कुछ लोग कहते हैं कि आज जो भारत है ये अंग्रेजों की देन है, यानी अंग्रेजों के आने से पहले भारत था ही नहीं। ऐसा मानने वालों में अभिनेता सैफ अली खान भी शामिल हैं। अब शिवा ट्राइलॉजी के लेखक अमीश त्रिपाठी ने एक वीडियो सीरीज शुरू की है, जिसमें उन्होंने तथ्यों एवं तर्कों के सहारे ऐसा मानने वालों को जवाब दिया है। पहले एपिसोड में ही उन्होंने बताया कि अंग्रेजी प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल का भी ऐसा ही मानना था। इस दौरान उन्होंने पॉलिटिकल कंसल्टेंट दिलीप चेरियन का बयान दिखाया, जिन्होंने कहा था कि आपस में दुश्मन रखने वाले कबीलों को एक झंडे के नीचे एकत्रित किया गया।
इसी तरह उन्होंने खुद को ‘हिस्ट्री बफ’ बताने वाले सैफ अली खान का बयान दिखाया, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘इंडिया’ का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं था अंग्रेजों से पहले। अमीश त्रिपाठी ने इसका विश्लेषण किया है कि आज पढ़े-लिखे लोग भी ऐसा क्यों सोचते हैं। उन्होंने इस दौरान JNU में ‘सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज’ के प्रोफेसर राकेश बतबयाल का बयान दिखाया, जिन्होंने कहा था कि सैफ अली खान ने किताबों में पढ़ा होगा कि अंग्रेजों ने प्रशासनिक रूप से भारत के एक बड़े क्षेत्र को एक किया।
अमीश त्रिपाठी कहते हैं कि हमारी शिक्षा प्रणाली हमें ऐसी बातें सिखा रही हैं। उन्होंने बताया कि 200 वर्षों तक भारत अंग्रेजों व अन्य यूरोपियन देशों के गुलाम रहे जिन्होंने इतिहास अपने हिसाब से लिखा और हमारे सोच व नैरेटिव को अपने एजेंडे के लिए इस सोच से भर दिया कि हम एक राष्ट्र थे ही नहीं। उन्होंने हमारी आवाज़ों को दबा दिया और आज भी हमारी शिक्षा व्यवस्था गुलामी के कालखंड वाली ही है। हम चीजों को उसी तरह देखते हैं जैसा अंग्रेज चाहते थे। अमिश त्रिपाठी इसे Gaslighting कहते हैं, यानी पीड़ित के मन में ये बिठा देना कि उसका शोषण उसी की गलती है।
अमीश त्रिपाठी ने बताया कि भारत को अंग्रेजों ने बँटा हुआ बताया और उन्हें इसका फायदा हुआ, जैसे एक तमिल को कहा जाएगा कि पंजाबी उससे अलग हैं तो वो क्यों भारत की आज़ादी के लिए लड़ेंगे। उन्होंने एलेक्जेंडर डाओ की एक पुस्तक का जिक्र करते हुए बताया कि उसने लिखा था कि भारत कई टुकड़ों में बँटा हुआ है और ये आपस में लड़ते रहते हैं। JR सिली ने भी लिखा कि सबके अलग धर्म और रीति-रिवाज हैं। अंग्रेज मानते थे कि भारत को सभ्य बनाने के लिए इसे गुलाम बनाने की ज़रूरत थी।
अमीश त्रिपाठी ने कहा, “अंग्रेजों ने भारत को असभ्य, नियम का पालन न करने वाला और उपद्रवी बताया। रेडयार्ड किपलिंग ने कहा कि भारत को सभ्य बनाने की जिम्मेदारी अंग्रेजी की थी। इसके बदले हमारी संस्कृति और हमारे जीवन पर भी उन्होंने अपना दावा ठोक दिया। जिन भारतीयों का अंग्रेजीकरण हो गया है, वो आज भी इस पर विश्वास करते हैं। ब्रिटिश प्रशासन भी यही कर रहा था। कैम्ब्रिज में एक अंग्रेज अधिकारी ने कहा कि भारत कभी संगठित नहीं था। जबकि हम आज भी यही हैं और रहेंगे।”
उन्होंने इस दौरान ‘शोले’ के ‘गब्बर सिंह’ का उदाहरण दिया, जिसमें वो गाँव वालों की हिफाजत के लिए उनसे अनाज वगैरह लेने को जायज ठहराता है। लेखक अमीश त्रिपाठी ने कहा कि अगर हम खुद को कमज़ोर मान लेते तो उनसे लड़ नहीं पाते और उन्हें हम पर राज करने में आसानी होती। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे मात्र 1 लाख अंग्रेजों ने 35 करोड़ भारतीयों पर 200 वर्ष राज किया। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे भारत सबसे पुरानी सभ्यता है जो आज तक जीवित है, हमारे पूर्वज भारत को एक राष्ट्र के रूप में मानते थे।
उन्होंने इस दौरान विष्णु पुराण का उदाहरण दिया, जिसे आधुनिक इतिहासकार 1500 वर्ष पुराना तक बताते हैं, उसमें साफ़-साफ़ लिखा है कि जिस राष्ट्र के उत्तर में हिमालय और दक्षिण में समुद्र है उसे भारत कहते हैं और यहाँ भरत के वंशज रहते हैं। इसी ग्रन्थ में भारत के 7 महत्वपूर्ण पर्वतों के बारे में भी दिया गया है, जिनमें 2 दक्षिण भारत के हैं। इसमें चंद्रभागा से लेकर गोदावरी तक की नदियों के नाम है। इसमें लिखा है कि भारत के पश्चिम में ग्रीक और पूर्व में चीनी रहते हैं।
उन्होंने समझाया कि प्राचीन तमिल ग्रन्थ ‘तोलकप्पियम’ में लिखा है कि ये वेदों से प्रेरित है। अमीश त्रिपाठी ने विदेशियों की यात्रा वृत्तांत का जिक्र करते हुए भी बताया कि वो भी भारत को एक देश के रूप में देखते थे। 2000 वर्ष पूर्व सिंधु नदी पार कर के भारत आए लोगों ने कहा कि वो ‘इंडिका’ आए हैं, मेगस्थनीज ने भी लिखा कि उत्तर में पहाड़ है और दक्षिण में समुद्र। इसी तरह रोमन यात्री ने भारत में लोकतांत्रिक सरकार होने की बात कही, लिखा कि लोगों के पास अधिकार है, वो न्याय का सम्मान करते हैं, सच्चे हैं, लेकिन उनके पास राजा-मंत्री भी हैं जिनकी सेना है।
अमीश त्रिपाठी ने समझाया कि अंग्रेजों से 2000 वर्ष पूर्व भारत आए रोमन भी इसे एक राष्ट्र में देखते थे, वो रोमन जिनसे प्रेरित इमारतें इंग्लैंड में भी हैं। सन् 400 में भारत आए एक चीनी संत ने लिखा कि यहाँ उत्तर के पहाड़ों से लेकर दक्षिण के सागर तक भगवान बुद्ध उन्हें महसूस हुए। श्रीलंका से आए बौद्ध तमिलनाडु में उतरे जो गौतम बुद्ध के जन्मस्थान से 2500 किलोमीटर दूर है लेकिन उन्हें पता था कि वो भारत में आए हैं। यहाँ तक कि अरब यात्रियों ने भी भारत को एक सभ्यता माना, उन्होंने लिखा कि भारत कई कबीलों से भरा है लेकिन वो एक हैं, अपने पूर्वजों के प्रति उनमें एक जैसी श्रद्धा है।
उन्होंने बताया कि कैसे कोलंबस भी भारत को खोजने निकला था लेकिन अमेरिका पहुँच गया, वो भी भारत को एक राष्ट्र के रूप में ही देखता था। उन्होंने सवाल दागा कि अंग्रेजों ने फिर भारत का नाम ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ क्यों रखा? उन्होंने बताया कि 17वीं शताब्दी में यूरोप में युद्ध को रोकने के लिए एक संधि हुई और परिभाषित किया गया कि जिसकी एक भाषा, एक रिलिजन और एक नस्ल है वही देश है। वहाँ ईसाई मजहब में प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक दो अलग-अलग पंथ थे।
अमीश त्रिपाठी ने कहा कि शायद भारत इस परिभाषा में फिट नहीं बैठ रहा था लेकिन एक सभ्यता की परिभाषा में फिट बैठता है जो एक सांस्कृतिक धागे से बँधा हो। उन्होंने बताया कि एक सभ्यता एक राष्ट्र से बहुत बड़ा होता है, जैसे ब्रिटेन एक राष्ट्र है लेकिन पश्चिमी सभ्यता का भाग है, UAE-सऊदी भी अलग-अलग देश हैं लेकिन अरब सभ्यता का भाग हैं। नेशन स्टेट का कॉन्सेप्ट 1648 से आया, जबकि सभ्यता पुरानी है। सभ्यता विविधता के साथ फलती-फूलती है, नेशन स्टेट में एक सरकार के सारे नियम होते हैं लेकिन सभ्यता किसी राजनीतिक शक्ति नहीं बल्कि नैतिकता से चलती है, जैसे भारत में धर्म है।