भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के प्रसार के लिए तबलीगी जमात के वे हज़ारों लोग जिम्मेदार हैं, जिन्होंने निजामुद्दीन स्थित मरकज़ में जुटान किया और लॉकडाउन के बावजूद मजहबी कार्यक्रम करते रहे। आज जब हज़ारों जमाती संक्रमित हैं और कइयों को उन्होंने संक्रमित किया है, उन्हें दोष देना अपराध माना जाने लगा है। वामपंथी इसे सही नहीं मानते। कंगना रनौत की बहन रंगोली चंदेल ने जब जमातियों की हरकतों की निंदा की तो ट्विटर ने उनका अकाउंट सस्पेंड कर दिया। पहलवान बबीता फोगाट ने आवाज़ उठाई तो उनकी ट्रोलिंग की गई। बावजूद इसके वो अपने स्टैंड पर कायम हैं।
बबीता का पूछना है कि क्या जमातियों की हरकतों की निंदा करना और उन्होंने जो किया, उसे लेकर सच बोलना अपराध है? उनके उस वीडियो को आम जनता ने तो हाथों हाथ लिया लेकिन गिरोह विशेष को ये कुछ रास नहीं आया। उन्हें याद दिलाया जाने लगा कि कैसे एक मुस्लिम यानी आमिर ख़ान ने ‘दंगल (2016)’ फिल्म बना कर फोगाट बहनों को ‘लोकप्रिय’ बना दिया। उन्हें एक मुस्लिम का ‘एहसान’ ऐसे याद दिलाया जाने लगा, जैसे ‘दंगल’ की कमाई का पूरा रुपया उन्हें ही मिला। क्या फोगाट बहनों ने आमिर के पाँव पकड़े थे कि वे उनके परिवार पर फ़िल्म बनाएँ? नहीं, आमिर ख़ान उनकी कहानी लेने गए थे।
अगर ‘दंगल’ के वैश्विक कलेक्शन को देखें तो फ़िल्म ने लगभग 2000 करोड़ रुपए का कारोबार किया था। इसमें चीन में हुई बम्पर कमाई भी शामिल है। कमाई के मामले में बाहुबली-2 ही केवल इसके बराबर में खड़ी है। एक और बात जानने लायक ये है कि ‘दंगल’ को ख़ान दम्पति और यूटीवी के मालिक सिद्धार्थ रॉय कपूर ने मिलकर प्रोड्यूस किया था। कमाई हुई आमिर ख़ान की, नाम फोगाट बहनों का, रुपए गए आमिर के पास, फिर बबीता को इस चीज का ‘एहसान’ याद दिला रहे हैं वामपंथी? वो भी ऐसे समय में, जब वो सच बोल रही हैं और कोरोना करियर बने जमातियों का विरोध कर रही हैं।
बबीता फोगाट ने किसी मजहब का नाम तो नहीं लिया। उन्होंने इस्लाम को कुछ नहीं कहा। फिर ‘आतंकियों का कोई मजहब नहीं होता’ कहने वाले ये कैसे समझ गए कि जमातियों का मजहब इस्लाम होता है और तबलीगी जमात वालों के ख़िलाफ़ बोलना इस्लाम पर आरोप है? ये दोहरा रवैया क्यों? पुलिस और स्वास्थ्यकर्मियों पर मुस्लिम बहुल इलाक़ों में हमले हुए लेकिन उनकी निंदा करना वामपंथियों को रास नहीं आता। क्या एक वर्ग विशेष को ख़ास अधिकार मिला हुआ है कि वो मारकाट करे और फिर ख़ुद को पीड़ित बता कर असली पीड़ितों को बदनाम करे? अरुंधति सरीखों ने इसका बीड़ा उठाया हुआ है।
अकबर को हम नहीं जानते थे क्या? उसे ह्रितिक रोशन ने लोकप्रिय बनाया? मिल्खा सिंह को तो फरहान अख्तर के पाँव छूने चाहिए इस हिसाब से? मेरीकॉम को भी प्रियंका चोपड़ा के ‘एहसान’ तले दबा होना चाहिए। अगर किसी गुमान हस्ती पर फ़िल्म बनाई जाती है तो एक बार, जिसके बारे में हरियाणा से लेकर देश-दुनिया में चर्चा हो रही है, उस पर फ़िल्म बनाने का मतलब उसे लोकप्रिय बनाना नहीं, बल्कि उसके संघर्षों को जनमानस तक ले जाना ध्येय होता है, जिससे कमाई तो होती ही होती है। मिल्खा सिंह ने मात्र एक रुपए में अपनी कहानी दी, जिस फिल्म ने दुनिया भर में 210 करोड़ रुपए की कमाई की।
had @BabitaPhogat not won these prestigious medals ?
— मनोज manoj (@ManojMakkar02) April 17, 2020
would Aamir make Dangal?
he invested only for personal profit.
