एक फिल्म अगले बरस यानी 2023 के जनवरी में रिलीज होनी है। नाम है- आदिपुरुष (Adipurush)। पिछले दिनों इस फिल्म का टीजर जारी किया गया। उसके बाद से इस फिल्म को लेकर विवाद चल रहा है।
सवाल इस फिल्म के किरदारों के लुक को लेकर है। फिल्म पर हिंदू धर्म का मजाक बनाने के आरोप लग रहे हैं। फिल्मों में मेरी दिलचस्पी न के बराबर है। भारत का फिल्म उद्योग, खासकर हिंदी फिल्म उद्योग (Hindi cinema) जिस तरह हिंदू घृणा से सना है, यह गंभीरता से लेने की चीज भी नहीं है। लेकिन जिस तरह इस फिल्म को लेकर उठ रहे सवालों को दबाने के लिए फिल्म से जुड़े लोग सनातन, राष्ट्र धर्म, हिंदुत्व की दुहाई दे रहे हैं, हर हिंदू के लिए बोलना जरूरी हो जाता है। ऐसा नहीं होने पर यह परिपाटी चलती ही रहेगी। यह एक तरह से आपके घर में घुस कर, खुद को आपकी तरह का बताकर, आप की पहचान धर कर, आपकी ही मूल्यों पर हमले जैसा है। इस अभियान के अगुवा बने हुए हैं, मनोज मुंतशिर (Manoj Muntashir)। वे इस फिल्म से बतौर डायलॉग राइटर जुड़े हुए हैं। आगे बढ़ने से पहले जरा मनोज के इस बयान को सुनिए, उन्होंने खुद ट्विटर पर इसे साझा किया है।
“हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता
— Manoj Muntashir Shukla (@manojmuntashir) October 4, 2022
कहहि सुनहि बहुविधि सब संता”
जय श्री राम!#AdipurushTeaser #Adipurush pic.twitter.com/zWhbJfFrQG
दरअसल, मनोज चाहते हैं कि इस फिल्म को लेकर कोई सवाल इसलिए नहीं पूछे जाने चाहिए क्योंकि उनके अनुसार इससे जुड़े सभी लोग ‘सनातनी’ हैं। अब आगे आप एक दो साल पुराना क्लिप देखिए;
इस व्यक्ति को मैंने 2 साल पहले पकड़ा था। इसको सुनिए। क्या इसी तरह का कुतर्क #AadiPurush के बचाव में नहीं दिया जा रहा? pic.twitter.com/W9199uzBKe
— अ स अजीत (@JhaAjitk) October 9, 2022
जी हाँ, आपने सही सुना। खुद को बचनदेव शर्मा बताने वाले इस व्यक्ति ने कहा है कि उसने रामायण में पढ़ा है कि प्रभु ईशु आएँगे। अयोध्या कांड में ऐसा लिखे होने की बात कह रहा है। यह व्यक्ति हमें 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव की रिपोर्टिंग के दौरान मिला था। मधुबनी जिले के कुछ गाँवों में हमें ईसाई धर्मांतरण की जानकारी मिली थी। ये वे इलाके थे, जहाँ चर्च के पहुँचने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। हमने खोजबीन की तो धर्मांतरण करवाने में इस व्यक्ति की भूमिका सामने आई थी। खुद को पत्रकार बताने वाला यह व्यक्ति वेद, पुराण और हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन करने का दावा करता था। कहता था कि इसमें हिंदू और सनातन टाइप का कुछ नहीं है। लेकिन ईसामसीह का जिक्र होने का दावा करता था। इसके फर्जीवाड़े पर आप पूरी रिपोर्ट ऑपइंडिया के यूट्यूब चैनल पर देख सकते हैं।
