मेरा जीवन बहुत सीधा और सरल है, दिन में नौकरी, सामान्य शौक और एक खुशहाल परिवार। सामाजिक रूप से सक्रिय होने के कारण, मैं कई विचारधाराओं वाले लोगों से मिला हूँ और लोगों की खामियों को नजरअंदाज करना मेरा स्वभाव है। बाकी लड़कों की तरह मेरा बचपन भी पापा की सुनाई गई कहानियों से भरा हुआ है। काफी पुरानी कहानी, जो इतिहास बन चुका है। मैं इतिहास को लेकर बेहद जुनूनी हूँ।
अब, ठीक एक सदी के बाद भी, हम देखते हैं कि भयानक और विकराल अतीत का कंकाल हम पर हँस रहे हैं। जब भी वह युद्ध के पीछे की वजह का महिमामंडन करते हैं, तो हमारे घाव फिर से हरे हो जाते हैं। जी हाँ, मैं उसी मोपला नरसंहार की बात कर रहा हूँ, जिसे फर्जी तरीके से ‘किसानों के विद्रोह’ या ‘स्वतंत्रता संग्राम’ के रूप में पेश किया जाता है। हर बार सभी पार्टी ने अपने हित के लिए इसका इस्तेमाल किया।
21 अगस्त 1921 को सुबह 8 बजे नीलांबुर शहर में अज़ान की गूँज सुनाई दी। दक्षिणी मालाबार में अशांति की खबर सुनकर, नीलांबुर साम्राज्य ने अपने कोविलकम (महल) की सुरक्षा के लिए मुट्ठी भर संतरी (पहरेदार) नियुक्त किए। मोपला के समूह की पहचान उस समय नहीं हुई, क्योंकि विद्रोही काफिला एक धार्मिक जुलूस की तरह लग रहा था। महल के छोटे पहरेदारों ने भरसक इसका विरोध किया, लेकिन यह सब व्यर्थ रहा।
ये मजहबी खानाबदोश कोविलकम के हर जीवित हिंदू और हिंदू समर्थकों पर हमला करने के लिए आगे बढ़े; और अंत में, एक लंबी लड़ाई के बाद वेलुथेडन नारायणन और वेलीचप्पड़ (कोविलकम मंदिर के जानकार- वेट्टाकोरु माकन) ने महल की दीवारों की रक्षा करने की कोशिश में अपनी जान गँवा दी। दंगाइयों ने सामने के दरवाजे को क्षतिग्रस्त कर दिया लेकिन कोविलकम में प्रवेश नहीं कर सके। भीड़ का एक अन्य समूह पास की चलियार नदी की ओर भागा और नहा रही दो महिलाओं को मार डाला। महिला वहीं पास की चट्टान पर बैठी अपनी डेढ़ साल की बेटी की जान बचाने की गुहार लगाती रही। मगर दंगाइयों ने कोविलकम को लूटने के बाद दूसरी ओर कूच किया।
उस दोपहर में बेरहमी से मारे गए अनेक निर्दोषों के खून ने चलियार के तटों को धो डाला। वह छोटी बच्ची दूध की एक बूँद के लिए अपनी मृत माँ के स्तन को चूस रही थी, तभी नीलमपुर मानववेदन तिरुमुलपद के दूसरे राजा ने उसे देखा। उन्होंने उस अनाथ बच्ची को गोद लिया, उसका नाम कमला रखा और उसे अपनी बेटी के रूप में पाला। बाद में 1938 में कमला का विवाह इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के जूनियर इंजीनियर पद्मनाभ मेनन से हुआ। दुख की बात यह है कि भारतीय इतिहार इसे मोपला विद्रोह के रूप में दर्शाता है, जबकि यह 1921 में हिंदू परिवारों द्वारा झेली गई भयावह हिंसा को उजागर करता है।
मोपला नरसंहार किसान विद्रोह नहीं था
उस समय सुहाद (शहादत) का सही अर्थ इस्लाम में फिर से लिखा गया था, जब उनके कत्लेआम का कारण सिर्फ और सिर्फ मजहब था और उस नाम पर लोगों को बेरहमी से मारा गया, बलात्कार किया गया और गैर-इस्लामी लोगों को लूटा गया। उनके अनुसार, इस्लामी शहीद (जो इस तथाकथित विद्रोह के दौरान मर जाते हैं) कीमती पत्थरों से सुसज्जित घोड़ों पर जन्नत की सैर करते हैं और उनका स्वागत हूरें करती हैं। एक अनपढ़ मोपला के लिए, यह वादे उसके द्वारा जीते गए सांसारिक जीवन की तुलना में अधिक स्वागत योग्य था।
