पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जिन दिव्य स्थलों पर देवी माँ साक्षात प्रकट हुईं, वहाँ निर्मित मंदिरों में उनकी प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है, ऐसे मंदिरों में चिह्न पूजा का ही विधान है। दुर्गा मंदिर में भी प्रतिमा के स्थान पर देवी माँ के मुखौटे और चरण पादुकाओं का पूजन होता है। कहा जाता है कि जब राजा-महाराजाओं ने सुदर्शन को युद्ध के लिए ललकारा तो माँ आदि शक्ति ने युद्धभूमि में प्रकट होकर सभी विरोधियों का वध कर डाला। इस युद्ध में इतना रक्तपात हुआ कि वहाँ रक्त का कुंड बन गया, जो वर्तमान में दुर्गाकुंड के नाम से प्रसिद्ध है।
दुर्गाकुंड, देवी माँ का मंदिर और सुदर्शन का युद्ध… कुछ कंफ्यूजन है ना! दरअसल इसके पीछे एक कहानी है। कहानी है एक विवाह की। काशी नरेश की पुत्री के विवाह की। इस विवाह के पीछे रोचक कथानक है कि काशी नरेश राजा सुबाहू ने अपनी पुत्री के विवाह योग्य होने पर उसके स्वयंवर की घोषणा की। स्वयंवर दिवस की पूर्व संध्या पर राजकुमारी को स्वप्न में राजकुमार सुदर्शन के संग उनका विवाह होता दिखा।
राजकुमारी ने अपने पिता काशी नरेश सुबाहू को अपने स्वप्न की बात बताई। काशी नरेश ने इस बारे में जब स्वयंवर में आए राजा-महाराजाओं को बताया तो सभी राजा सुदर्शन के खिलाफ हो गए व सभी ने उसे सामूहिक रूप से युद्ध की चुनौती दे डाली। राजकुमार सुदर्शन ने उनकी चुनौती को स्वीकार कर माँ भगवती से युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद माँगा। राजकुमार सुदर्शन ने जिस स्थल पर आदि शक्ति की आराधना की, वहाँ देवी माँ प्रकट हुई और सुदर्शन को विजय का वरदान देकर स्वयं उसकी प्राणरक्षा की।
मंदिर स्थल पर माता भगवती के प्रकट होने का संबंध अयोध्या के राजकुमार सुदर्शन की कथा से जुड़ा है। राजकुमार सुदर्शन की शिक्षा-दीक्षा प्रयागराज में भारद्वाज ऋषि के आश्रम में हुई थी। शिक्षा पूरी होने के उपरान्त राजकुमार सुदर्शन का विवाह काशी नरेश राजा सुबाहू की पुत्री से हुआ था। आज यह दुर्गा मंदिर काशी के पुरातन मंदिरों में से एक है। इसलिए आइए आज कुछ तस्वीरों के जरिए काशी के दुर्गा मंदिर, भैरो बाबा, गंगा मैया समेत त्रिकालदर्शी के दर्शन करें।
नोट: यह फोटो फीचर @shrimaan के ट्विटर हैंडल से ली गई तस्वीरों से बनाया गया है। जिसका पूरा थ्रेड आप इस लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।