अयोध्या में भव्य राम मंदिर का कार्य तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और समय के साथ ही भक्तों के बीच उत्सुकता भी बढ़ती जा रही है। ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट’ निर्माण कार्य से लेकर अन्य व्यवस्थाओं में लगा हुआ है। ट्रस्ट में एक से बढ़ कर एक विद्वान और अनुभवी लोग हैं, जिनका सीधा सरोकार अयोध्या और भगवान श्रीराम के मंदिर से रहा है। इनमें अधिकतर लंबे समय तक आंदोलन में सक्रिय रहे हैं। ऐसे में उनका भी प्रयास है कि इस कार्य में कोई कोताही न रह जाए।
हाल ही में राम मंदिर की प्रतिमा को लेकर कुछ खबरें सामने आई हैं, जिसके बाद लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। वर्तमान में रामलला की वहाँ पूजा हो रही है, जो लंबे समय से टेंट में थे। ये प्रतिमा सन् 1949 से वहाँ है। ये प्रतिमा वहाँ कैसे आई थी, इसकी भी एक अलग कहानी है। अब राम मंदिर के गर्भगृह में नई मूर्ति की स्थापना की बात। इसके बाद ये सवाल उठ रहा है कि पुरानी मूर्ति का क्या होगा और नई मूर्ति कौन बनाएगा।
दिसंबर 1949 में बाबरी ढाँचे में प्रकट हुए थे रामलला
इन सभी सवालों के जवाब हम जानेंगे, लेकिन उससे पहले बात करते हैं कि रामलला की जो वर्तमान प्रतिमा है और जिसका दर्शन लोग पिछले 74 वर्षों से कर रहे हैं, वो वहाँ कैसे प्रकट हुई थी। वो 23 दिसंबर, 1949 का दिन था जब लोगों ने दरवाजा खोला तो पाया कि अंदर रामलला की मूर्ति रखी हुई थी। इससे पहले बाहर चबूतरे पर पूजा-पाठ होता था। इसके बाद वहाँ हजारों लोग जुटे थे और ‘भए प्रकट कृपाला, दींन दयाला, कौशल्या हितकारी’ से पूरी अयोध्या गूँज उठी थी।
इस घटना को ‘रामलला का प्राकट्य’ के नाम से जाना गया। उस समय केंद्र में जवाहरलालर नेहरू प्रधानमंत्री थे, जो खासे सेक्युलर थे। यूपी में भी केंद्र की तरह ही कॉन्ग्रेस की ही सरकार थी। ऐसे में अयोध्या में पुलिस ने अभयराम दास, सकल दास और सुदर्शन दास और 50-60 अन्य लोगों को ‘दंगाई’ बताते हुए FIR भी दर्ज की। 29 दिसंबर को बाबरी ढाँचे को विवादित संपत्ति का हिस्सा मान कर प्रशासन ने ताला जड़ दिया। जिस चबूतरे का यहाँ हमने जिक्र किया, वहाँ सैकड़ों वर्षों से भगवान् श्रीराम की पूजा होती आ रही थी।
1951 में श्रद्धालुओं की याचिका पर अदालत ने फैसला सुनाया कि मुक़दमे की समाप्ति तक वहाँ से मूर्तियों को न हटाया जाए। मुस्लिमों ने तब आरोप लगाया था कि किसी ने अंदर घुस कर चुपचाप मूर्ति रख दी है। जहाँ मूर्ति प्रकट हुई थी, वो बाबरी ढाँचे, जिसे मुस्लिम मस्जिद कहते थे, उसके मुख्य गुंबद के नीचे वाला कमरा था। उस दौरान गोरखपुर मंदिर के महंत दिग्विजयनाथ भी साधु-संतों के साथ कीर्तन के लिए अयोध्या में ही मौजूद थे।
राम मंदिर में नई मूर्ति को लेकर तैयारियाँ जोरों पर
