बेंगलुरु स्थित ‘इसरो टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क मिशन कंट्रोल कॉम्प्लेक्स’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) को लेकर शनिवार (26 अगस्त, 2023) को एक ऐतिहासिक ऐलान किया। उन्होंने चंद्रयान-3 के टचडाउन (लैंडिंग) प्वाइंट को ‘शिवशक्ति’ नाम दिया है। वहीं चंद्रयान-2 के मून लैंडर की क्रैश लैंडिंग साइट का नाम ‘तिरंगा प्वाइंट’ रख दिया है।
चंद्रयान-3 के मिशन को ‘शिवशक्ति’ के पीछे एक अहम वजह है और वो इस मून मिशन पर एक नजर डालने पर साफ हो जाती है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचने की चंद्रयान 2 मिशन की विफलता के बाद चंद्रयान-3 मून मिशन अस्तित्व में आया था। इसरो (ISRO) ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर 14 जुलाई, 2023 चंद्रयान-3 को एलवीएम-3 रॉकेट से अंतरिक्ष में भेजा था।
अंतरिक्ष में 40 दिनों के सफर के बाद, चंद्रयान -3 लैंडर ‘विक्रम’ अपने साथ रोवर ‘प्रज्ञान’ को लेकर बुधवार (23 अगस्त 2023) की शाम को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा। इसके साथ ही भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला पहला देश बन गया।
#WATCH | The spot where Chandrayaan-3’s moon lander landed, that point will be known as ‘Shivshakti’, announces Prime Minister Narendra Modi at ISRO Telemetry Tracking & Command Network Mission Control Complex in Bengaluru pic.twitter.com/1zCeP9du8I
— ANI (@ANI) August 26, 2023
वहीं अमेरिका, रूस और चीन के बाद देश चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश भी बना। यहाँ विक्रम लैंडर की लैंडिंग के बाद चंद्रमा की सतह से आँकड़े जुटाने के लिए रोवर प्रज्ञान उतरा। वो ये सारे आँकड़े इकट्ठा कर विक्रम लैंडर को देगा और वो इसे धरती पर इसरो के पास भेजेगा।
ये भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि चंद्रमा का हिंदू धर्म में बहुत अहम स्थान है। एक तरह से देखा जाए तो इससे जुड़े चंद्रयान मिशन में भी चंद्रमा जैसा धैर्य और तपस्या रही तभी जाकर कहीं भारत इस गौरवपूर्ण पल का साक्षी बना। वो चंद्रमा जैसी धैर्य, तपस्या और अपने लक्ष्य की निरंतरता ही थी जो उन्हें भगवान शिव के मस्तक पर आभूषण के रूप में सजने का सौभाग्य मिला।
सनातन धर्म में प्रकृति की पूजा का विशेष महत्व है। नदियों से लेकर पर्वतों तक को यहाँ देवी-देवताओं के रूप में पूजा जाता है। उन्हें लेकर कई कथाएँ हैं। ठीक उसी तरह सूर्य से लेकर चंद्रमा तक भी अलग-अलग लोकों के देवता बताए गए हैं। आपने अक्सर भगवान शिव की तस्वीरों और प्रतिमाओं में उनकी जटा के ऊपर अर्धचंद्र को देखा होगा। अब जब चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भारत के ‘चंद्रयान 3’ की लैंडिंग पॉइंट का नाम ‘शिवशक्ति’ रखा गया है, आइए जानते हैं कि पौराणिक कथाओं के हिसाब से शिव और चंद्र का ये साथ कैसे बना।
भगवान शिव की अर्द्धांगिनी पार्वती यानी शक्ति चंद्रमा की पत्नी की बहन थी तो ‘चंद्रयान-3’ के टचडाउन प्वाइंट को ‘शिवशक्ति’ नाम मिला। यहाँ पर चंद्रमा के धार्मिक महत्व और भगवान शिव के साथ चंद्र देव (चंद्र) के संबंध के बारे में जानना आवश्यक हो जाता है।
हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव के सिर पर अर्धचंद्राकार चंद्रमा उनकी गहन आध्यात्मिकता को बढ़ाता है। भगवान शिव से जुड़ी हर चीज का अपना अलग महत्व है। वैदिक साहित्य में कई कथाएँ ब्रह्मा-विष्णु-शिव और अन्य देवताओं को लेकर है। कुछ ऐसा ही कथाएँ भगवान शिव और चंद्रमा को लेकर भी है।
ससुर दक्ष से चंद्रमा को मिला था श्राप
भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष थे। उनकी प्रसूति और वीरणी नामक 2 पत्नियाँ थीं। दक्ष की प्रसूति से 24 और वीरणी से 60 पुत्रियाँ थीं। प्रसूति की पुत्रियों में से एक सती ने दक्ष की इच्छा के विरुद्ध भगवान शिव से विवाह किया था।
वीरणी की 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से किया गया। माना जाता है कि 27 नक्षत्र ही प्रजापति दक्ष की पुत्रियाँ हैं। इनमें से रोहिणी को चंद्रमा सबसे अधिक प्रेम करते थे। इससे दुखी होकर चंद्र की अन्य 26 पुत्रियों ने राजा दक्ष से उनकी शिकायत कर दी थी। अपनी अन्य पुत्रियों के दुखी देख राजा दक्ष नाराज हो गए और उन्होंने चंद्रमा को क्षय हो जाने का श्राप दे दिया। इस श्राप से उनकी चमक कम होने लगी और वो धीरे-धीरे अपनी मृत्यु की तरफ बढ़ने लगे। हैरान-परेशान चंद्रमा को ऐसे में अपनी परेशानी दूर करने के लिए ब्रह्मा जी याद आए।
