पैगम्बर मोहम्मद को इस्लामी मजहब का संस्थापक माना जाता है। पैगम्बर ने कई लड़ाइयों में भी हिस्सा लिया था, जिसके बारे में अलग-अलग इतिहासकारों ने कई पुस्तकों में जिक्र किया है। क़ुरान जैसे इस्लामिक साहित्य में भी जीसस का जिक्र है और माना जाता है कि अल्लाह द्वारा भेजे गए पैगम्बरों में मुहम्मद को इस्लाम की शिक्षा-दीक्षा देने के लिए धरती पर भेजा गया था। आजकल जब ‘जिहाद’ की बातें होती हैं, तब लोग इस्लाम के इतिहास में इसका मूल खोजने निकलते हैं। इस शब्द का प्रयोग आतंकियों द्वारा किया जाता रहा है। जम्मू कश्मीर में भारतीय नागरिकों का ख़ून बहाने वाले भी इसे जिहाद की ही संज्ञा देते हैं।
यहाँ हम पैगम्बर मुहम्मद से जुड़ा एक किस्सा बताने जा रहे हैं। इसका जिक्र कई ऐतिहासिक पुस्तकों में है। समय-समय पर कई इतिहासकारों ने इस घटना का जिक्र किया है और पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर की पुस्तक ‘The Shade of Swords: Jihad and the Conflict between Islam and Christianity‘ में भी इसका जिक्र है। कहानी शुरू होती है खुसरो-II से, जो सातवीं सदी के पहले दशक में पर्सिया (फारस) पर राज करता था और उसके नेतृत्व में वह साम्राज्य अजेय नज़र आता था। यहाँ बाइजेंटाइन (पूर्वी रोमन) साम्राज्य के अधिपति हेराक्लियस का भी जिक्र आता है।
हेराक्लियस (Heraclius) एक प्रसिद्ध योद्धा भी था, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह निहत्था शेर से भी लड़ जाया करता था। उस काल में भारत में महान सम्राट हर्षवर्धन का राज था। उसने फारसियों को चुनौती दी थी। फारसियों ने न सिर्फ़ येरुसलम पर कब्ज़ा कर लिया था बल्कि वहाँ के ‘True Cross’ को भी अपने शिकंजे में ले लिया था। वे ‘ट्रू क्रॉस’ को फारस ले गए थे। इसके साथ वे कई अन्य बहुमूल्य चीजें भी लूट कर ले गए थे। आगे बढ़ने से पहले बता दें कि ‘True Cross’ ईसाई समुदाय में काफ़ी महत्ता रखता है क्योंकि कहा जाता है कि यही वो क्रॉस है, जिस पर जीसस को लटकाया गया था।
The Emperor Heraclius defeats the Persians in a 20+ year war that saw Persian armies raiding all the way to the Bosporus and Avars beseiging Constantinople. The true cross is returned and Rome is triumphant! All will be well!
— That’s Rich (@Misterchief) January 29, 2019
And then 4 years later Muhammad begins his conquest https://t.co/7EYx61kbe6
फारसियों ने तब जेरुसलम के चर्च में भी काफ़ी तोड़-फोड़ मचाई थी। मक्का में स्थानीय रूढ़िवादियों ने जेरुसलम पर कब्जे का जश्न मनाया था। और वो पैगम्बर मुहम्मद के विरोधी भी थे। उन्होंने पैगम्बर पर तंज कसते हुए कहा था कि अल्लाह जेरुसलम को बचाने में नाकाम सिद्ध हुआ। यह भी जानना ज़रूरी है कि हेराक्लियस के बाइजेंटाइन साम्राज्य को ही पूर्वी रोमन साम्राज्य के रूप में जाना जाता है। क़ुरान में भविष्यवाणी की गई थी कि रोमन साम्राज्य वापसी करेगा (मतलब तब का इस्लाम फारसियों के बजाय रोमन के ज्यादा नजदीक थे) और बाद में ऐसा ही हुआ। हेराक्लियस ने समुद्री युद्ध का प्रयोग किया और फारसियों को खदेड़ डाला। क़ुरान में लिखा गया था कि भले ही रोमन आज हार गए हों लेकिन अल्लाह की मर्जी से वे कुछ ही सालों में विजेता होंगे।
सन 628 में हेराक्लियस ने ‘ट्रू क्रॉस’ को वापस लाकर जेरुसलम में जीत का पताका फहराया। भारत ने भी उसकी इस उपलब्धि पर उसे बधाई दी थी। अब यहाँ पैगम्बर मुहम्मद की एंट्री होती है। जब रोमन साम्राज्य का अधिपति हेराक्लियस जेरुसलम में था, तब उसके पास एक चिट्ठी आई। वह चिट्ठी मदीना से आई थी, पैगम्बर मुहम्मद की तरफ़ से। रोमन इस चिट्ठी को पाने वाले अकेले नहीं थे। इसी प्रकार के पत्र पर्सिया, अबसीनिया, बहरीन, ओमान और मिस्र भी भेजे गए थे। पर्सिया के बादशाह खुसरो (राजाओं का राजा, जिसे मध्य फ़ारसी साम्राज्य में शहंशाह कहा गया) ने मुहम्मद के इस पत्र पर आपत्ति जताई।
