Tuesday, November 19, 2024
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3 फ़िल्में, ₹2900 करोड़… यूँ ही कोई ‘बाहुबली’ और ‘डार्लिंग’ नहीं बन जाता: कहानी उस अभिनेता की, जिसके चाचा गोहत्या के खिलाफ संसद में बिल लेकर आए

इससे पहले 2005 में 'छत्रपति' में वो एसएस राजामौली के निर्देशन में काम कर चुके थे। प्रभास को लेकर इन चर्चाओं पर 'आदिपुरुष' विराम लगा सकती थी, जिसमें रामायण की कहानी दिखाई गई है।

उप्पलपति वेंकट सूर्यनारायण प्रभास राजू – ये उस अभिनेता का पूरा नाम है, जिसे आज दुनिया प्रभास के नाम से जानती है। वही, ‘बाहुबली’ वाले प्रभास। रविवार (23 अक्टूबर, 2022) को वो अपना 43वाँ जन्मदिन मना रहे हैं। रामायण पर आधारित उनकी फिल्म ‘आदिपुरुष’ भी संक्रांति 2023 के मौके पर रिलीज होने वाली है, लेकिन टीजर विवादों में फँसी हुई है। हालाँकि, बॉक्स ऑफिस पर कलेक्शंस के लिए प्रभास का नाम ही काफी होता है।

देश के पहले पैन-इंडिया स्टार कहलाए ‘बाहुबली’ प्रभास

2015 में आई ‘बाहुबली’ ने प्रभास को तेलुगु राज्यों में सुपरस्टार्स की उस पंक्ति से भी ऊपर खड़ा कर दिया, जिसमें वहाँ के बाकी के अभिनेता थे। 650 करोड़ रुपयों का कलेक्शन पूरी साउथ फिल्म इंडस्ट्री से न किसी ने किया गया, न ही सोचा था। तमिल अभिनेता रजनीकांत ने ज़रूर 2010 में अपनी फिल्म ‘रोबोट’ से तहलका मचाया था, लेकिन इसके लिए उन्हें 35 वर्षों का इंतजार करना पड़ा। हिंदी सिनेमा में वो जाना-पहचाना नाम थे ही।

लेकिन, प्रभास ने जो किया वो उस समय के फिल्म विशेषज्ञों की समझ से भी परे था। ‘बाहुबली’ फिल्म से निर्देशक एसएस राजामौली ने अपनी जादुई दुनिया पूरे भारत को दिखाई, लेकिन मुख्य अभिनेता के रूप में प्रभास के अभिनय, व्यक्तित्व और उनकी मेहनत ने इसमें जान डाल दी। अपने अधिकतर स्टंट्स उन्होंने खुद किए थे और इस कारण उन्हें शरीर पर ऐसे घाव भी मिले, जिसके दाग आजीवन उनके साथ रहेंगे। प्रभास को पैन-इंडिया प्रसिद्धि यहीं से मिल गई थी।

‘बाहुबली’ फिल्म को लोगों ने टीवी पर बार-बार देखा और ‘कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा’ सवाल एक ‘राष्ट्रीय प्रश्न’ सा बन गया। OTT से लेकर टीवी पर हिंदी भाषी दर्शक भी इस क्रेज का ऐसा हिस्सा बने कि 2017 में आए ‘बाहुबली’ के दूसरे हिस्से ने 1800 करोड़ रुपए से भी अधिक का कारोबार कर भारत की पिछली सभी फिल्मों को कोसों पीछे छोड़ दिया। देश को एक ऐसा सुपरस्टार मिल चुका था, जिसके लिए तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ और हिंदी सहित सभी भाषाओं के दर्शक देख रहे थे।

फिल्म ने 1800 करोड़ रुपए का कारोबार किया। इस फिल्म ने हिंदी बॉक्स ऑफिस पर साउथ की फिल्मों के ले दरवाजा खोल दिया। आज हम ‘RRR’, ‘पुष्पा’ और ‘KGF’ सीरीज जैसी फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाते हुए देखते हैं, उसकी शुरुआत बाहुबली सीरीज ने ही की। प्रभास भारत के सबसे महँगे स्टार्स में से एक बन गए और उनके पास ऑफर्स की ढेर लग गई। लेकिन, पिछले 5 वर्ष उनके लिए उतने अच्छे नहीं रहे।

‘बाहुबली 2’ के बाद अच्छे नहीं रहे 5 साल, ‘आदिपुरुष’ भी नहीं दोहरा पाएगी वो कामयाबी

‘बाहुबली 2’ के बाद उनकी 2 फ़िल्में आईं, जो बॉक्स ऑफिस पर बाहुबली वाले कमाल को दोहरा न सकीं। 2019 में आई उनकी एक्शन फिल्म ‘साहो’ को समीक्षकों ने नकार दिया, लेकिन फिर भी दुनिया भर में ये फिल्म 430 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार करने में सफल हुई। हालाँकि, 300 करोड़ रुपए के बजट के कारण इसे हिट का तमगा नहीं मिला। 2022 में आई ‘राधे श्याम’ मुश्किल से 200 करोड़ रुपए का कारोबार कर पाई और विजुअली ग्रैंड होने के बावजूद समीक्षकों द्वारा भी औसत ही ठहराई गई।

