मंदिरों का इनसाइक्लोपीडिया तैयार करने वाले केरल के एस जयशंकर का शुक्रवार (11 फरवरी, 2022) को निधन हो गया। उन्होंने इस काम में अपने दो दशक खपा दिए। इसके बाद राज्य के मंदिरों पर एक इकसाइक्लोपेडिया तैयार किया। निधन के समय उनकी उम्र 86 साल थी। वो अपने पीछे 15 वॉल्यूम की पुस्तकों के रूप में एक ऐसी विरासत छोड़ गए हैं, जिसकी बराबरी शायद ही कोई अन्य काम कर सके। उन्होंने 1300 मंदिरों के बारे में बृहद जानकारियाँ इकट्ठी की।
उन्होंने अपने निधन से कुछ दिन पहले ही इस श्रृंखला का 15वाँ वॉल्यूम पूरा किया था। इसमें केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के मंदिरों के बारे में जानकारियाँ हैं। वो 1993 में केरल के सेन्सस ऑपरेशन्स में बतौर डिप्टी डायरेक्टर रिटायर हुए थे। उस समय उनकी उम्र 58 वर्ष थी। उससे एक साल पहले सेन्सस डायरेक्ट्रेट ने मंदिरों की संख्या गिनने का प्रस्ताव सामने रखा था और एक पुस्तक भी प्रकाशित किया था। ये जानकारी उनके दामाद एस गोपाकुमार ने दी।
उन्होंने बताया कि 1991 में जन जनगणना पूरी हो गई थी, तब केरल के सांस्कृतिक पहलुओं को समेटने के काम पर भी चर्चा हुई थी। तभी से इस पर काम शुरू हुआ। एस जयशंकर ने ये काम अपने हाथ में लिया और इसके लिए दूर-दूर तक यात्राएँ की। इस दौरान वो ऐतिहासिक साक्ष्यों को समेटते हुए सूचनाएँ इकट्ठी करते चले। उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद इस मैराथन कार्य का जिम्मा उठाया। वो एक आध्यात्मिक व्यक्ति थे, ऐसे में इस कार्य के प्रति उनकी गहरी आस्था थी।
‘भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड’ के जनरल मैनेजर के रूप में रिटायर हुए उनके दामाद बताते हैं कि एस जयशंकर प्रतिदिन 8 घंटे इस कार्य में देते थे और इस तरह 13 जिलों के मंदिरों का एक इनसाइक्लोपीडिया तैयार हुआ। वो ओट्टपलम के रहने वाले थे। 1997 में इसका पहला वॉल्यूम रिलीज हुआ था, जिसमें मंदिरों की कलाकृतियाँ, उनके बारे में सामान्य सूचनाएँ, वहाँ के रीति-रिवाजों, संरचना, पेंटिंग्स, पूजा पद्धति के इतिहास और मंदिरों के प्रकार को लेकर जानकारियाँ थीं।
एस जयशंकर की पत्नी एस आनंदन भी एक सरकारी महिला कॉलेज से जूलॉजी प्रोफेसर का कार्यकाल पूरा कर के रिटायर हुई थीं। दस्तावेजों की प्रूफरीडिंग में वो अपने पति की मदद करती थीं। उनके दामाद का कहना है कि उन्होंने अपनी पुस्तकों में अपनी आत्मा और दिल को लगा दिया। अंतिम वॉल्यूम का काम भी पूरा हो गया था और उसकी प्रूफरीडिंग चल रही थी। अगले तीन महीनों में इसे भी प्रकाशित कर दिया जाएगा। परिवार ने उनके निधन के बाद उनके इस भगीरथ प्रयास को पूरा करने का बीड़ा उठाया है।