उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में मकर संक्रांति के पर्व पर 15 जनवरी से शुरू हुए दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक और आध्यात्मिक कुम्भ मेले का 4 मार्च को महाशिवरात्रि के अंतिम स्नान के साथ समापन हो चुका है। 49 दिनों तक चले इस भव्य मेले में देश-विदेश के करीब 23 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, 4 मार्च को हुए महाशिवरात्रि के आखिरी स्नान पर करीब 1.10 करोड़ लोगों ने संगम में डुबकी लगाई। 15 जनवरी से 4 मार्च तक चलने वाले भव्य कुम्भ मेले ने कई वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़े और कई नए कीर्तिमान बनाए हैं।
कुम्भ मेला नाम सुनते ही हिंदी फिल्मों में दिखाया गया वो सीन याद आ जाता है, जब भीड़ और भगदड़ के बीच 2 भाई कुम्भ में बिछड़ जाते हैं। लेकिन कुम्भ मेले की भगदड़ का ये सीन केवल बिछड़ने तक ही नहीं बल्कि अनेक लोगों की मौत तक का कारण भी हुआ करता था। हालात ये हैं कि अभी भी लोग कुम्भ की भीड़ और किसी अनहोनी की आशंका से डरते हैं और यदि देखा जाए तो उनका डर गलत भी नहीं है क्योंकि भारत में ब्रिटिश सत्ता के समय से ही हिन्दू संस्कृति, त्यौहारों, मेलों की पूरी अनदेखी की गई और व्यवस्था, सुरक्षा, एवं सुविधा को हल्के में लिया गया।
वर्तमान केंद्र सरकार और योगी आदित्यनाथ के संयुक्त प्रयासों ने प्रयागराज कुम्भ के आयोजन में एक कीर्तिमान स्थापित किया है। इस सरकार ने हर मायने में यह साबित किया है कि हिन्दू आस्थाओं के प्रति संवेदनशीलता और तत्परता दिखाई जाए तो उन्हें दुर्घटनाओं से बचाया जा सकता है।
1820 का हरिद्वार कुम्भ मेला इतिहास में दर्ज वह कुम्भ है, जिसमें ज्ञात स्रोतों के मुताबिक भगदड़ से 450 से भी ज्यादा तीर्थयात्रियों की मौत हुई और 1000 से ज्यादा लोग घायल हुए। इसके बाद 1840 के प्रयाग कुम्भ मेले में 50 से अधिक मौतें हुईं। तत्कालीन सरकारी तंत्र में लगातार मची उथल-पुथल और व्यवस्था के मामूली इंतजामों के कारण इसके बाद के प्रत्येक कुम्भ में भी भगदड़ से तीर्थयात्री मरते रहे, जिनका आधिकारिक ब्यौरा तक उपलब्ध नहीं है। यदि 20वीं शताब्दी की बात करें तो 1906 के प्रयाग कुम्भ मेले में भगदड़ से 50 से अधिक मौतें हुईं और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
प्रधानमंत्री नेहरु के संसदीय क्षेत्र प्रयाग में आजादी के बाद आयोजित प्रथम कुम्भ की दर्दनाक भगदड़
जब भी कुम्भ मेले की भगदड़ों का नाम आता है तो वर्ष 1954 के प्रयाग कुम्भ का रक्तरंजित इतिहास आँखों के सामने आ जाता है। ‘द गार्जियन’ के अनुसार 3 फरवरी, 1954 को मौनी अमावस्या के दिन शाही स्नान में 800 से अधिक श्रद्धालुओं की भयानक भगदड़ में मौत हुई। ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ के अनुसार यह आँकड़ा हजार मौतों से ज्यादा का है। तत्कालीन प्रधानमंत्री और इलाहबाद से सांसद जवाहरलाल नेहरू उस दिन कुम्भ मेला क्षेत्र में ही उपस्थित थे। सरकार द्वारा केवल कुछ भिखारियों के मरने का दावा किया गया था। लेकिन तत्कालीन नेहरू सरकार का ‘सरकारी झूठ’ तब सामने आया जब एक पत्रकार ने गहनों से लदी महिलाओं की लाशों की तस्वीर अख़बार में छाप दी थी।
प्रयागराज (इलाहबाद) की इस भयावह घटना के गवाह कुछ लोग बताते हैं कि मृतक संख्या कम दिखाने के लिए शासन द्वारा दर्जनों शव पेट्रोल डाल कर जला दिए गए थे। हालाँकि, यह सब आधिकारिक रिकॉर्ड्स में कब दर्ज होता है? लाशों के कई ढेर पुलिस की घेराबंदी करके जलाए गए लेकिन कुछ पत्रकार फिर भी तस्वीरें खींच लाए। हादसे की तस्वीरें खींचने वाले अकेले फोटो पत्रकार एनएन मुखर्जी ने संस्मरण में बताया था कि दुर्घटना के अगले दिन अख़बारों में शवों की तस्वीरें देखकर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंदबल्लभ पंत ने दाँत पीसते हुआ कहा था, “कौन है ये हरामज़ादा फ़ोटोग्राफ़र?”