इन दो फिल्मों के औसत से नीचे के प्रदर्शन ने ये चर्चाएँ शुरू कर दीं कि क्या प्रभास की फ़िल्में तभी पैन-इंडिया पर धमाल मचाएँगी, जब उसका निर्देशन एसएस राजामौली करेंगे? आखिर 2500 करोड़ रुपए के कलेक्शन बाहुबली सीरीज की दोनों फिल्मों से ही तो आए। इससे पहले 2005 में ‘छत्रपति’ में वो एसएस राजामौली के निर्देशन में काम कर चुके थे। प्रभास को लेकर इन चर्चाओं पर ‘आदिपुरुष’ विराम लगा सकती थी, जिसमें रामायण की कहानी दिखाई गई है।

लेकिन, इस फिल्म में सैफ अली खान को ‘रावण’ के किरदार में लिए जाने के बाद विवाद बढ़ गया। लोगों ने पूछा कि ऐसे व्यक्ति को इस किरदार में क्यों लिया गया, जो अंग्रेजों से पहले भारत का अस्तित्व ही नहीं मानता। सैफ ने ये तक कह दिया कि ‘आदिपुरुष’ में सीता हरण की घटना को जायज ठहराया जाएगा। हिन्दुओं की भावनाएँ आहत थीं ही, रही-सही कसर फिल्म के टीजर ने पूरी कर दी। VFX नक्सली लगे और दृश्य हॉलीवुड से कॉपी-पेस्ट।

प्रभास के कंधे पर चढ़ कर फिल्म अच्छी ओपनिंग तो ले सकती है, लेकिन अब इसे ‘वर्ड ऑफ माउथ’ की परीक्षा से गुजरना होगा। ये ‘बाहुबली’ के पहले हिस्से के कलेक्शन को भी पार कर जाए तो बहुत बड़ी बात होगी। फिल्म के बजट को देखते हुए इसके हिट होने की संभावना कम ही है। हालाँकि, ‘KGF’ के निर्देशक द्वारा बनाई जा रही ‘सालार’ और दीपिका पादुकोण के साथ प्रभास की ‘प्रोजेक्ट के’ से काफी उम्मीदें हैं। उनके पास फिल्मों की लाइन लगी है, उनकी प्रतिभा और मेहनत को देखते हुए लगता है कि अपने ब्रांड को वो पुनः स्थापित करेंगे।

कुछ इस तरह तेलुगु दर्शकों के ‘डार्लिंग’ बने थे प्रभास

2002 में आई ‘ईश्वर’ प्रभास की पहली फिल्म थी। हालाँकि, ये फिल्म उन्हें लोकप्रियता नहीं दिला पाई। प्रभास के चाचा कृष्णम राजू खुद एक बड़े अभिनेता हुआ करते थे, जो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 4 साल केंद्रीय राज्यमंत्री भी रहे। वो काकीनाड़ा और नरसापुर से 2 बार लोकसभा सांसद रहे थे। वो 1967 से ही तेलुगु फिल्मों में सक्रिय थे। गोहत्या को प्रतिबंधित कराने के लिए वो संसद में बिल लेकर आए थे। उन्हें ‘राधे श्याम’ के तेलुगु वर्जन में प्रभास के गुरु के किरदार में देखा गया था।

उन्हें लोकप्रियता मिली 2004 में आई ‘वर्षम्’ से, लेकिन 2005 में आई एसएस राजामौली की ‘छत्रपति’ ने उन्हें तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में बतौर स्टार स्थापित कर दिया। 2012 में जब ‘रिबेल’ आई, तब तक उनकी फैन फॉलोविंग काफी बढ़ चुकी थी। मैं अपनी बात करूँ तो मैंने 2012 में उनकी दो फ़िल्में ‘चक्रम (2005)’ और ‘Mr. परफेक्ट (2011)’ देखी थी, जिसने मेरे मन पर गहरी छाप छोड़ी थी। उसी समय मुझे लगा था कि ये अभिनेता आगे जाकर कुछ बहुत बड़ा करने वाला है।

प्रभास के बारे में ये भी कहा जाता है कि वो ब्रांड्स के एंडोर्समेन्ट में दिलचस्पी नहीं रखते और 2020 में उनके द्वारा 150 करोड़ रुपयों के विज्ञापन ठुकराने की बात सामने आई थी। 2015 में उन्हें पहली बार महिंद्रा के विज्ञापन में टीवी पर देखा गया था। 2013 में आई ‘मिर्ची’ फिल्म भी उनकी सुपरहिट रही थी। उनका परिवार वेस्ट गोदावरी जिले के मोगलतुरु से ताल्लुक रखता है। उन्होंने हैदराबाद के नालंदा कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। कला की पढ़ाई उन्होंने विशाखापत्तनम स्थित ‘सत्यानंद फिल्म इंस्टिट्यूट’ से की।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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