Sunday, November 17, 2024
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NRIs और महानगरों का हीरो, जिसे हम पर थोप दिया गया: SRK नहीं मिथुन-देओल-गोविंदा ही रहे गाँवों के फेवरिट, मुट्ठी भर लोगों के इलीट समूह ने ऐसे किया खेला

असल में किसी को बनाना और बिगाड़ना ऐसी इंडस्ट्रीज में चंद लोगों की मुट्ठी में ही रहता है और उन्होंने ऐसा ही किया। चोपड़ा-जौहर गिरोह ने उसे अपना फेवरिट बनाया और फिल्मफेयर-स्टारडस्ट ने युवाओं में उसकी इमेज।

ट्रेड विश्लेषकों की मानें तो शाहरुख़ खान की फिल्म ‘पठान’ ने पहले ही दिन वर्ल्डवाइड बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ रुपए का ग्राउस बॉक्स ऑफिस कलेक्शन कर लिया है और ओपनिंग डे पर भारत में 57 करोड़ रुपए का नेट कारोबार करने वाली ये पहली ऐसी फिल्म है जो नॉन-हॉलिडे पर रिलीज हुई है। गणतंत्र दिवस के लंबे वीकेंड का इसे फायदा मिलता दिख रहा है, साथ ही बॉयकॉट विरोधी गोलबंदी भी है। हालाँकि, फिल्म का कंटेंट बेकार बताया जा रहा है दर्शकों द्वारा और वीकेंड के बाद ये क्रैश भी हो सकती है।

90 के दशक से पहले तक भारत में जो फ़िल्में बनती थीं, उनमें अधिकतर गाँवों का सेटअप होता था। खासकर जब अमिताभ बच्चन का ‘एंग्री यंग मैन’ वाला जमाना था, तब उन्हें अक्सर ऐसे ही किरदारों में देखा गया जो गरीब होते थे, फिर अमीरी का सफर तय करते थे। 786 की महिमा दिखाना, मंदिरों में भगवान को गाली देना और मस्जिदों के सामने सिर झुका लेना और ‘जान दे देने वाला ईमानदार मुस्लिम दोस्त’ वाली चीजें तभी शुरू हो गई थीं। लेकिन, गरीब लोगों से लेकर दूर-दराज गाँवों के लोग भी सिनेमा से जुड़े हुए थे और अधिकतर फ़िल्में परिवार के साथ बैठ कर देखने लायक कम से कम होती थीं।

फिर आता है नब्बे का दशक और शाहरुख़ खान। ये तो सभी को पता है कि ‘अंजाम’, ‘डर’ और ‘बाजीगर’ जैसी फिल्मों में विलेन का किरदार अदा कर के उन्होंने खुद को इंडस्ट्री में स्थापित किया। विलेन, जो फिल्म का हीरो भी होता था। ये फ़िल्में बॉलीवुड में ‘सनकी आशिक’ वाला ट्रेंड लेकर आईं। लेकिन, असली सफलता उसे DDLJ से मिली – ये भी सभी को पता है। लेकिन, क्या आपने गौर किया कि DDLJ के साथ ही बॉलीवुड में एक और नया ट्रेंड आ गया – NRI हीरो का। आप DDLJ के अलावा ‘परदेस’, ‘स्वदेश’, ‘K3G’ या ‘माय नेम इज खान’ को ही देख लीजिए, NRI नायकों वाला ट्रेंड SRK ने कभी नहीं छोड़ा।

उस ज़माने के हिसाब से देखें तो इस तरह के नायक का होना एक बड़ी बात थी। महानगरों की चकाचौंध ने गाँवों और छोटे शहरों की लड़के-लड़कियों को लुभाना शुरू कर दिया था। सब उसी की तरह बनने की ख्वाहिश रखने लगे थे। लेकिन, बड़ी बात ये है कि इसका सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ा लड़कियों पर। हर लड़के में शाहरुख़ खान खोजा जाने लगा और कनाडा-अमेरिका रिटर्न लड़कों की तरह दिखना और इस तरह की उम्मीदों पर खरा उतरना छोटे शहरों के युवकों के बस का नहीं था। एक तरह से इस तरह की फिल्मों ने उन्हें कमतर महसूस कराया।

कुल मिला कर सार ये है कि शाहरुख़ खान कभी Masses का हीरो नहीं रहे। वो महानगरों के हीरो रहे, NRIs के हीरो रहे। आप आज भी गाँवों में जाकर ढूँढ़िए, आपको शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति मिले जो कहेगा कि वो शाहरुख़ खान का फैन है। ऐसे समय में जब मल्टीप्लेक्स सिनेमा मिथुन चक्रवर्ती, सनी देओल और गोविंदा जैसे हीरोज को ढलान पर भेजने में लगे थे, महानगरों के युवक-युवतियों ने शाहरुख़ खान के रूप में अपना हीरो खोज लिया।

