अभिनेता रणदीप हुड्डा ‘स्वतंत्र वीर सावरकर’ नामक फिल्म लेकर आ रहे हैं, जिसमें उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी वीर विनायक दामोदर सावरकर का किरदार निभाया है। इस फिल्म का निर्देशन भी उन्होंने ही किया है। भारत का वामपंथी-लिबरल-सेक्युलर गिरोह अक्सर सावरकर की आलोचना करता रहा है और हिंदुत्व की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें निशाना बनाता रहा है। एक टीवी डिबेट में रणदीप हुड्डा ने सावरकर को लेकर चलाए जा रहे ऐसे ही प्रोपेगंडा को ध्वस्त किया।
एक पत्रकार ने उनके इस बयान पर आपत्ति जताई कि जो आज़ादी की कहानियाँ हमने पढ़ी उनमें कहा गया कि अहिंसा से हमें आज़ादी मिली, जबकि ऐसा नहीं है। ‘ABP न्यूज़’ पर उक्त पत्रकार ने पूछा कि क्या भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आप अहिंसा की विचारधारा और भूमिका को नकारते हैं? इस पर रणदीप हुड्डा ने जवाब दिया कि देश को जोड़ने में अहिंसा का बहुत बड़ा योगदान था, लेकिन सिर्फ वही एक सोच नहीं थी जो देश के लिए लड़ रही थी, सशस्त्र क्रांति भी बड़ी चीज थी।
रणदीप हुड्डा ने याद दिलाया कि 1870 के दशक में वासुदेव फड़के जैसे क्रांतिकारियों ने फिर से बंदूक उठाई तो 1885 में AO ह्यूम ने कॉन्ग्रेस का गठन किया जिसमें सारे अंग्रेजी में शिक्षित भारतीय थे और अंग्रेजों-भारतियों के बीच एक सेतु बनाने के लिए इसका इस्तेमाल हुआ। उन्होंने बताया कि कैसे कड़ा रुख रखने वाले बाल गंगाधर तिलक भी इसके अध्यक्ष बने, वहीं इसमें गोपाल कृष्ण गोखले जैसे नरमपंथी भी थे। अभिनेता ने कहा कि भारत की आज़ादी में दोनों का योगदान था, सशस्त्र क्रांति वाले जब कुछ करते थे तो कॉन्ग्रेस के प्रस्ताव जल्दी स्वीकार कर लिए जाते थे।
उन्होंने कहा, “मुझे कष्ट इस बात से होता है कि सशस्त्र क्रांति को बिलकुल ही गायब कर दिया गया जैसे कि वो कुछ थे ही नहीं, सिर्फ कॉन्ग्रेस के चंद लोगों ने ही आज़ादी दिलाई। इतिहासकार भी उन्हीं के थे, इसीलिए उनका ही महिमामंडन किया गया।” अंदमान और रत्नागिरी के सावरकर में फर्क के बारे में पूछने पर रणदीप हुड्डा ने कहा कि जब 25-26 साल के किसी नौजवान को कालापानी की सज़ा हो जाए तो उसके अंदर काफी निराशा होगी ही।
उन्होंने बताया कि सावरकर क्रांतिकारी थे, बाद में उन्होंने साम-दाम-दंड-भेद कर के वहाँ से निकलने के लिए प्रयास किया। बकौल रणदीप हुड्डा, देश के स्वतंत्रता व सांस्कृतिक संग्राम के अलावा इसे जोड़ने के लिए वो बाहर आना चाहते थे। जब वो रत्नागिरी पहुँचे तब तक लोगों को बेवकूफ बनाने वाला खिलाफत आंदोलन हो चुका था और भारत के इस्लामीकरण की तैयारी थी। रणदीप ने बताया कि तुर्की में खलीफा को बिठाने के लिए और कहीं के नहीं, सिर्फ भारत के मुस्लिम ही लड़ रहे थे।
उन्होंने इस दौरान रायबरेली और शौकत अली और मोहम्मद अली का भी नाम लिया। इन लोगों ने अफगानिस्तान के अमीर को पत्र लिख कर भारत पर हमला करने और सल्तनत स्थापित करने का आमंत्रण दिया था। बकौल रणदीप हुड्डा, ये लोग चाहते थे कि अंग्रेजों के आने से पहले सल्तनत था और उनके जाने के बाद भी यही रहे। महात्मा गाँधी ने खिलाफत का समर्थन भी किया, मुस्लिमों को जनसंख्या से ज़्यादा सीटें दी गईं। रणदीप हुड्डा ने बताया कि कैसे रत्नागिरी में सावरकर ने हिंदुत्व के बारे में लिखा, जो भारत का भौगोलिक और सांस्कृतिक इतिहास है।
Randeep was at the studio debating with journalists who think they know everything but Randeep blew their minds as he spoke extensively and with authority destroying the fake narratives spread about Veer Savarkar 🙏🏾 pic.twitter.com/84VHwMqOEM
— Eagle Eye Modi Ka Parivaar (@SortedEagle) March 11, 2024
रणदीप हुड्डा ने समझाया, “जो हिन्द को अपना माने वो हिन्दू है, चाहे वो किसी भी धर्म या समाज का हो। परिस्थितियाँ बदल गई थीं और दूसरे विश्व युद्ध के बाद के भारत में कुछ लोगों का पक्ष लिया जा रहा था। सावरकर कहते थे कि वो हिन्दू इसीलिए हैं क्योंकि सामने वाला मुस्लिम है, अन्यथा वो विश्वमानव थे। सावरकर ‘माफीवीर’ नहीं थे।” ‘क्या सावरकर डर गए थे?’ – इस सवाल पर हुड्डा ने कहा कि सावरकर को फाँसी होती तो वो बहुत बड़े बलिदानी बन जाते और अंग्रेज ये नहीं चाहते थे। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे वासुदेव फड़के को यमन ले जाकर चुपके से फाँसी दी गई।