अक्टूबर 30, 1990- यही वो दिन है जब उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चला कर ‘सेकुलरिज्म’ के नए मसीहा बने थे। इसके बाद लोगों ने उन्हें ‘मौलाना मुलायम’, ‘मुल्ला मुलायम’ जैसे तमगों से नवाजा था। इससे पहले अक्टूबर में लालू यादव ने यूपी में रथ घुसने से पहले ही तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ़्तार करवा कर अपने ‘सेकुलरिज्म’ का सबूत दिया था। अगर वो ऐसा नहीं करते तो मुलायम सिंह यादव इस मौके को लपक सकते थे। लेकिन मुलायम ने ख़ून बहा कर सेकुलरिज्म का झंडा बुलंद करने की ठानी। क्या-क्या हुआ था उस वक़्त, आइए आपको बताते हैं।
कहानी इसके एक दिन पहले से शुरू करते हैं, जब कारसेवकों के अतिरिक्त जत्थे अयोध्या पहुँचने लगे थे। विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल और उनके समर्थकों पर यूपी पुलिस ने लाठियाँ भाजी। क़रीब 100 साधुओं को गिरफ़्तार कर एक बस में रखा गया था, लेकिन अयोध्या के रामप्रसाद नामक साधु ने ड्राइवर को बाहर कर ख़ुद बस की कमान थामी और पुलिस के शिंकजे से निकलने में कामयाब हो गए। साधुओं का ये जत्था राम जन्मभूमि पहुँचा। अशोक सिंघल के घायल होने की ख़बर के बाद हज़ारों कारसेवक जमा हो गए थे। वो लोग सुरक्षा बलों के पाँव छूते थे और आगे बढ़ते जाते थे। लाठीचार्ज और आँसू गैस के गोले भी उन्हें न रोक सके।
मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या के बारे में बयान दिया था कि वहाँ परिंदा भी पर नहीं मार सकता। 30 अक्टूबर को कोठरी भाइयों ने गुम्बद के ऊपर भगवा ध्वज फहरा कर मुलायम सिंह को सीधी चुनौती दी। 30 अक्टूबर तक क़रीब 1 लाख लोग वहाँ पहुँच चुके थे, जिसमें 20,000 साधु-संत ही थे। सरयू नदी के पुल पर जब कारसेवक जमा हुआ, तब पुलिस ने गोली चलाई। मंदिर परिसर में गुम्बद पर चढ़े कारसेवकों पर गोलियाँ चलाई गईं। नींव की खुदाई कर रहे लोगों पर गोली चलाई गई। उस समय मुफ़्ती मोहम्मद सईद देश के गृहमंत्री थे।
आज ही के दिन 1990 में मुल्लायम नें कारसेवकों पर गोलियाँ चलवाईं थी,और वही मुल्लायम न केवल कई बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना,देश का रक्षामंत्री बना अपितु उसका बेटा भी मुख्यमंत्री बना।
— प्रशान्त पटेल उमराव (@ippatel) October 30, 2019
यह केवल सेक्युलर हिंदुओं के समर्थन से ऐसा सम्भव हुआ! Never Forget,Never Forgive.#सुप्रभात
कारसेवकों पर गोली चलाए जाने से मुफ़्ती मोहम्मद सईद भी ख़ुश थे। तभी तो उन्होंने मुलायम सरकार की पीठ भी थपथपाई थी। हालाँकि, भाजपा ने प्रधानमंत्री वीपी सिंह से इस गोलीकांड को लेकर ऐतराज जताया। जब कारसेवक गुम्बद पर चढ़े हुए थे, तब सीआरपीएफ ने भी गोली चलाई थी। सीआरपीएफ की गोली से गुम्बद पर चढ़े 2 कारसेवक नीचे गिरे और उनकी मृत्यु हो गई। वहीं 3 अन्य कारसेवक नींव खोदते हुए मारे गए। सीमा सुरक्षा बल ने भी फायरिंग की। कारसेवा करते हुए क़रीब 11 लोग मौके पर ही मारे गए। इसके विरोध में भड़के दंगों में 35 लोग मारे गए सो अलग। क़रीब 30 शहरों में कर्फ्यू लगाना पड़ा।
हालाँकि, मुलायम सिंह यादव ने नवंबर 2017 में अपने 79वें जन्मदिन के मौके पर सपा कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए अपने इस कृत्य को जायज ठहराया था। मुलायम ने इस गोलीकांड के 27 वर्षों बाद कहा था कि देश की ‘एकता और अखंडता’ के लिए अगर सुरक्षा बलों को गोली चला कर लोगों को मारने भी पड़े तो ये सही था। इतना ही नहीं, उन्होंने कहा था कि अगर इसके लिए और भी लोगों को मारना पड़ता तो सुरक्षा बल ज़रूर मारते। मुलायम ने गर्व के साथ आँकड़े गिनाते हुए कहा था कि इस गोलीकांड में 28 कारसेवकों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