‘भगवान शिव के पास जाएँ आप’
श्राप के डर से चंद्र तुरंत भगवान ब्रह्मा के पास सलाह माँगने पहुँचे। ब्रह्मा ने उन्हें भगवान शिव के पास जाने की सलाह दी। चंद्रमा भगवान ब्रह्मा की शरण में पहुँचे। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, चंद्रमा ने श्राप से मुक्ति पाने के लिए ऋषिकेश में गंगा के किनारे 14,500 देव सालों तक भगवान शिव की घोर तपस्या की थी।
इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने चंद्रमा को एक बूढ़े ब्राह्मण के रूप में दर्शन दिया था और श्राप मुक्त करवाया था। शिव के दर्शन पर चंद्रमा ने अपनी पूरी परेशानी उन्हें कह डाली। चंद्रमा की बात सुनने के बाद भगवान शिव ने उनसे कहा कि श्राप को खत्म नहीं किया जा सकता, क्योंकि दक्ष को एक प्रजापति होने के नाते चंद्रमा सहित अपनी प्रजा के भाग्य का फैसला करने का पूरा अधिकार था।
वहीं दूसरी तरफ, चंद्रमा की अनुपस्थिति ने प्रकृति के संतुलन बिगाड़ दिया, क्योंकि ब्रह्माण्ड के अनगिनत जीवन उनकी कोमल चाँदनी पर निर्भर थे। ऐसे में भगवान शिव को रास्ता निकालना पड़ा, जिससे की चंद्रमा की जान भी बच जाए और दक्ष का श्राप भी बरकरार रहे। तब भगवान शिव ने चंद्र को श्राप से मुक्त करते हुए अपना आशीर्वाद देते हुए कहा कृष्णपक्ष के दौरान आपकी रोशनी कम हो जाएगी और शुक्लपक्ष के दौरान आपकी चमक ज़्यादा रहेगी। इससे सभी का कल्याण होगा।
इसके बाद, शिव ने एक पखवाड़े के लिए चंद्रमा की महिमा को बढ़ाने के लिए उन्हें अर्धचंद्र को अपने सिर पर सजाया। इससे चंद्रमा के बढ़ने और घटने का चक्र शुरू हुआ। भगवान शिव महाकाल है वो समय की बाधाओं से परे हैं। चंद्रमा का घटना-बढ़ना भगवान शिव की समय पर नियंत्रण की शक्ति का दिखाता है।
हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक, इस घटना से पता चलता है कि चंद्रमा कृष्ण पक्ष यानी पूर्णिमा से अमावस्या के दौरान घटते हुए दिखाई देते हैं। वहीं अमावस्या से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष में चंद्रमा बढ़ते है। चंद्रमा की यही गति हिंदू कैलेंडर का आधार बनती है। शुक्ल का अर्थ है उज्ज्वल। कृष्ण का अर्थ है अंधेरा। पक्ष का अर्थ है पखवाड़ा यानी 15 दिन। इससे ये भी साफ़ है कि चन्द्रमा के घटने-बढ़ने को लेकर हमारे मनीषियों को अधिकतर चीजें पता थीं। उन्हें नक्षत्रों के बारे में भी पता था।
माना जाता है कि चंद्र देव मन के क्षेत्र पर प्रभुत्व रखते हैं। भगवान शिव चंद्र देवता पर भी शासन करते हैं। शिव सभी ध्यान संबंधी ऊर्जाओं के स्रोत हैं। यह प्रभाव शिव के स्वयं के ध्यान और भौतिक जगत से वैराग्य से पैदा होता है। हालाँकि, उनका यह स्वभाव उदासीनता का संकेत नहीं देता है। वह उन लोगों को तुरंत आशीर्वाद देते हैं जो अपने दिमाग को विकसित करने और नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं।
शीतलता के लिए भगवान शिव ने चंद्र को किया धारण
एक दूसरी धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने जगत कल्याण के लिए विष पिया था। शिवपुराण में बताया गया है कि जगत की रक्षा के लिए समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल विष का शिव ने पान किया था। माता पार्वती यानी शक्ति ने उनके गले पर हाथ रखकर इस विष को उनके शरीर में जाने से रोका था। इससे ये विष उनके कंठ में जमा हो गया। इससे उनका पूरा कंठ नीला पड़ गया।
इस वजह से भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है। विषपान के असर से उनका शरीर बेहद गर्म होने लगा। तब देवताओं ने उनसे चंद्रमा को शीश पर धारण करने की प्रार्थना की, ताकि उनके शरीर में शीतलता हो। श्वेत चंद्रमा से सृष्टि को शीतलता मिलती है, इसलिए भगवान शिव ने उन्हें अपने मस्तक पर धारण कर लिया।
भगवान शिव के संबंध में चंद्रमा का यही महत्व रहा है। चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर के लैंडिंग बिंदु को ‘शिव शक्ति पॉइंट’ नाम देकर भारत सरकार ने भारत की सभ्यता, धर्म और संस्कृति जैसी धारणाओं का सही अर्थों में सम्मान किया है।