भारत में स्वतंत्रता आंदोलनों ने प्रत्येक पुरुष और महिला को एक सामान्य उद्देश्य के लिए हाथ मिलाने की माँग की। खिलाफत आंदोलन को स्वराज आंदोलन के साथ जोड़ना महात्मा गाँधी का विचार था। उन्होंने सोचा कि इससे दूर रह रहे मुसलमानों को आजादी के हमारे संघर्ष में भाग लेने की पहल होगी। हालाँकि हिंदुओं के साथ हुए अन्याय के बारे में उन्हें काफी कम पता था, जब इस्लाम के नाम पर हजारों लोगों को मार दिया गया। भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने एक स्वतंत्र देश का सपना देखा था, लेकिन खिलाफतियों ने एक स्वतंत्र इस्लामी देश का सपना देखा था।
वे 5000 किलोमीटर दूर तुर्की में हो रहे सत्ता संघर्ष को लेकर ज्यादा चिंतित थे। ब्रिटिश शासन के तहत भारत दार-उल-हरब था और, इसके खिलाफ लड़ने के लिए इसे किसी भी मुस्लिम का कर्तव्य माना जाता था। शुरुआत में, हजारों मोपला, रानी की सरकार के खिलाफ खिलाफत आंदोलन में शामिल हुए। एरानाड, वल्लुवनाद, पोन्नानी और कालीकट के हिंदुओं और मोपलाओं ने हाथ में हाथ डाल कर खिलाफत आंदोलन में हिस्सा लिया। मगर उन्हें कहाँ पता था कि मोपला लोग राष्ट्रवादी नेताओं के स्वराज का सपना नहीं देख रहे थे, बल्कि उनका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंक कर इस्लाम के राज्य की स्थापना करना था।
विद्रोह से कुछ दिन पहले, अंग्रेजों को हिंसा की हवा मिली और उन्होंने कालीकट में अपनी दूसरी लेइनस्टर रेजिमेंट को मजबूत किया, उसी रेजिमेंट के तीन और प्लाटून को मद्रास से बुलाया। उन्होंने थिरुरंगदी में मुस्लिम कट्टरपंथियों के बीच छिपे हुए हथियारों की खोज करने की योजना बनाई। इन फोर्स के साथ मजिस्ट्रेट 20 अगस्त 1921 की सुबह तिरुरंगडी पहुँचे। तलाशी के बाद सुबह 10 बजे तक तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। उसी समय, पुलिस पार्टी को सूचना मिली कि 2000 मोपला थानूर से परप्पनगडी रेलवे स्टेशन पहुँचे हैं और वे थिरुरंगडी की ओर बढ़ रहे थे। मीन वेरिंग, जिला पुलिस अधीक्षक आर एच हिचकॉक और डिप्टी एसपी अमू साहेब के नेतृत्व में सर्च टीम ने मोपला भीड़ का सामना किया।
यह 1921 मोपला जिहाद की शुरुआत थी। ‘नारा-ए-तकबीर, अल्लाहु अकबर’, ये नारे राष्ट्रवादी शक्ति या किसान शक्ति को प्रतिध्वनित नहीं करते थे। न तो उन्होंने स्वराज ध्वज (पिंगली वेंकैया द्वारा डिजाइन किया गया) और न ही खिलाफत ध्वज (दो चौराहे वाले घेरे) लिए थे। इसके बजाय दंगाइयों ने काले ‘बैनर ऑफ ईगल’ के साथ मार्च किया, जिसे रयात अल-उकाब के रूप में भी जाना जाता है। यह इस्लामी परंपरा में मुहम्मद द्वारा फहराया गया ऐतिहासिक ध्वज था। इस प्रतीक का इस्तेमाल इस्लामवाद और जिहादवाद में किया जाता है।