कुम्भ मेले में भगदड़ से मौतों का सिलसिला यहीं नहीं थमा। ‘द गार्जियन’ के अनुसार, मार्च
1986 के हरिद्वार कुम्भ मेले में हुई 3 भगदड़ों 600 से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई। इसी
साल 1986 में ही जनवरी में हुए प्रयाग कुम्भ मेले में भगदड़ में 50 से अधिक लोगों की मौत
हुई थी।
21वीं सदी में भी नहीं थमीं कुम्भ में अव्यवस्था से जन्मी भगदड़ से मौतें
कुम्भ मेले में भगदड़ का सिलसिला वर्ष 2000 के बाद भी नहीं बदला और लगातार प्रत्येक कुम्भ में शासन-प्रशासन के गैर जिम्मेदाराना रवैये के कारण तीर्थयात्रियों की मृत्यु का सिलसिला जारी रहा। ‘द ट्रिब्यून’, और ‘द गार्जियन’ के अनुसार, 27 अगस्त 2003 को नासिक कुम्भ में मची भगदड़ में 39 श्रद्धालुओं की मौत हुई और 150 से 200 लोग घायल हुए। इसके बाद वर्ष 2010 के हरिद्वार कुम्भ मेले में भगदड़ में 7 लोगों की मौत हुई और 2 लोगों की डूबकर मौत हुई। वर्ष 2013 के प्रयागराज कुम्भ मेले में 10 फरवरी को मची भगदड़ में 36 श्रद्धालुओं की मृत्यु हुई। 5 मई 2016 को उज्जैन के सिंहस्थ कुम्भ मेले में मची भगदड़ में 10 लोगों की मौत हुई और 100 से ज्यादा श्रद्धालु घायल हुए।
इसके अलावा पिछले 200 सालों में जो भी कुम्भ हुए, उनमें भगदड़ से मौतें होती रहीं, संभवतया कई आंकड़े बदनामी के डर से दस्तावेजों में शामिल नहीं हो पाए। इसके साथ ही सांप्रदायिक हिंसा और आग लगने से भी कुम्भ मेलों में कई मौतें हुईं। हरिद्वार के कुम्भ मेलों में
हैजा बीमारी के संक्रमण से हजारों लोगों की मृत्यु का इतिहास रहा है।
2019 प्रयागराज कुंभ में किसी भी प्रकार की कोई अशुभ घटना नहीं घटी
इस वर्ष प्रयागराज में आयोजित अर्द्धकुंभ, जिसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भरपूर प्रयासों ने महाकुम्भ बना दिया है, में श्रद्धालुओं की सुविधा, सुरक्षा और स्वच्छता का बहुत अधिक ध्यान रखा गया है। भीड़ प्रबंधन के इतने व्यापक इंतजामों के कारण मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और वसंत पंचमी के तीनों सबसे बड़े शाही स्नानों के संपन्न हो जाने पर भी करोड़ों श्रद्धालुओं में से एक भी हताहत नहीं हुआ। मौनी अमावस्या पर आंकड़ों के अनुसार, 5 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम पर डुबकी लगाई परन्तु भगदड़ या धक्कामुक्की और किसी जान-माल की हानि का एक भी मामला सामने नहीं आया जो कि हर लिहाज से चौंकाने वाला आँकड़ा है।
कुम्भ मेले में शाही स्नान के दौरान सभी पुलों पर लोगों को नदी में गिरने से बचाने के लिए रेलिंग के आलावा अतिरिक्त सुरक्षा के लिए CRPF द्वारा मानवनिर्मित चेन बनाई गई, जिसके बीच से ही श्रद्धालु पुल पार कर सकते हैं। इसके साथ ही 2019 का यह प्रयाग कुम्भ मेला 32 हजार हेक्टेयर भूमि में फैला हुआ है। जबकि 2013 का मेला क्षेत्र केवल 1900 हेक्टेयर भूमि पर ही था, जो 2019 कुम्भ मेले के मुकाबले लगभग 17 गुना कम था। इतने अधिक फैलाव के कारण भीड़ बहुत व्यापक क्षेत्र में विभाजित हो गई है, जिससे भगदड़ जैसी किसी भी अनहोनी की आशंका शून्य रही।
प्रयागराज मेले के आधिकारिक कार्यालय के अनुसार मेले में उप्र. पुलिस के 30,000 से भी ज्यादा पुलिसबल (जो 2013 के मुकाबले लगभग 2.5 गुना हैं), पी.ए.सी. की 20 कंपनियाँ,
NDRF की 10 कंपनियाँ, CAPF की 54 कंपनियाँ, और SDRF की 1 कंपनी, NSG की एक स्पेशल टीम, 6,000 होमगार्ड, डॉग स्क्वाड की 15 टीम और कम से कम 20 कंपनियाँ संयुक्त रूप से मेले की सुरक्षा व्यवस्था में तैनात की गई थीं। मेले में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए घुड़सवार पुलिस भी लगाई गई। मेला क्षेत्र में 1,135 CCTV कैमरे लगाए गए, जो चप्पे चप्पे पर नजर बनाए रखने में सहायक हुए। इसके साथ ही सरकार द्वारा एम्बुलेंस, इमरजेंसी, यातायात, साइन बोर्ड की व्यापक व्यवस्था की गई थी। (स्रोत- फर्स्टपोस्ट)
कुम्भ अपर मेला अधिकारी दिलीप कुमार त्रिगुणायत के अनुसार, “प्रयाग कुम्भ में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए उच्चस्तरीय चक्रव्यूह रचना की गई, जिसके अंतर्गत मैदान में बल्लियों से ज़िग-ज़ैग रास्ता बनाया गया ताकि भीड़ को एक बार चक्रव्यूह में घुसने के बाद, वापस निकलने
में कम से कम एक से डेढ़ घंटे का समय लगे, और इतना समय भीड़ नियन्त्रण के लिए पर्याप्त
होगा। इस चक्रव्यूह का मकसद संगम तट पर ज्यादा भीड़ आने पर पीछे की भीड़ को रोकना है ताकि अव्यवस्था के कारण भगदड़ की स्थिति न पनपने पाए।” हालाँकि, उन्होंने बताया कि तीनों शाही स्नान पर्व बिना इस चक्रव्यूह का उपयोग किए ही सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गए क्योंकि अन्य सुरक्षा व्यवस्था ही इतनी अच्छी रही कि उच्चस्तरीय चक्रव्यूह व्यवस्था का उपयोग ही नहीं करना पड़ा।
इस तरह 200 सालों के ज्ञात इतिहास में प्रयागराज का यह अर्द्धकुंभ, जिसे योगी सरकार ने
महाकुंभ बना दिया, वह बिना किसी जानमाल की हानि, भगदड़ या श्रद्दालुओं के डूबने जैसी अनहोनी के सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ है। सभी श्रद्धालु प्रयागराज कुम्भ की विश्वस्तरीय व्यवस्था के लिए उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ की दिल खोलकर तारीफ़ कर रहे हैं। कुम्भ अब आधिकारिक रूप से संपन्न हो चुका है। सबसे बड़े शाही स्नान संपन्न हो चुके हैं, मेलाक्षेत्र से भीड़ अब कम होने लगी है, वसंत पंचमी के बाद वैष्णव साधु जाने लगे थे। शिवरात्रि तक प्रमुखतया सिर्फ शैव संन्यासी ही प्रयाग में मौजूद थे।
यह 2019 का कुम्भ हर हाल में राज्य और केंद्र सरकार की एक बहुत बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा सकता है। इतने विशाल जनसैलाब का सफलतापूर्वक प्रबंधन करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती मानी जाती थी। लेकिन मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने यह साबित कर दिखाया कि हिन्दुओं की आस्था को यदि प्राथमिकता और समय दिया जाए तो उन्हें आसानी से ही किसी आपदा में बदलने से रोका जा सकता है।