Sunday, November 17, 2024
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जिन्होंने बनाया भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक ‘सेंगोल’, वे भी नई संसद के उद्घाटन में रहेंगे मौजूद: बताया बनाने के बदले मिले थे 15000 रुपए

बता दें कि स्वतंत्रता के समय वुम्मिडि बंगारू चेट्टी और उनके साथी सेंगोल बनाने से काफी खुश थे। समारोह के आयोजन के लिए महंत ने अपने शिष्य कुमारस्वामी तम्बीरान को दिल्ली भेजा था। कुमारस्वामी तम्बीरान एक बड़े गायक और ‘नादसुर’ के विशेषज्ञ थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) 28 मई 2023 को नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इस दौरान तमिलनाडु (Tamil Nadu) के शैव पंथ के मठ थिरुवदुथुराई एथीनम से आए पुजारी पीएम को भारत की सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक राजदंड अर्थात् सेंगोल (Sengol) को सौंपेंगे। राजदंड को 1947 में चेन्नई (उस वक्त मद्रास) के सुनार वुम्मिडि बंगारू चेट्टी ने लगभग एक महीने में बनाया था।

राजदंड पाँच फीट लंबी दंड (छड़ी) है, जिसके सबसे ऊपर भगवान शिव के वाहन नंदी विराजमान हैं। नंदी न्याय व निष्पक्षता को दर्शाते हैं। साल 1947 में इसे सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था। दरअसल, राजतंत्र में हर लगभग हर राज्य का एक अपना राजदंड होता था, जो शासक की न्यायप्रियता, निष्पक्षता और जनकल्याणकारी भावना को दर्शाता था।

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, इस राजदंड को बनाने में 96 साल के वुम्मिडि एथिराजुलु (Vummidi Ethirajulu) और 88 साल के वुम्मिडि सुधाकर (Vummidi Sudhakar) भी शामिल रहे हैं। कहा जा रहा है कि नए संसद भवन के उद्घाटन के दौरान वे दोनों भी शामिल होंगे।

उस वक्त को याद करते हुए वुम्मिडि एथिराजुलु बताते हैं, “अधीनम हमारे पास सेंगोल को बनाने के लिए एक चित्र लेकर आए थे और कहा था कि इसे बिल्कुल इसी तरह बनाना है। यह महत्वपूर्ण स्थान पर जाना है। ऐसे में हमारे लिए अच्छी क्वालिटी देना बहुत जरूरी था।”

उन्होंने आगे बताया, “यह चाँदी का बनाया गया था और इस पर सोने की परत चढ़ाई गई थी। स्वतंत्रता हम सबके लिए गौरवशाली क्षण था, लेकिन जब हमें ये अहम जिम्मेदारी सौंपी गई तो इसका महत्व हमारे लिए और बढ़ गया था।” बताते चलें कि इस राजदंड को बनाने के एवज में चेट्टी को इसके लिए उन्हें 15,000 रुपए दिए गए थे।

भाजपा नेता ने प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद कहा

स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर-जनरल सी राजगोपालाचारी के प्रपौत्र और भाजपा नेता सीआर केसवन ने कहा, “सेंगोल को साल 1947 में अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सौंपा गया था। हम में से बहुत से लोग पवित्र राजदंड (सेंगोल) के साथ सत्ता के हस्तांतरण की इस महत्वपूर्ण घटना के बारे में नहीं जानते थे।”

केसवन ने आगे कहा, “एक भारतीय होने के नाते मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देना चाहता हूँ। भारतीय सभ्यता की विरासत, भारतीय संस्कृति की बहुत गहरी समझ रखने वाला और हमारे मूल्यों और परंपराओं के प्रति गहरा सम्मान रखने वाला व्यक्ति ही यह सुनिश्चित कर सकता है कि इस तरह की महत्वपूर्ण घटना को गुमनामी से वापस लाया जाए और इतिहास में उसे उचित स्थान दिया जाए।”

तमिलनाडु में सेंगोल आम बोलचाल का शब्द है। सेंगोल ब्रिटिश सरकार से भारतीयों के हाथों में ली गई सत्ता के प्रतीक के रूप को दर्शाता है। राजदंड बनाने वाले सुनार वुम्मिडि बंगारू चेट्टी के प्रपौत्र जितेंद्र वुम्मी ने इसके इतिहास और महत्व के बारे में बताया।

उन्होंने कहा, “चोल साम्राज्य में जब भी कोई राजा गद्दी पर बैठता था, तब उसे यही सेंगोल सौंपा जाता था। भारत में यह विधान बेहद प्राचीन है। चोल राजवंश में भी यही विधान था। चोल भगवान शिव को आराध्य मानते थे। इसलिए उनके राजदंड के शीर्ष पर नंदी और धन व समृद्धि का प्रतीक देवी लक्ष्मी की एक नक्काशी शीर्ष पर है। सेंगोल को भगवान की प्रार्थना करने के बाद उनके आशीर्वाद के रूप में गढ़ा गया था।”

बता दें कि स्वतंत्रता के समय वुम्मिडि बंगारू चेट्टी और उनके साथी सेंगोल बनाने से काफी खुश थे। समारोह के आयोजन के लिए महंत ने अपने शिष्य कुमारस्वामी तम्बीरान को दिल्ली भेजा था। कुमारस्वामी तम्बीरान एक बड़े गायक और ‘नादसुर’ के विशेषज्ञ थे।

14 अगस्त 1947 की रात को कुमारस्वामी श्रीला श्री कुमारस्वामी तम्बीरान ने ‘सेंगोल’ लॉर्ड माउंटबेटन को दिया। इसे जल से पवित्र किया गया था और फिर उसे ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा था। इस दौरान तमिल संत ‘कोलारु पथिगम’ का गान किया गया, जो शैव कविता ‘थेवारम’ का हिस्सा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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