पर्सिया के राजा ने आदेश दिया कि जिसने भी इस पत्र को भेजा है, उसे तुरंत गिरफ़्तार किया जाए। इतना ही नहीं, पर्सिया के राजा ने पैगम्बर मुहम्मद के भेजे उस पत्र को फाड़ कर फेंक दिया था। उसे इस बात से नाराज़गी थी कि इस पत्र में पैगम्बर की बात न मानने पर साम्राज्य के तबाह हो जाने की बात कही गई थी। जब पैगम्बर मुहम्मद को इसकी सूचना मिली तो उन्होंने कहा कि इसी तरह साम्राज्य भी चिथड़े-चिथड़े हो जाएगा। मुहम्मद ने भविष्यवाणी करते हुए कहा कि उनका मजहब और सम्प्रभुता उन ऊँचाइयों को छुएगा, जहाँ तक फ़ारसी आज तक पहुँच भी नहीं पाए हैं। इसके बाद उन्होंने खुसरो को सीधी चुनौती दे डाली।
खुसरो इस बात से नाराज़ था कि किसी ने ख़ुद को उसके ‘बराबर समझने की हिमाकत’ की थी। उसने यमन के शासक को मुहम्मद को गिरफ़्तार करने के लिए भेजा। इसके बाद यमन का वह शासक ही मुस्लिम बन बैठा और उसने यमन को इस्लामी राज्य का हिस्सा बना लिया, जो पल-पल अपना विस्तार कर रहा था। अब आते हैं रोमन पर। पैगम्बर को ये बात पता थी कि रोमन साम्राज्य का राजा ऐसे किसी भी पत्र को भाव नहीं देता है, जो सीलबंद न हो। इसीलिए, उन्होंने एक चाँदी के अंगूठे को लिया और उसके माध्यम से ख़ुद की पहचान बताई। पैगम्बर मुहम्मद ने ख़ुद को अल्लाह का दूत बताया।
अब उस पत्र पर आते हैं। उस पत्र में चीजें संक्षेप और सीधी भाषा में लिखी हुई थीं। इस पत्र में लिखी बातों को पढ़ कर आज की दुनिया के हालात भी बयाँ हो जाते हैं। पैगम्बर मुहम्मद ने अपने इस पत्र में लिखा था:
“सर्वाधिक परोपकारी और परम दयालु अल्लाह का नाम लेते हुए मैं अल्लाह का दूत और अल्लाह का दास मुहम्मद ये पत्र बाइजेंटाइन साम्राज्य के शासक हेराक्लियस को भेज रहा हूँ। इस मार्गदर्शन का अनुसरण करने वालों के जीवन में शांति बनी रहे। अगर इस्लाम अपना लोगे तो तुम सुरक्षित रहोगे। अगर इस्लाम अपनाओगे तो अल्लाह तुमको उम्मीद से ज्यादा इनाम से नवाजेगा। लेकिन, अगर तुमने मेरे निमंत्रण को ठुकरा दिया तो इसका अर्थ है कि तुम अपने लोगों को गुमराह कर रहे हो।”
पैगम्बर मुहम्मद और ईसाईयों के बीच काफ़ी संघर्ष और युद्ध हुआ करते थे। ‘बुक ऑफ जिहाद’ में बुखारी लिखते हैं कि पैगम्बर मुहम्मद ने एक महिला से कहा था कि मुस्लिमों का जो भी पहला जत्था समुद्री अभियान पर निकलेगा, उसे अल्लाह जन्नत बख्शेगा। उन्होंने मुस्लिमों के इस जत्थे को ‘जिहादी’ कह कर सम्बोधित किया था। पैगम्बर मुहम्मद के समय से ही ‘जिहाद’ इस्लाम का एक जाना-पहचाना शब्द बन गया और इसका प्रयोग होने लगा। आज आलम ये है कि विश्व का सबसे खूँखार आतंकी संगठन भी ख़ुद को ‘जिहादी’ बताता है। सवाल तो अब भी बना हुआ है- ‘क्या जिहाद का मतलब इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए युद्ध करना है?’
मुस्लिम मानते हैं कि एडम और जीसस की ही श्रृंखला में मुहम्मद भी आते हैं, जिन्हें अंतिम पैगम्बर भी कहा गया है। इस्लाम मानता है कि ईश्वर के हिस्से नहीं किए जा सकते और इसीलिए यह मजहब किसी को भी ईश्वर का पुत्र मानने से इनकार कर देता है। इसे तौहीद कहा गया है, जिसे आप एकेश्वरवाद की संज्ञा भी दे सकते हैं। ये पैगम्बर मुहम्मद और जिहाद को लेकर एक सच्ची कहानी थी, जिससे पता चलता है कि इस्लाम अपनाने और युद्ध के द्वारा इसका प्रचार-प्रसार करने की प्रक्रिया तभी शुरू हो गई थी, जब पैगम्बर मुहम्मद जीवित थे। उनके निधन के बाद ये प्रक्रिया और तेज़ हुई। ये आज भी चली आ रही है।
(यह लेख पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर की पुस्तक और इस्लाम के पवित्र पुस्तक ‘सहीह-अल-बुखारी’ पर आधारित है।)