हीरो वही जो ज़्यादा पैसा कमा कर दे। बॉलीवुड में अगर फुटफॉल्स से स्टारडम गिना जाता तो ‘ग़दर’ के आसपास भी शाहरुख़ खान की कोई फिल्म नहीं टिकती। लेकिन, उसे सुपरस्टार का स्टेटस और ‘बॉलीवुड का किंग’ इसीलिए कह दिया गया, क्योंकि महानगरों और विदेश में बसे भारतीयों को वो पसंद था। पैसे इन्हीं दो जगहों से आते थे, और ज़्यादा आने लगे थे। ऐसे में बॉलीवुड में गाँव-समाज या छोटे शहरों के सेटअप में फ़िल्में बननी बंद हो गईं। हीरो अब ‘कुली’ और मजदूर का रोल नहीं कर सकता था। रोमांटिक फिल्मों का नया दौर शुरू हो रहा था और लड़कियों में वेस्टर्न ड्रेसेज का चलन भी इसी दौरान ऐसी फिल्मों के गानों के वीडियोज देख कर आया।

आजकल OTT के हिट होने का सबसे बड़ा कारण ये है कि अधिकतर वेब सीरीज गाँवों या छोटे शहरों की ही कहानी कहते हैं। शाहरुख़ खान के करियर के ढलान के साथ ही और OTT के उभार के साथ ही महानगरों की कहानियों का दौर सिर्फ बॉलीवुड में ही रह गया और पब्लिक OTT की तरफ शिफ्ट हो गई। ‘मिर्जापुर’ से लेकर ‘पंचायत’ तक, ये सारे के सारे वेब सीरीज ऐसी ही सेटअप में थे। गाँवों ने वापसी की है वीडियो कंटेंट की दुनिया में, लेकिन अतिरिक्त गाली-गलौज और अश्लीलता की छौंक के साथ।

आज भी अगर आप ऐसे इलाकों में लोगों से उनके फेवरिट हीरो के बारे में पूछेंगे तो आपको सनी देओल, मिथुन चक्रवर्ती, गोविंदा या सुनील शेट्टी के नाम ही सुनाई देंगे। सलमान खान की फैन फॉलोविंग मिलेगी, लेकिन शाहरुख़ खान की नहीं। लेकिन, फिर भी ‘बादशाह’ से लेकर तमाम टैग्स उन्हें ही दिए हैं। असल में किसी को बनाना और बिगाड़ना ऐसी इंडस्ट्रीज में चंद लोगों की मुट्ठी में ही रहता है और उन्होंने ऐसा ही किया। चोपड़ा-जौहर गिरोह ने उसे अपना फेवरिट बनाया और फिल्मफेयर-स्टारडस्ट ने युवाओं में उसकी इमेज। SRK आज भी ‘पैन नॉर्थ इंडिया’ हीरो नहीं हैं और उन्हें देखने वाले अधिकतर महानगरों के ही लोग हैं।

अब उम्र भी उनके साथ नहीं है, ऐसे में 57 साल की आयु में एक्शन फिल्म कर के और खुद से आधी उम्र की हीरोइन के साथ नाच कर ही इसका सबूत दिया जा सकता है कि वो अब भी यंग है। वो यही कर भी रहा है। रही बात कंट्रोवर्सी की, तो वो फिल्मों की रिलीज से पहले जानबूझ कर क्रिएट कर दिए जाते हैं। फिल्मों को हिट कराने के लिए लीड अभिनेता-अभिनेत्री की आपस में ‘रियल लाइफ रोमांस’ की खबरें उड़वा देना एक पुराना ट्रेंड रहा है।

अब ‘पठान’ को लेकर अलग लेवल की हाइप क्रिएट की गई। एक फेक सोशल मीडिया हैंडल ट्वीट करता है कि पहले दिन की टिकट ही नहीं मिल रही और आश्चर्य की बात है कि उसे SRK की रिप्लाई भी मिलती है कि वो दूसरे दिन का टिकट ले ले। उसके फैन क्लब्स सैकड़ों की संख्या में टिकटें खरीद रहे हैं। उसके अपने मजहब के लोग तो हैं ही फिल्म देखने के लिए, क्योंकि असहिष्णुता जैसे बयान देने और इजरायल के प्रधानमंत्री से न मिलने जाने जैसी करतूतों के साथ उसने मुस्लिमों को खुश रखा है। दुबई-सऊदी वाले तो उससे खुश ही रहते हैं।

कुल मिला कर देखें तो SRK एक थोपा हुआ एक्टर है बॉलीवुड में, जिसे मुट्ठी भर इलीट लोगों ने हिट बनाया और आदमी हल्का-फुल्का दिमाग वाला भी होगा तो उस स्तर पर पहुँच कर खुद को बनाए ही रखेगा। चालाक शाहरुख़ खान ने इससे एक कदम आगे का तरीके अपनाया और खुद को कारोबारी बना लिया। यही राज़ भी है उसके सबसे अमीर अभिनेता होने का। मीडिया से हमेशा उसने दोस्ताना संबध बनाए रखना, अवॉर्ड्स खरीदता गया और फिल्म समीक्षकों को समय-समय पर पैसे देता था। देखिए, कैसे ये फिल्म समीक्षक ‘पठान’ (जिसका ट्रेलर ही बेकार है) की रिलीज के बाद उसके काम आ रहे हैं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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