कारसेवकों द्वारा जारी की गई सूची में 40 कारसेवकों के मारे जाने की बात कही गई थी और उनके नामों की सूची भी प्रकाशित की गई थी। मुलायम ने बताया था कि अटल बिहारी वाजपेयी ने उनसे 56 लोगों के मारे जाने की बात कही थी। वहीं वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा अपनी क़िताब ‘युद्ध में अयोध्या‘ में लिखते हैं कि उन्होंने 25 लाशें देखी थी। हालाँकि, कितने दर्जन मारे गए इसके अलग-अलग आँकड़े हैं लेकिन इतना तो ज़रूर है कि मुलायम को ‘मुल्ला’ का तमगा मिल गया। पुलिस की पाबंदियों और लाठी-गोली सहने के बावजूद कार सेवकों ने हिम्मत नहीं हारी और इन ख़बरों को सुन कर और ज्यादा रामभक्त अयोध्या पहुँचने लगे थे।
केंद्र सरकार ने 15 कारसेवकों के मारे जाने का आँकड़ा दिया था, जबकि विश्व हिन्दू परिषद ने 59 लोगों के मारे जाने की बात कही थी। 1989 में अशोक सिंघल ने राज्य सरकार से 14 कोसी परिक्रमा की इजाजत माँगी थी। इतिहास ने अपने-आप को एक बार फिर से दोहराने की कोशिश की जब 2013 में मुलायम के बेटे अखिलेश की सरकार थी और सिंघल 84 कोसी परिक्रमा की इजाजत माँगने गए। अखिलेश सरकार ने विहिप को इसकी इजाजत देने से इनकार कर दिया था। 14 कोसी परिक्रमा में 25 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है, जबकि 84 कोसी परिक्रमा में 135 किलोमीटर की परिक्रमा होती है।
कहते हैं कि जब अयोध्या में 1990 में राम मंदिर आंदोलन जोरों पर था, तब क़रीब 10 लाख लोग कारसेवा के लिए जमा हो गए थे। मुलायम सिंह के प्रति लोगों का आक्रोश ही था कि 1991 में उनकी सरकार को जनता ने उखाड़ फेंका और भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई। अब जब अयोध्या मामले की सुनवाई ख़त्म हो चुकी है और फ़ैसला किसी भी वक़्त आ सकता है, ये याद करना ज़रूरी है कि मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए भारत के कथित सेक्युलर जमात के नेताओं ने क्या-क्या कारनामे किए हैं। और अव्वल तो ये कि प्रायश्चित के बजाय उन्होंने उसे जायज भी ठहराया है।
Can justice finally come for the numerous Hindu devotees that the Mulayam Singh govt. had massacred in Ayodhya in 1990? Is devotion to Sri Ram a crime? #KarsevakMassacre https://t.co/HUxRqsoDcx
— Dr David Frawley (@davidfrawleyved) February 2, 2019
हेमंत शर्मा लिखते हैं कि इस गोलीकांड के बाद अयोध्या की सड़कें, छावनियाँ और मंदिर खून से सन गए थे। सुरक्षा बलों ने अंधाधुंध फायरिंग की थी। जब कार सेवक सड़कों पर बैठ कर रामधुन गए रहे थे, तब उन पर गोलियाँ चलवाई गईं। जब वो जन्मस्थान परिसर के पास पहुँचे भी नहीं थी, तब भी उन पर गोलियाँ चलीं। स्थानीय प्रशासन ने तरह-तरह की बातों से अपने इस कृत्य को जायज ठहराने की कोशिश की। पत्रकारों ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से पूछा कि निहत्थे लोगों पर गोलियाँ क्यों चलाई जा रही हैं तो कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। ऐसा लग रहा था जैसे उन पर ख़ून सवार हो।
आज इस घटना को 29 साल हो गए हैं और लगभग 3 दशक बीतने के बाद राम मंदिर पर फैसले की घड़ियाँ नजदीक आ रही है। जबकि, कारसेवकों के परिवार ने सीधा कहा था कि मुलायम सिंह ने उनके घर के चिराग छीन लिए और वे न्याय की आस में अभी भी भटक रहे हैं। क्या मुलायम सिंह यादव इसके लिए सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगेंगे? ये पाप तो ऐसा था कि माफ़ी माँग लेने से भी इसका प्रायश्चित नहीं हो सकता। लेकिन अभी जब सेकुलरिज्म का कीड़ा अपने अंधे दौर से गुजर रहा है, इसकी कोई गारंटी नहीं है कि मुलायम जैसे नेता आगे ऐसा नहीं करेंगे। इरादे वही हैं, बस चेहरे बदल गए हैं।