उन्होंने लोहे की रॉड से हमला किया। पुलिस की बेनट उनकी बढ़ती संख्या का सामना नहीं कर पा रही थी। पुलिस फायरिंग में नौ मारे गए। जब भीड़ वापस चली गई, तो अंग्रेजों ने थानूर खिलाफत समिति के सचिव कुंजिखदर और 40 अन्य मोपालियों को पकड़ लिया।
ब्रिटिश प्रशासन कुछ समय के लिए स्थूल पड़ गया था और इस दौरान कट्टरपंथियों ने हथियार उठा लिए थे। उन्होंने पुलिस थानों, कोषागारों, अदालतों और अन्य सरकारी कार्यालयों में छापेमारी की और लूटपाट की। ये धार्मिक गड़बड़ी जल्द ही जंगल की आग की तरह मलप्पुरम के आस-पास के इलाकों में फैल गई।
क्यों एमबी राजेश गलत थे
हाल ही में जब केरल विधानसभा के अध्यक्ष एमबी राजेश ने न्यूज चैनल में एक बयान दिया, तो इसने मुझे एक बार फिर सुनाई गई कहानियों से बहुत दर्दनाक क्षणों और नुकसानों को याद दिला दिया। मुझे एमबी राजेश के खिलाफ कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं है, लेकिन उन्होंने राजनीतिक लाभ और इस्लामी तुष्टीकरण के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया। ऐसे लोग महान भारतीय लोकतंत्र के चेहरे पर धब्बा हैं, चलियार पर तैरने वाले हजारों हिंदुओं की सड़ी-गली लाशों पर दावत देने की कोशिश करने वाले जानवर हैं और संक्षेप में कहें तो यह एक कम्युनिस्ट हैं!
इस तरह के बयानबाजी करने वाली कैंसर टाइप विचारधारा कुछ वोटों के लिए सरासर गलत है। अगर वे मजदूर वर्ग के कुछ हज़ार नामों को मिटा देते हैं, तो मोपला दंगा एक आदर्श कहानी है जो उनके फर्स्ट क्लास के युद्ध सिद्धांत और बाइनरी संस्थाओं- जमींदारों और किसानों के साथ फिट बैठती है।
अबनी मुखर्जी ने 1922 में लेनिन को अपनी रिपोर्ट में कम्युनिस्ट संस्करण गढ़ा। एम स्वराज और राजेश सहित कम्युनिस्टों की नई पीढ़ियाँ कॉमरेड मुखर्जी की वही पुरानी कहावत का जाप करती हैं और उस संघर्ष में, वे अपने स्वयं के श्रद्धेय नेता ईएमएस नंबूदीरपद के बयान का खंडन भी करते हैं, जो खुद मोपला विद्रोह का शिकार थे, जिसे अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था।
पूरे सम्मान के साथ, कुछ प्रश्न हैं मेरे
दक्षिण मालाबार के अलावा दुनिया में कहाँ धार्मिक नारों से किसान क्रांति का नेतृत्व किया जाता है? यदि दंगे अंग्रेजों के खिलाफ थे, तो कितने ब्रिटिश अधिकारी मारे गए? यदि क्रांति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा थी, तो किस राष्ट्रीय नेता ने बड़े पैमाने पर धर्मांतरण और हिंदुओं के सामूहिक बलात्कार का आह्वान किया? आज की पीढ़ी सोचने, विश्लेषण करने और इन पर खुलकर चर्चा करने के लिए अच्छी तरह से शिक्षित है। निष्कर्ष बहुत सरल, रूपांतरित या मार डालने वाले होंगे। स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में कट्टरपंथियों के एक समूह को चित्रित करने के किसी भी प्रयास की निंदा की जाएगी, क्योंकि यह एकमात्र श्रद्धांजलि है, जो हम अपने अज्ञात पूर्वजों को दे सकते हैं जो इस कट्टरपंथ के शिकार हो गए।
नोट: लेखक ऊपर जिक्र किए गए कमला और पद्मनाभ मेनन के पोते हैं। इसका मूल वर्जन आप यहाँ पढ़ सकते हैं।