क्या हिंदुओं का मजाक बनाने वाली फिल्म आदिपुरुष से जुड़े मनोज मुंतशिर और हिंदुओं को ईसाई बनाने वाले बचनदेव शर्मा, एक ही तरह की बात नहीं कर रहे? एक सनातन का हवाला देकर तो दूसरा हिंदू धर्म ग्रंथों का हवाला देकर, सवालों को खारिज करने की कोशिश नहीं कर रहा? जबकि हम जानते हैं कि न तो आदिपुरुष का सनातन से सरोकार है, न रामायण में ईसामसीह का कोई जिक्र है।
आदिपुरुष में रावण का किरदार सैफ अली खान ने निभाया है। टीजर रिलीज होने के बाद लोगों ने पाया कि सैफ कहीं से भी रावण की तरह नहीं दिखते। लुक, हावभाव से वे बर्बर इस्लामी अक्रांताओं जैसे दिखते हैं। इसको लेकर पूछे सवाल के जवाब में मनोज मुंतशिर ने एक इंटरव्यू में कहा है कि फिल्म में रावण को जानबूझकर खिलजी की तरह नहीं दिखाया गया है। लेकिन फिर भी ऐसा है तो इस पर ऐतराज नहीं होना चाहिए, क्योंकि हर दौर में बुराई का अपना प्रतीक होता है। कल रावण था, आज खिलजी है।
BREAKING: अलाउद्दीन ख़िलजी इस दौर की बुराई का चेहरा है।रावण भी बुराई का चेहरा है।अगर #Adipurush में दोनों किरदार मिलते जुलते भी हैं तो इसमें बुराई क्या है? : @manojmuntashir @omraut pic.twitter.com/KvLvZNacoF
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) October 6, 2022
यदि मनोज के इस तर्क को मान लिया जाए तो यह कहने की क्या आवश्यकता है कि आदिपुरुष की कहानी प्रभु राम के कालखंड की है। जब आप किसी खास कालखंड की बात करते हैं तो चरित्र और उनके आचरण उस कालखंड के अनुसार ही होने चाहिए। क्रिएटिव फ्रीडम के नाम पर आप रावण को राफेल उड़ाते नहीं दिखा सकते। उसे चमगादड़ और ड्रैगन के बीच के किसी जीव पर भी सवार नहीं दिखा सकते। मनोज के इस तर्क को मान्यता दे दी जाए तो कल को कोई लिबरल फिल्मकार राम के हावभाव राहुल गाँधी की तरह भी दिखा सकता है। फिर वह कहेगा कि हर दौर के अपने नायक होते हैं। उसके लिए आज के दौर का नायक राहुल गाँधी हैं। इस स्थिति में जो कुछ पर्दे पर दिखेगा, वह पप्पू ही होगा। लिबरई की इंतहा हुई तो इसी तर्क की आड़ में कोई राम के हावभाव और कर्म प्रतीक सिन्हा या मोहम्मद जुबैर की तरह भी दिखा सकता है। ऐसी स्थिति में तो रावण के बचाव के लिए राम फैक्टचेक करते और फर्जी तथ्य गढ़ते दिखेंगे, जैसा ये इस्लामी कट्टरपंथियों के बचाव में करते हैं। आदिपुरुष में चरित्रों के लुक को लेकर यह समस्या राम से लेकर हनुमान तक के पात्रों में दिखती है।
यह सच है कि हमने इन पौराणिक पात्रों को अपनी नग्न नेत्रों से नहीं देखा है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ये पौराणिक पात्र कैसे दिखते रहे होंगे या इनके आचरण को लेकर उल्लेख हमारे पौराणिक ग्रंथों में नहीं हैं। इन्हीं के आधार पर इन पात्रों की लोकछवि बनी हुई है। जब भी आप पौराणिक किरदारों को पर्दे पर उतारने का निर्णय लेते हैं तो संदर्भ इन्हीं जगहों से प्राप्त करते हैं। कई लोगों ने इस पर विस्तार से लिखा है, इसलिए मैं उसकी गहराई में नहीं जाना चाहता। लेकिन उदाहरण के तौर पर आप तुलसीदास की लिखी इन पंक्तियों से समझ सकते हैं कि प्रभु श्रीराम कैसे दिखते रहे होंगे;
नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं
कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनीलनीरद सुन्दरं
पट पीत मानहु तडीत रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभुशनम
आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम-जित-खर दूषणं
वैसे भी पौराणिक चरित्रों को गढ़ते वक्त उनकी पौराणिक और लोक छवि का ध्यान रखा जाना चाहिए। जाहिर है आदिपुरुष में ऐसा नहीं किया गया है। यह कहना कि कौन सा खिलजी त्रिपुंड लगाता है, इसलिए उसे रावण ही मान लिया जाए तो और भी बचकाना है। मैं जो कुछ कह रहा हूँ वह अतिशयोक्ति नहीं है। या मेरी कल्पनाओं की उड़ान नहीं है। क्रिएटिव फ्रीडम के नाम पर हिंदू देवी-देवताओं की नग्न तस्वीर बनाने वाले को हमने इस देश में देखा है। माँ काली को सिगरेट पीते देखा है। भगवान शिव को हिंदी फिल्म में शौचालय से भागते देखा है…
इसलिए आदिपुरुष पर उठते सवालों को सनातनी चादर दिखाकर छिपाने की कोशिश कर रहे मनोज को समझना चाहिए कि ये करियर के लिए शुक्ला का मुंतशिर होना और फिर हिंदू जागरण की आहट देख मुंतशिर के आगे शुक्ला के जुड़ जाने जितना आसान नहीं है। ये सवाल फिल्म के धंधे से भी बंद नहीं होते। हिंदी की तमाम सफल फिल्मों में हिंदुओं का, उनके प्रतीक चिह्नों का, उनकी आस्थाओं का, उनके अराध्यों को नीचा दिखाने का काम किया गया है। बावजूद वे फिल्में सफल रहीं, क्योंकि हिंदुओं में सेकुलर बीमारी गहरी है। 2014 के बाद इसका उपचार शुरू हुआ है। जहर धीरे-धीरे जाना है। इसलिए कुछ फिल्में अब पिटती भी हैं। लेकिन कुछ चल भी जाती हैं। इसलिए संभव है बॉक्स आफिस पर आदिपुरुष भी कमाई कर ले, लेकिन उससे जुड़े सवाल उस कमाई से नहीं दबेंगे।
यह भी कहा जा रहा है कि ये टीजर है पूरी फिल्म नहीं। लेकिन धंधेबाजों से पूछना चाहिए कि वह कौन सी व्यवसायिक नीति है, जिसके तहत टीजर में मुल्ले की तरह दिखने वाले हनुमान, असल फिल्म में पौराणिक और लोक छवि वाले हनुमान की तरह दिखेंगे। मनोज मुंतशिर हो या ओम राउत वे स्वतंत्र हैं, अपने प्रोडक्ट का प्रचार करने को। चैनल-चैनल घुमने को। लेकिन उन्हें यह याद रखना चाहिए कि सनातन उनकी क्रिएटिविटी फ्रीडम से उपजा हुआ नहीं है कि वे अपने निकृष्ट कर्मों को छिपाने के लिए ढाल की तरह उसका इस्तेमाल करें।
ये आज का भारत। हम आज के सनातनी हैं। हमें अपनी पौराणिकता पर गर्व है। हम न तो किसी को उसका मान-मर्दन करने की अनुमति दे सकते हैं और न कोई कालनेमि हमें अपनी माया में उलझा हमारे प्रभु के चरित्र को कलंकित कर सकता है। मुंतशिर बना शुक्ला भी नहीं। जिनको लगता है कि आदिपुरुष पर सवाल बेवजह हैं, किसी प्रोपेगेंडा से जुड़े हैं, उन बुद्धिजीवियों को समझना चाहिए कि आदिपुरुष पर सवाल हमारा दृष्टि दोष नहीं, आपकी बुद्धि भ्रष्ट होना है।