अयोध्या में 5 अगस्त के आयोजन की तैयारियाँ लगातार जारी हैं। श्रीराम की जन्मभूमि में उनके मंदिर के स्थापना की नींव रखे जाने की प्रक्रिया पूरी रफ़्तार से आगे बढ़ रही है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में भव्य राम मंदिर की आधारशिला रखी जाएगी। इस दौरान ऐसे तमाम किस्से और किरदार सामने आ रहे हैं, जिन्होंने इस अभियान को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। आज़ादी के पहले से लेकर आज़ादी के बाद, उनमें से कुछ के बारे में हम जानते हैं और कुछ के बारे में नहीं या बहुत कम जानते हैं।
राम मंदिर शिलान्यास और भूमिपूजन का समय नज़दीक होने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई अहम बातें कही हैं। इस पावन घड़ी की प्रतीक्षा करते हुए पीढ़ियाँ ख़त्म हो गईं। राम के नाम में आस्था रखने वालों ने 5 शताब्दी तक इस अवसर की प्रतीक्षा की। तमाम कठिनाइयों के बावजूद राम मंदिर निर्माण के लिए संघर्ष करने वालों ने हार नहीं मानी। उसका ही परिणाम है कि राम मंदिर बहुत जल्द आकार लेने वाला है। करोड़ों लोगों की आस्था का सबसे प्रबल प्रतीक उनके सामने होगा। मर्यादा पुरुषोत्तम का एक वनवास सदियों पहले ख़त्म हुआ था और दूसरा अब ख़त्म हुआ है। इसके बाद वह अपनी जन्मभूमि स्थित सिंहासन पर विराजमान होंगे। इस पूरे अभियान और संघर्ष में कुछ नाम ऐसे थे जिनके उल्लेख के बिना पूरा विषय अधूरा है।
किन संतों को भूलना मुश्किल
इसमें सबसे पहला नाम है दादागुरु ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री दिग्विजय नाथ जी महाराज। उनके अलावा परमपूज्य ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज। इन दोनों विभूतियों ने राम मंदिर निर्माण अभियान में अकल्पनीय संघर्ष किया। इसलिए राम मंदिर की आधारशिला रखने के दौरान इन्हें विस्मृत करना असंभव है।
फिरंगी हुक़ूमत के दौरान राम मंदिर निर्माण के अभियान को बढ़ावा दिया महंत दिग्विजय नाथ जी महाराज ने। साल 1934 से लेकर 1949 तक उन्होंने इसके लिए लगातार संघर्ष किया। ऐसा बताया जाता है कि जब 22-23 दिसंबर 1949 के दौरान जब विवादित ढाँचे में श्रीराम प्रकट हुए। ठीक उस वक्त तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजय नाथ जी महाराज साधू संतों के साथ बैठ वहीं पर कीर्तन कर रहे थे।
तारीख़ें गवाह हैं,जन्मभूमि के आंदोलन में कैसे खप गईं पीढ़ियाँ,कैसे ‘एक अकेले‘ के साथ शुरू हुई कोशिश तब्दील हुई ‘कारवाँ’ में,कैसे आक्रांता बाबर के नाम पर हुए अन्याय व अपमान का इंसाफ पाने में लगे 500 साल,पढिए संघर्ष की कहानी,एक कर्मयोगी की ज़ुबानी,जिनके मठ से शुरू हुई मंदिर की जंग। pic.twitter.com/CIGVtRVBBb
— Shalabh Mani Tripathi (@shalabhmani) July 31, 2020
मृत्यु के बाद भी जारी रखा गया संघर्ष
28 सितंबर साल 1969 को उनकी मृत्यु हुई लेकिन राम मंदिर निर्माण के लिए उनके हिस्से का संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ। महंत दिग्विजय नाथ की इस पहल को आगे बढ़ाया उनके शिष्य महंत श्री अवेद्यनाथ ने। उनके साथ साधू संतों के एक बड़े समूह ने राम मंदिर निर्माण अभियान में आगे आया।
1989 में जब राम मंदिर निर्माण के लिए प्रतीकात्मक तौर पर भूमि पूजन हुआ। तब पहला फावड़ा किसी और ने नहीं बल्कि खुद महंत श्री अवेद्यनाथ ने चलाया था। पहला फावड़ा चलाने में परमहंस रामचंद्र दास भी शामिल थे। इन प्रयासों का यह नतीजा निकला कि पहली आधार शिला रखने का अधिकार कामेश्वर चौपाल जी को मिला। अशोक सिंहल ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई थी।
देश ही नहीं दुनिया की आस्था का विषय
पिछले तीन वर्षों के दौरान राम जन्मभूमि अयोध्या ने दीपावली देखी है। इस बार के आयोजन का दृश्य सभी की तुलना में कहीं अधिक विस्तृत और विशाल होगा। राम मंदिर केवल देश की नहीं बल्कि दुनिया की आस्था का विषय है। श्रीराम मंदिर निर्माण के बाद अयोध्या वैश्विक स्तर धार्मिक और संस्कृति नगरी के रूप में उभर कर आएगी।
महामारी के चलते श्रीराम में आस्था रखने वाले उनके अटूट भक्त इस आयोजन में शामिल नहीं हो पाएँगे। लेकिन फिलहाल इसे प्रभु की इच्छा मान कर सभी को स्वीकार करना चाहिए। अंततः यह हमारे लिए गर्व का अवसर है। 5 अगस्त का दिन राम मंदिर भूमि पूजन और शिलान्यास का दिन नहीं है बल्कि एक नए युग की शुरुआत का दिन है। यह युग रामराज्य का है।