प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार (4 जुलाई, 2022) को आंध्र प्रदेश के भीमावरम शहर में महान स्वतंत्रता सेनानी अल्लूरी सीताराम राजू की प्रतिमा का अनावरण करेंगे। वह सुबह 11 से दोपहर 12:15 बजे तक अल्लूरी सीताराम राजू की मनाई जा रही 125वीं जयंती के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। पीएम भीमावरम पार्क में 30 फुट ऊँची कांस्य प्रतिमा का अनावरण करेंगे और एक जनसभा को संबोधित करेंगे।
विशेष मुख्य सचिव (पर्यटन एवं संस्कृति) रजत भार्गव ने गुरुवार (30 जून 2022) को प्रधानमंत्री की यात्रा से जुड़े इंतजामों का जायजा लिया। भार्गव ने कहा कि प्रधानमंत्री की यात्रा के लिए चार हेलीपैड तैयार किए गए हैं। विशेष सुरक्षा समूह (SPG) के कर्मी सुरक्षा की जिम्मेदारी सँभाल रहे हैं। पीएम मोदी हैदराबाद से विशेष उड़ान से गन्नावरम पहुँचेंगे। इसके बाद हेलीकॉप्टर से पश्चिम गोदावरी जिले में भीमावरम जाएँगे। केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी ने तेलुगू देशम पार्टी के प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू को कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता भेजा है।
अल्लूरी सीताराम राजू कौन थे?
अल्लूरी सीताराम राजू एक भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक सशस्त्र अभियान चलाया। उनका जन्म 1897 में विशाखापटनम में हुआ था। उनका असली नाम श्रीरामराजू था, जो कि उनके नाना के नाम पर था। वह छोटी उम्र में ही संत बन गए थे। सीताराम राजू वर्ष 1882 के मद्रास वन अधिनियम के खिलाफ ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गए। भारत की ब्रिटिश सरकार ने मद्रास फॉरेस्ट एक्ट पास कर स्थानीय आदिवासियों को जंगल में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसी को लेकर उन्होंने आदिवासियों के लिए लड़ाई लड़ी और औपनिवेशिक ताकतों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का आह्वान किया।
महज 27 साल की उम्र में वह सीमित संसाधनों के साथ सशस्त्र विद्रोह को बढ़ावा देने और गरीबों, अंग्रेजों के खिलाफ अनपढ़ आदिवासी को प्रेरित करने में कामयाब रहे। अंग्रेजों के प्रति बढ़ते असंतोष ने 1922 के रम्पा विद्रोह (Rampa Rebellion) को जन्म दिया, जिसमें अल्लूरी सीताराम राजू ने एक नेतृत्वकर्त्ता के रूप में एक प्रमुख भूमिका निभाई। 1922 से 1924 के बीच हुए इस विद्रोह में अल्लूरी ने ब्रिटिशर्स के खिलाफ विद्रोह करने के लिए विशाखापट्टनम और पूर्वी गोदावरी जिलों के आदिवासी लोगों को संगठित किया। इस विद्रोह के दौरान कई पुलिस थानों और अंग्रेजी अधिकारियों पर हमला करके लड़ाई के लिए हथियार जमा किए गए।
उनके वीरतापूर्ण कारनामों का ही नतीजा था कि स्थानीयों ने उन्हें ‘मान्यम वीरुडू’ (जंगलों का नायक) उपनाम दे दिया था। साल 1924 में अल्लूरी सीताराम राजू का विद्रोह जब चरम पर था तो पुलिस उनका पता लगाने के लिए आदिवासियों को सताने लगी। ऐसे में जब राजू को इस बात का पता चला तो उनका दिल पिघल गया। उन्होंने आत्मसमर्पण का निर्णय लिया और खुद अपनी जानकारी देकर पुलिस को कहा कि वो कोइयूर में हैं। आकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाए।
ब्रिटिश पुलिस ने बिन समय को गवाए उन्हें अपनी हिरासत में लिया और बाद में उनके साथ विश्वासघात करते हुए उन्हें एक पेड़ में बाँधा, फिर सार्वजनिक रूप से उन्हें गोलियों से भून दिया गया। उनकी हत्या क्रूरता से हुई मगर आदिवासियों के लिए वह नायक बन गए। वहीं सुभाष चंद्र बोस ने कहा कि भारतीय युवाओं को अल्लूरी सीताराम राजू से प्रेरणा लेनी चाहिए।
बता दें कि महान स्वतंत्रता सेनानी का दुर्ग कृष्णा देवी पेटा गाँव में स्थित है। कहते हैं कि देश के लिए लड़ते हुए उन्होंने अंग्रेजों की कई यातनाएँ सहीं, लेकिन उनके सामने सिर नहीं झुकाया। अफसोस की बात है कि सीताराम राजू को राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस से कभी भी कोई समर्थन नहीं मिला। बजाए समर्थन के, उन्होंने ब्रिटिशर्स द्वारा राम्पा विद्रोह का दमन और राजू की हत्या का स्वागत किया।
स्वातंत्र्य साप्ताहिक पत्रिका ने यहाँ तक दावा किया था कि अल्लूरी सीताराम राजू जैसे लोगों को मार दिया जाना चाहिए, और कृष्ण पत्रिका ने कहा था कि पुलिस को लोगों को क्रांतिकारियों से खुद को बचाने के लिए अधिक हथियार दिए जाने चाहिए। ये बात और है कि इन्हीं पत्रिकाओं में राजू की हत्या के बाद उन्हें ‘एक और शिवाजी’ और ‘एक और जॉर्ज वॉशिंगटन’ कहा गया था