Babita won…
gold
2014 Commonwealth Games
Silver
2010 & 2018 Commonwealth Games
bronze
2012 World Wrestling Champ#ISupport_BabitaPhogat #WellDoneBabita pic.twitter.com/IfVeAzQR6N
बबीता फोगाट कॉमनवेल्थ गेम्स और चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। एशियाई और वर्ल्ड चैंपियनशिप में उन्हें मेडल मिले हैं। उनकी बड़ी बहन गीता फोगाट भी विभिन्न वैश्विक टूर्नामेंट्स में पदक जीत चुकी हैं। उनकी बहन विनेश फोगाट को भी एशियाई चैंपियनशिप में मेडल मिले हैं। साथ ही कॉमनवेल्थ में तो मिला ही है। ये सभी बहनें काफ़ी संघर्ष कर के ऊपर आई हैं, जिनमें इनके पिता का संघर्ष भी है जो आप ‘दंगल’ में देख चुके हैं। अगर उन्होंने ये मेडल्स नहीं जीत रखे होते तो क्या बॉलीवुड इन पर फ़िल्म बनाता? किसी अभिनेता-अभिनेत्री ने तो इनकी जगह मेडल जीत कर देश का गौरव नहीं बढ़ाया?
इन वामपंथियों का जायरा वसीम को लेकर रुख नरम रहता है, जिन्होंने अल्लाह और इस्लाम की दुहाई देते हुए सिनेमा जगत से नाता तोड़ने की घोषणा की। जायरा ने ही ‘दंगल’ में बबीता का रोल किया था। जायरा वसीम ने फ्लाइट में एक व्यक्ति द्वारा बदसलूकी किए जाने का आरोप लगाया। उसे 3 साल के लिए जेल हो गई। सहयात्रियों में से एक ने भी उनके आरोपों की पुष्टि नहीं की। सबने कहा कि मोलेस्टेशन जैसी कोई चीज हुई ही नहीं। लेकिन, इस मामले में लोगों को अलग-अलग राय रखने की या चर्चा की ज़रूरत वामपंथियों ने समझी ही नहीं। बबीता को जायरा ने लोकप्रिय बना दिया, जो कि एक मुस्लिम हैं। है न?
यहाँ तक कि बीबीसी जैसे बड़े मीडिया संस्थानों ने भी बबीता फोगाट द्वारा जमातियों की हरकतों की निंदा किए जाने को मुस्लिम-विरोधी बयान बताया। बबीता फोगाट ने कहा भी कि वो जायरा वसीम नहीं हैं कि डर जाएँगी। असल में ये सब कुछ उन्हें डराने के लिए ही हो रहा है, ताकि आगे से कोई भी खिलाड़ी राजनीति में रूचि न ले और भाजपा को अपनी पसंद बनाए तो उसे पता हो कि इसका क्या ‘अंजाम’ होता है। दरअसल, उन्हें डराया जा रहा है कि उनकी ऐसे ही ‘सोशल लिंचिंग’ की जाएगी, अगर उन्होंने भाजपा ज्वाइन की तो। ऐसे ही डर के कारोबारियों को बबीता ने चेताया है कि वो डरने वाली नहीं हैं।
कुछ ने तो यहाँ तक लिख दिया कि अगर आमिर खान नहीं होते तो आज बबीता फोगाट ट्वीट ही नहीं कर रही होतीं। एक अन्य व्यक्ति ने दो साँपों की तस्वीर शेयर कर के उन्हें फोगाट बहनें बता दिया। एक ने कहा कि आमिर, फातिमा और जायरा- इन तीनों मुस्लिमों के कारण ही देश में बबीता को आज लोग जानते हैं। एक ने तो यहाँ तक दावा कर दिया कि आमिर ने ‘दंगल’ फोगाट बहनों को सपोर्ट करने के लिए बनाई थी, कमाई के लिए नहीं। एक ने याद दिलाया कि देश में तुम्हारे जैसे कितने ही खिलाड़ी हैं, उन्हें कोई नहीं जानता। हालाँकि, ऐसा बोल कर वो गर्व क्यों महसूस कर रहे, ये समझ से पड़े है।
कुल मिला कर बात ये है कि बबीता फोगाट भाजपा की तरफ से चुनाव लड़ चुकी हैं, इसीलिए उनकी सारी योग्यताओं के लिए आमिर ख़ान को श्रेय दिया जा रहा है। देश के लिए जीते गए उनके सारे मेडल्स बेकार हो गए हैं, क्योंकि उन्होंने जमातियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है। उनके संघर्ष की कहानी फीकी पड़ गई, क्योंकि उन्होंने वामपंथियों की हाँ में हाँ नहीं मिलाई है। अगर आज देश में खिलाड़ियों की कदर नहीं है तो क्या ये गर्व करने की बात है? इस पर तो दुख जताया जाना चाहिए। वैसे बबीता ने पहले ही बता दिया है कि वो ‘हरियाणा की छोरी’ है, वो झुकेंगी नहीं। अब देखना है वामपंथी और इस्लामी कट्टरवादी कितना गिरते हैं।