हाल ही में पूरे देश ने वो दृश्य देखा, जब नेपाल से 6 करोड़ वर्ष पुरानी शिलाएँ सड़क मार्ग से अयोध्या पहुँचीं। रास्ते में जहाँ-जहाँ से शिला गुजरी, काफिला बनता गया। क्या बच्चे-बुजुर्ग और क्या महिलाएँ, शिला के दर्शन और पूजन के लिए भीड़ जुटती रही। 127 क्विंटल वजन के दो शालिग्राम शिलाओं को जनकपुर की गंडकी नाड से लाया गया। जनकपुर वही जगह है, जहाँ माँ सीता के पिता जनक राज करते थे। इन शिलाओं का धूमधाम से अयोध्या में स्वागत किया गया। हालाँकि, बाद में कई जगह की शिलाओं के परीक्षण के बाद कर्नाटक के शिलाओं के इस्तेमाल पर सहमति बनी।
फ़िलहाल भगवान राम की प्रतिमा के निर्माण के लिए तीन नाम सबसे ज्यादा चर्चा में चल रहे हैं – राम वनजी सुतार, अरुण योगीराज और वासुदेव कामथ। राम वनजी सुतार ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की ‘स्टेचू ऑफ यूनिटी’ प्रतिमा का निर्माण किया है, जो गुजरात के केवडिया का मुख्य आकर्षण है। 99 साल के राम वनजी सुतार ने 1950 के दशक में अजंता-एलोरा की गुफाओं में मूर्तियों की मरम्मत में बड़ी भूमिका निभाई थी।
पद्म भूषण से सम्मानित राम वनजी सुतार को ‘आज का विश्वकर्मा’ भी कहा जाता है। इसके बाद आते हैं अरुण योगीराज पर। केदारनाथ धाम में जगद्गुरु शंकराचार्य की जो प्रतिमा स्थापित हुई है, उसका निर्माण उन्होंने ही किया है। उनके पूर्वज भी पत्थर की मूर्तियाँ तराशने में दक्ष थे और उन्हें ये कला विरासत में भी मिली है। इस प्रतिमा के लिएअरुण योगीराज ने 9 महीने रोज 14-15 घंटे की मेहनत की। 39 वर्षीय अरुण योगीराज के पूर्वजों को मैसूर राजघराने का संरक्षण प्राप्त था।
Small Information …. pic.twitter.com/kM7x6AOwWC
— Arun Yogiraj (@yogiraj_arun) March 23, 2023
उन्होंने 23 मार्च को एक तस्वीर शेयर की थी, जिसमें उन्होंने अपनी बनाई भगवान श्रीराम की एक प्रतिमा का सूक्ष्म अवलोकन करते हुए समझाया था। प्रतिमा के हर एक भाग के बारे में उन्होंने बताया था, जिसे ‘Iconography’ भी कहते हैं। उनकी रिसर्च तगड़ी होती है। आते हैं तीसरे नाम पर, जो चर्चा में है। वासुदेव कामथ के बारे में मीडिया में आया कि उन्होंने जो तस्वीर बना कर दी, उससे ट्रस्ट के सदस्य खुश हैं। उन्होंने ट्रस्ट की एक बैठक में अपनी डिजाइन का प्रदर्शन किया था।
रामलला की मूर्ति पहले से, ऐसे में नई प्रतिमा क्यों? – जानें कारण
ऐसे में लोगों के मन में ये सवाल उठ रहे हैं कि जब प्रतिमा पहले से है ही, तो फिर नई प्रतिमा की क्या आवश्यकता है? हमने इस पूरे मामले पर कामेश्वर चौपाल से बातचीत की, जो ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट’ के सदस्य हैं। कामेश्वर चौपल के बारे में बता दें कि वो बिहार विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं। उन्होंने ही अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के नींव की पहली ईंट 9 नवंबर, 1989 को रखी थी। वो ‘विश्व हिंदू परिषद (VHP)’ (दक्षिण बिहार) के प्रांतीय अध्यक्ष का दायित्व भी सँभाल रहे हैं।
