूद तमाम मुस्लिम बाबर के समय में जबरन धर्मांतरित किए गए हिन्दू हैं। उदाहरण के लिए उन्होंने अपने गाँव के बगल सिरसिंडा में एक धर्मांतरित क्षत्रिय परिवार का जिक्र किया। यह क्षत्रिय परिवार खुद को 7 पीढ़ी पहले हिन्दू बताता है। यह वही समय था, जब बाबर का सेनापति मीर बाकी अयोध्या में घुस पर मंदिरों को तोड़ रहा था।
सुनील का दावा है कि बाबर के हमले के समय में अयोध्या सोने की नगरी हुआ करती थी। मुगल फौजों ने पहले मंदिरों को तोड़ा, फिर ग्रामीण इलाकों में घुसकर लूटपाट की। दावा है कि इसी दौरान मुगल फ़ौज ने कई हिंदुओं को तलवार के जोर पर इस्लाम कबूल करवाया। सुनील पांडेय ने अयोध्या के पास मौजूद टांडा जैसे इलाकों का जिक्र किया, जहाँ अब मुस्लिम आबादी बहुलता में है। देवीदीन पांडेय का परिवार ऐसे मुस्लिमों से अपने मूल धर्म में भी लौटने की अपील करता मिला, जिन्हें यह पता है कि उनके पूर्वजों को अत्याचार करके मतांतरित किया गया था।
आज भी तैयार हैं राम के नाम पर बलिदान के लिए
देवीदीन के वंशज सुनील पांडेय ने ऑपइंडिया को बताया कि उनके पूर्वज की शिक्षा आज भी दिलो-दिमाग में मौजूद है। यह परिवार आज भी राम के नाम पर बलिदान होने के लिए तैयार है। इस परिवार के सदस्यों ने मुलायम सिंह यादव द्वारा साल 1990 में कराए गए गोलीकांड को एक आक्रांता के कुकृत्य की संज्ञा दी। नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ को ईश्वर द्वारा भेजे गए दूत बताते हुए इस परिवार ने राम मंदिर बनने पर बेहद ख़ुशी जताई है। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में इस परिवार को निमंत्रण भी दिया गया था। देवीदीन पांडेय का एक वंशज इस प्राण प्रतिष्ठा में शामिल भी हुआ था।