सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से जुड़े मामलों पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है। सबरीमाला मंदिर के संरक्षक त्रावणकोर देवासम बोर्ड (टीडीबी) ने कहा है कि अदालत का जो भी निर्णय होगा, उसका सम्मान किया जाएगा। केरल सरकार ने पुनर्विचार याचिकाओं का विरोध करते हुए अदालत में कहा कि इन याचिकाओं पर सुनवाई के लिए कोई आधार ही नहीं है।
#Sabarimalatemple: Supreme Court reserves judgment in 65 petitions including 56 review petitions and 4 fresh writ petitions. #SupremeCourt #Sabarimala@INCKerala @BJP4Keralam @cpimspeak @vijayanpinarayi
— Bar & Bench (@barandbench) February 6, 2019
सुनवाई के दौरान अपनी दलीलें देते हुए सबरीमाला मंदिर पक्ष के वकीलों ने मजबूती से अपनी बात रखी। सबरीमाला मंदिर के मुख्य पुजारी की तरफ से सीनियर काउंसल वी गिरी ने कहा कि कोई भी व्यक्ति जो अनुच्छेद 25 (2) (बी) के तहत पूजा करने का अधिकार रखता है, उसे देवता की प्रकृति के अनुरूप करना होगा। उन्होंने कहा- “महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के मामले में स्थायी ब्रह्मचर्य चरित्र नष्ट हो जाता है। हर भक्त जो मंदिर जाता है, मंदिर की आवश्यक प्रथाओं पर सवाल नहीं उठा सकता है।”
After a marathon hearing which lasted from morning till 3 PM, the Supreme Court constitution bench today reserved judgment in a bunch of review petitions filed against the September 28 judgment
— Live Law (@LiveLawIndia) February 6, 2019
Read more: https://t.co/fA8oAOK4qd pic.twitter.com/W1X5l3Iing
वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाड़े ने अदालत से कहा- “यह आस्था का विषय है। जब तक कि एक आपराधिक कानून नहीं है जो एक विशेष धार्मिक प्रथा को प्रतिबंधित करता है (जैसे सती), अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं।” उन्होंने आगे कहा- “अकेले समुदाय ही यह तय कर सकता है कि सदियों पुरानी मान्यता को बदला जाए या नहीं। कुछ एक्टिविस्ट्स को यह तय करने के लिए नहीं दिया जा सकता है। एक आवश्यक धार्मिक अभ्यास क्या है, यह तय करने का अधिकार उस विशेष समुदाय के सदस्यों को होना चाहिए।”
ज्ञात हो कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय पीठ ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश करने की इजाज़त दे दी थी। 4-1 के बहुमत वाले निर्णय में जस्टिस इंदु मल्होत्रा एकमात्र सदस्य थीं, जिन्होंने बहुमत के ख़िलाफ़ निर्णय (Dissenting Voice) दिया था। इसके बाद श्रद्धालुओं ने केरल की वामपंथी सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया, जिसके बाद हजारों श्रद्धालुओं को गिरफ़्तार किया गया था।