Friday, November 15, 2024
Homeविविध विषयधर्म और संस्कृतिकानपुर का जगन्नाथ मंदिर: कितनी होगी बारिश... कलश से टपकते बूँदों की 'भविष्यवाणी' नहीं...

कानपुर का जगन्नाथ मंदिर: कितनी होगी बारिश… कलश से टपकते बूँदों की ‘भविष्यवाणी’ नहीं हुई कभी गलत

भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के एक ऊपर एक ऐसा चमत्कारी पत्थर लगा हुआ है, जहाँ से जल की बूँदें टपकती हैं। पूरे साल सूखे रहने वाले इस पत्थर से मानसून आगमन के 7-15 दिन पहले बूँदों का रिसाव शुरू हो जाता है। आश्चर्य की बात है कि...

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में भगवान जगन्नाथ का एक ऐसा मंदिर स्थित है जो मानसून की भविष्यवाणी करता है। जिले के एक छोटे से गाँव में स्थित यह मंदिर अनेकों रहस्यों से भरा हुआ है क्योंकि न तो किसी को यह पता है कि मानसून की भविष्यवाणी करती हुई पत्थर से टपकती जल की बूँदें कहाँ से आती हैं और न ही किसी को यह ज्ञात है कि इस मंदिर का निर्माण कब और किसने कराया। ज्ञात है तो सिर्फ इतना कि भगवान जगन्नाथ का यह मानसून मंदिर हजारों ग्रामीणों को अपने कृषि कार्य को समय पर शुरू करने की सहूलियत प्रदान करता है।

मंदिर के इतिहास पर विवाद

कानपुर के भीतरगाँव विकासखंड मुख्यालय से तीन किलोमीटर (किमी) पर बेंहटा गाँव में स्थित भगवान जगन्नाथ के इस मंदिर के निर्माण काल के विषय में इतिहासकारों और पुरातत्वविदों में मतभेद है। गर्भगृह के भीतर और बाहर जो चित्रांकन किए गए हैं, उनके अनुसार इस मंदिर को दूसरी से चौथी शताब्दी का माना जाता है। मंदिर में कुछ ऐसे निशान मौजूद हैं, जिनसे पता चलता है कि यह मंदिर सम्राट हर्षवर्धन के समय का है। हालाँकि इसके अलावा मंदिर में उपस्थित अयागपट्ट के आधार पर कई इतिहासकार इस मंदिर को लगभग 4,000 साल पुराना बताते हैं। हालाँकि मंदिर में आखिरी बार 11वीं शताब्दी में जीर्णोद्धार कराए जाने की जानकारी मिलती है।

कानपुर के इस मानसून मंदिर के निर्माण के विषय में ग्रामीणों का मत है कि इसका निर्माण कई सहस्त्राब्दियों पहले महाराजा दधीचि ने कराया था और इस मंदिर के सरोवर के किनारे में भगवान राम ने अपने पिता महाराजा दशरथ का पिंडदान भी किया था, जिसके बाद से यह सरोवर रामकुंड कहा जाने लगा।

मंदिर की संरचना

ओडिशा और देश के अन्य हिस्सों में स्थित भगवान जगन्नाथ के मंदिरों से अलग कानपुर का यह जगन्नाथ मंदिर गोल गुंबद वाला एक मंदिर है। किसी भी दिशा से देखने पर यह मंदिर गुंबदाकार ही दिखाई देता है। हालाँकि देश के दूसरे जगन्नाथ मंदिरों की तरह ही इस मंदिर में भी भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा मौजूद हैं। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित प्रतिमाएँ काले पत्थरों पर तराश कर बनाई गई हैं। हर साल देश एवं विदेश में आयोजित की जाने वाली रथयात्रा का उत्सव कानपुर के इस मंदिर में भी धूमधाम से मनाया जाता है।

मॉनसून की भविष्यवाणी

कानपुर का यह अतिप्राचीन जगन्नाथ मंदिर मानसून की भविष्यवाणी के लिए देशभर में जाना जाता है। भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के एक ऊपर एक ऐसा चमत्कारी पत्थर लगा हुआ है, जहाँ से जल की बूँदें टपकती हैं। पूरे साल सूखे रहने वाले इस पत्थर से मानसून आगमन के 7-15 दिन पहले बूँदों का रिसाव शुरू हो जाता है। आश्चर्य की बात है कि जब पूरा इलाका गर्मी से जूझ रहा होता है, तब मंदिर के इस पत्थर से जल की बूँदों का टपकना किसी रहस्य से कम नहीं है। हालाँकि मानसून शुरू होते ही बूँदों का रिसाव बंद हो जाता है।

इन बूँदों का आकार मानसून की तीव्रता के बारे में बताता है। अगर जल की बूँदे आकार में बड़ी रहीं तो मानसून के बेहतर रहने का अनुमान लगाया जाता है और छोटी बूँदें मानसून में कमी को बताती हैं। आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि मानसून के विषय में इस मंदिर द्वारा की गई भविष्यवाणी कभी गलत हुई हो। प्रदेश के लाखों किसानों को मौसम विभाग से ज्यादा इस मंदिर पर भरोसा है।

कैसे पहुँचें?

कानपुर, उत्तर प्रदेश के प्रमुख नगरों में से एक है। ऐसे में यहाँ तक पहुँचने के लिए यातायात के साधन देश के सभी हिस्सों से उपलब्ध हैं। जगन्नाथ मानसून मंदिर से कानपुर हवाईअड्डा लगभग 44 किमी की दूरी पर है।

देश के सभी हिस्सों से रेलमार्ग के द्वारा जुड़ा हुआ कानपुर सेन्ट्रल, मंदिर से लगभग 50 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा कानपुर का मुख्य बस स्टैंड की मंदिर से दूरी 40 किमी ही है। इन तीनों स्थानों से जगन्नाथ मंदिर तक पहुँचने के लिए अनेकों स्थानीय साधन उपलब्ध हैं।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ओम द्विवेदी
ओम द्विवेदी
Writer. Part time poet and photographer.

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘गालीबाज’ देवदत्त पटनायक का संस्कृति मंत्रालय वाला सेमिनार कैंसिल: पहले बनाया गया था मेहमान, विरोध के बाद पलटा फैसला

साहित्य अकादमी ने देवदत्त पटनायक को भारतीय पुराणों पर सेमिनार के उद्घाटन भाषण के लिए आमंत्रित किया था, जिसका महिलाओं को गालियाँ देने का लंबा अतीत रहा है।

नाथूराम गोडसे का शव परिवार को क्यों नहीं दिया? दाह संस्कार और अस्थियों का विसर्जन पुलिस ने क्यों किया? – ‘नेहरू सरकार का आदेश’...

नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे के साथ ये ठीक उसी तरह से हुआ, जैसा आजादी से पहले सरदार भगत सिंह और उनके साथियों के साथ अंग्रेजों ने किया था।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -