अजादी की लड़ाई के कई नायकों को, उनके साहस और शौर्य को, उनके योगदान को दो-चार पंक्तियों में समेट उन्हें मुख्यधारा से दूर कर दिया गया। आज 17 जुलाई को एक ऐसे ही नायक की 185वीं पुण्यतिथि है। ब्रिटिश साम्राज्य को भारत से उखाड़ फेंकने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले उस योद्धा का नाम है, यू तिरोत सिंह (U Tirot Sing)।
मेघालय के इस योद्धा पर पूरे नॉर्थ-ईस्ट को गर्व होता है। तिरोत सिंह ने बहुत छोटी उम्र में ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ बिगुल फूँक दिया। अपने करीब 10,000 लड़ाकों के साथ उनकी ईंट से ईंट बजाकर रख दी।
वैसे तो खासी समुदाय से आने वाले तिरोत सिंह खडसॉफ्रा सियामेशिप (Khadsawphra Syiemship) के राजा थे। लेकिन उन्हें उस पद पर बेहद संवैधानिक रूप से आसित करवाया गया था। उनके भीतर का जज्बा बिलकुल किसी योद्धा जैसा था।
“The Great Warriors of Bharat”
— Dipankar (@Shomes_quest) July 17, 2020
Today marks the 185th death anniversary of one of the greatest warriors of Bharat “U Tirot Sing”.One of the revolutionary leaders of North East India.
He was one of the dynamic leaders who fought against the British Regime.
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राजा तिरोत सिंह स्वयं भी अपनी प्रजा की भलाई के बारे में दिन रात सोचते थे। इसी कारण जब ईस्ट इंडिया कंपनी के डेविड स्कॉट के नेतृत्व में ब्रिटिशों ने उनके सामने प्रस्ताव रखा कि वह गुवाहाटी को सिलहट से जोड़ने के लिए सड़क निर्माण करना चाहते हैं तो उन्होंने उस विचार का स्वागत किया।
तिरोत सिंह को लगा कि इससे उनके समुदाय को सविधा होगी और वह अपने व्यापार को विस्तार दे पाएँगे। उन्होंने साल 1827 में डेविड स्कॉट के साथ अपने दरबार में बैठक की। इस बैठक में लंबी चर्चा के बाद गुवाहाटी के नजदीक रानी से नोंगख्लो होते हुए सुरमा घाटी तक सड़क निर्माण को मँजूरी दी गई।
He had the interest of his people in mind and so, when the British led by David Scott approached him with the proposal to build a road connecting Guwahati to Sylhet.
— Dipankar (@Shomes_quest) July 17, 2020
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सड़क बनने का काम शुरू हुआ तो उन लोगों के बंगले भी नोंगख्लो में आ गए। लगभग 18 महीनों के लिए, कार्य सुचारू रूप से आगे बढ़ा और अधिकारियों ने स्थानीय आदिवासियों के साथ स्वतंत्र रूप से मिश्रित होकर सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे। मगर, एक दिन एक बंगाली सेवक ने तिरोत सिंह को यह बताया कि अंग्रेज इस रोड को बनाने के साथ स्थानीय लोगों पर कर लगाने की योजना बना रहे है और सड़क पूरी होते ही उन्हें अपने अधीन कर लेंगे।
He said they were planning to levy taxes on the local people and subjugate them as soon as the road was completed.Tirot Singh also learned of reinforcements being brought in to Guwahati. He convened another durbar and also instructed the British to vacate Nongkhlow(10/n)
— Dipankar (@Shomes_quest) July 17, 2020
तिरोत सिंह को ब्रिटिशों की जालसाजी समझने में देर न लगी। उन्हें मालूम चल गया कि इस सड़क के जरिए ब्रिटिश किस घिनौनी मंशा को अंजाम देना चाहते हैं। उन्होंने फौरन सभी को नोंगख्लो खाली करने को कहा। मगर, ब्रिटिशों ने इसे नजरअंदाज कर दिया।
तिरोत सिंह इस नाफरमानी को देखकर नाराज हो गए। इसके बाद उन्होंने अपने कुछ अधिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेजों पर 4 अप्रैल 1829 को हमला किया। उधर, ब्रिटिशों ने भी तिरोत सिंह की नाराजगी देखकर खुद को बचाने के लिए अपने सैनिकों को सिलहट और कामरुप में बुलाया और उनकी आवाज दबानी चाही। किंतु तिरोत सिंह के नेतृत्व में खासी चुप न बैठे और उन्होंने अंग्रेजों के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने की पेशकश की।
यू तिरोत सिंह के सिर्फ़ पारंपरिक युद्ध के समान जैसे तीर, भाला, तलवार आदि थे। अंग्रेजों की बंदूक और युद्ध की रणनीति के ख़िलाफ़ ये असरदार नहीं थे। बावजूद तिरोत सिंह के नेतृत्व में खासी समुदाय के लड़ाकों ने हार नहीं मानी।
चार साल तक अंग्रेजों से उनका युद्ध चला। तिरोत सिंह की ताकत लगातार क्षीण हो रही थी। लेकिन वे अंग्रेजों के सामने झुकने को तैयार नहीं हुए। घायल हालत में उन्होंने गुफाओं में जाकर शरण ली। दुर्भाग्यवश उनके किसी अपने ने ही ब्रिटिशों के साथ मिलकर छल कर दिया और करीब 9 जनवरी 1833 को उनका जबरन सरेंडर करवाया गया।
इसके बाद उन्हें ढाका भेजा गया। जहाँ कैद में रहने के दौरान उन्होंने 17 जुलाई 1835 में अपनी आखिरी साँस ली। माना जाता है कि उन्हें पेट में परेशानी शुरू हो हई थी। जिसके कारण उनकी मृत्यु हुई। आज तिरोत सिंह को भारत के उन शूरवीरों के साथ याद किया जाता है जिन्होंने ब्रिटिशों के ख़िलाफ़ कभी अपना सिर अपनी मर्जी से नहीं झुकाया और विपरीत हवा होने के बावजूद मैदान में अड़े रहे।
मेघालय के इस जाबाँज का उल्लेख ब्रिटिश इतिहासकार सर एडवर्ड गेट की किताब ‘The History of Assam’ और प्रोफेसर पीएन दत्ता की ‘1986 में असम शिलांग के इतिहास की झलक’ में भी है। इसके अलावा आज के दिन सोशल मीडिया पर भी लोग तिरोत सिंह को याद करते हुए नमन कर रहे हैं और उनसे जुड़ी कहानी साझा कर उनके शौर्य को नमन कर रहे हैं।