भारत-पाकिस्तान विभाजन की जब भी बात होती है, 20 लाख लोगों की मौत का कड़वा इतिहास हमारे सामने उपस्थित हो जाता है। अब इस इतिहास पर एक फिल्म आई है – ‘बंगाल 1947’ नाम की। इसमें TV का जाना-पहचाना चेहरा देवोलीना भट्टाचार्जी भी हैं, जिन्होंने ‘साथ निभाना साथिया’ में ‘गोपी बहू’ का किरदार अदा कर के शोहरत बटोरी थी। उनके साथ इस फिल्म में अंकुर अरमान हैं। वहीं अतुल गंगवार इस फिल्म में विलेन की भूमिका में हैं।
फिल्म के एक दृश्य में वो कहते दिख रहे हैं कि हिन्दू होगा न मुसलमान, सब पाकिस्तानी होंगे। इसके बाद वो कहते हैं कि क्या पाकिस्तान की पाक जमीन पर काफिर भी हमारे साथ रहेंगे? फिल्म में ‘अल्लाह-हू-अकबर’ नारे के साथ हिंसा करते लोगों को भी दिखाया गया है। एक अन्य दृश्य में इस्लामी टोपी पहना विलेन कहता है कि ‘वो’ हमारे नहीं हैं, इसके बाद एक अन्य मुस्लिम बुजुर्ग कहता है कि जो हमारे नहीं हैं उन्हें अपना बनाना होगा। फिल्म के कुछ दृश्यों में दिखाया गया है कि कैसे ‘नारा-ए-तकबीर’ चिल्लाते हुए हिन्दुओं का नरसंहार हुआ।
‘हिंदुस्तान’ अख़बार के मैनेजिंग एडिटर प्रताप सोमवंशी ने बताया कि वो इस फिल्म को स्क्रीनिंग में ये सोच कर देखने पहुँचे थे कि बीच में निकल लेंगे, लेकिन फिल्म की ताकत देखिए कि उसने अंत तक बाँधे रखा। उदयपुर में ‘मेवाड़ टॉक फेस्ट’ में भी इसकी स्क्रीनिंग हुई। पश्चिम बंगाल की संस्कृति और वेशभूषा को भी फिल्म में दिखाया गया है, विभाजन के समय की एक प्रेम कहानी पर ये आधारित है। फिल्म के एक दृश्य में इस पर भी प्रकाश डाला गया है कि वेदों को लिखने में महिलाओं का भी योगदान है, एक नहीं बल्कि कई ऋषियों ने इसमें योगदान दिया।
फिर ये भी बताया गया है कि अगर प्राचीन काल में छुआछूत या जाति भेद होता तो प्रभु श्रीराम शबरी के जूठे बेर नहीं खाते। आकाशादित्य लामा ने इस फिल्म का लेखन-निर्देशन किया है। पहले इस फिल्म को ‘शबरी का मोहन’ नाम से बनाया जा रहा था, लेकिन फिर इसका नाम बदल कर ‘बंगाल 1947’ कर दिया गया। चित्रकूट, कांगेर घाटी, जगदलपुर व परलकोट में इसकी शूटिंग हुई है। बस्तर के ऐसे क्षेत्र जहाँ बंगाली समाज रहता है, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ महल, कवर्धा, छुईखड़ान और गंडई में भी इसकी शूटिंग हुई है।
सतीश पांडे ने ‘बंगाल 1947’ का निर्माण किया है। उनके साथ-साथ ऋषभ पांडे भी इस फिल्म के प्रोड्यूसर हैं। सतीश पांडे ने बताया कि शबरी और मोहन की प्रेम कहानी युवाओं को खासा लुभा रही है और फिल्म को अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। सतीश-ऋषभ की ये डेब्यू फिल्म ही है। ऋषभ पांडे इससे पहले डॉक्यूमेंट्री फ़िल्में बनाया करते थे। सतीश पांडे ने कहा कि भारतीय संस्कृति और जड़ों को समझाने के लिए ये फिल्म बनाई गई है। उन्होंने कहा कि आज का युवा विदेशी संस्कृति से कुछ ज्यादा ही प्रभावित है, उन्हें अपनी संस्कृति को लेकर जागरुक करना पड़ेगा।