नई प्रतिमा के संबंध में उन्होंने बताया कि अभी तक जितनी चर्चाएँ हुई हैं, वो ट्रस्ट के सामने रखी जाएँगी और ट्रस्ट द्वारा स्वीकृत किए जाने के बाद ही मीडिया को इस संबंध में सब कुछ बताया जाएगा। उन्होंने ये स्वीकारा कि जिन मूर्तिकारों के नाम पर चर्चा चल रही है, उनमें अरुण योगीराज का भी नाम है। उन्होंने कहा कि इस कार्य के लिए सीधे किसी एक व्यक्ति का चयन नहीं होता, बल्कि सभी को अपना प्रेजेंटेशन दिखाने का मौका दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि पद्म भूषण से सम्मानित वासुदेव कामत का नाम भी सूची में शामिल है। इतना साफ़ है कि शास्त्रों में जैसा वर्णित है, उस हिसाब से रामलला की प्रतिमा तैयार करवाई जा रही है। कामेश्वर चौपाल ने बताया कि कई कलाकारों के नाम पर विचार चल रहा है। उन्होंने बताया कि इन सभी कलाकारों ने अपने-अपने चित्र प्रस्तुत किए हैं। ट्रस्ट की पूर्ण बैठक में जिस कलाकार पर सहमति बन जाएगी, मीडिया को सूचित कर दिया जाएगा।
दो मूर्तियों का कारण क्या है? क्या गर्भगृह में दोनों ही रहेंगी? इस सवाल के जवाब में कामेश्वर चौपाल कहते हैं कि अधिकतर मंदिरों में 2 प्रतिमाएँ होती हैं। उन्होंने समझाया कि इनमें से एक को ‘उत्सव मूर्ति’ के रूप में जाना जाता है तो दूसरी ‘प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति’ कहलाती है। प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति को कहीं खिसकाया नहीं जा सकता, वो वहीं पर विराजमान रहती हैं जहाँ उन्हें स्थापित किया जाता है। वहीं झाँकी या शोभा यात्रा जैसे आयोजनों में ‘उत्सव मूर्ति’ को निकाला जाता है।
‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट’ के सदस्य कामेश्वर चौपाल ने इसकी पुष्टि की है कि अयोध्या में बन रहे भव्य एवं दिव्य राम मंदिर में भी एक मूर्ति प्राण प्रतिष्ठित होगी और एक उत्सव के लिए। उन्होंने इसकी भी जानकारी दी कि जनवरी 2024 में प्राण प्रतिष्ठा का कार्य संपन्न कर लिया जाएगा। ऐसे में, साफ़ है कि वर्तमान में जो रामलला की मूर्ति है, उसे ही ‘उत्सव मूर्ति’ के रूप में विराजमान किया जाएगा। वो प्रतिमा छोटी भी है।
कामेश्वर चौपाल ने बताया कि बड़ी मूर्तियों को बहार नहीं निकाला जा सकता, इसीलिए उन्हें वहीं पर विराजमान रखा जाता है। प्रतिमा कैसे दिखेगी? – इस संबंध में मई के अंतिम सप्ताह में ट्रस्ट की बैठक में सब साफ़ हो जाएगा। उन्होंने कहा कि फ़िलहाल चर्चाएँ ही चल रही हैं, इसीलिए कुछ स्पष्ट बताना ठीक नहीं है। प्राण प्रतिष्ठा के संबंध में उन्होंने कहा कि फिलहाल इसकी तारीख़ तय नहीं की गई है। उन्होंने समझाया कि शादी-विवाह से लेकर अन्य सभी शुभ अवसरों पर विद्वान आचार्य बताते हैं कि कब मुहूर्त है।
इसी तरह, राम मंदिर के लिए भी आचार्य गण बैठेंगे और ये निर्णय लेंगे कि नई प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के लिए कौन सी तारीख़ और कौन सा समय तय रहेगा। कामेश्वर चौपाल ने उदाहरण दिया कि कितना भी बड़ा घर बन कर तैयार हो जाए, पंडित द्वारा शुभ मुहूर्त बताने जाने के पश्चात ही घरवास का कार्यक्रम होता है। उन्होंने कहा कि आचार्यों से विमर्श कर के शुभ मुहूर्त में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का समय तय किया जाएगा। ये तारीख़ जनवरी 2024 की ही होगी, इस पर फ़िलहाल सहमति बन गई है।