आजादी के बाद से ही देश में ‘हिंदू-मुस्लिम भाईचारा’ और ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ के मिथक का गढ़ा गया, लेकिन समय-समय पर यह मिथक टूटता रहा। राजस्थान के उदयपुर में कन्हैया लाल साहू नाम के एक हिंदू टेलर की खुलेआम हत्या इसी मिथक के भ्रम को तोड़ने वाला है। कन्हैया लाल ने भाजपा की निलंबित नेता नूपुर शर्मा का समर्थन किया था। नूपुर शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद का एक टेलीविजन बहस के दौरान अपमान किया है।
मंगलवार (28 जून 2022) को उदयपुर में स्थित अपने टेलर की दुकान में कन्हैया लाल बैठे थे, तभी गौस मुहम्मद और रियाज नाम के दो इस्लामी चरमपंथी ग्राहक बनकर आए और कन्हैया लाल का गला काट दिया। पुलिस जब हत्यारों को गिरफ्तार कर ले आई तो राज्य के राजसमंद जिले में कट्टरपंथियों की भीड़ ने बवाल कर दिया और एक पुलिसकर्मी के गले पर वार कर दिया। इस तरह की घटनाएँ ‘मिथक-निर्माण’ और उसमें जीने के भ्रम को तोड़ती हैं।
‘मिथक-निर्माण’ किसी भी गणतंत्र की स्थापना की एक आंतरिक विशेषता है। सत्ता पर पकड़ मजबूत करने और अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए हर देश के सत्तारूढ़ संस्थान ऐसे ही कुछ मिथकों को गढ़ते हैं, जो उन्हें उनकी विचारधारा को सही ठहराने में मदद करती है। भारत में नेहरूवादी धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के साथ भी इसी तरह की घटना देखने को मिली। इस दौरान ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब’ की विचारधारा का मिथक गढ़ा गया।
‘गंगा-जमुनी तहज़ीब’ की विचारधारा के मूल सिद्धांतों में से एक यह है कि 1947 में भारतीय मुसलमानों ने पाकिस्तान के इस्लामिक गणतंत्र को चुनने की बजाय ‘धर्मनिरपेक्ष भारत’ को चुना था, इसलिए अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के सभी दस्तूर जायज हैं। इसने न सिर्फ इस्लामी कट्टरपंथ पर पर्दा डालने को प्रोत्साहित किया, बल्कि इसका महिमामंडन भी किया।
इस स्पष्ट झूठ ने असदुद्दीन ओवैसी जैसे कट्टरपंथी इस्लामी नेताओं को यह कहने की खुली छूट दे दी है कि उन्होंने पाकिस्तान की बजाय भारत को ‘चुना’ था। ओवैसी के भाई हमेशा हिंसा और हिंदुओं को धमकी देते हुए पाए जाते हैं।
हालाँकि अब नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांत पर सवाल उठाने के लिए लगभग अक्षम्य हो गया है, स्वतंत्रता युग के राजनीतिक समर्थकों को अच्छी तरह से पता था कि मुसलमानों ने भारत में रहने के लिए नहीं चुना था क्योंकि उन्होंने एक इस्लामिक राज्य के दर्शन को अस्वीकार कर दिया था। सरदार पटेल ने जनवरी 1948 में कोलकाता में अपने भाषण में उन भावनाओं को आवाज़ दी जो हमारे ‘धर्मनिरपेक्ष’ नेताओं को गहरा मानसिक आघात दे सकते हैं।
सरदार पटेल ने कहा, “जो मुसलमान अभी भी भारत में हैं, उनमें से कई ने पाकिस्तान के निर्माण में मदद की … क्या उनका राष्ट्र रातोंरात बदल गया है? मुझे समझ नहीं आया कि यह इतना कैसे बदल गया। वे अब कहते हैं कि वे वफादार हैं और पूछते हैं कि उनकी वफादारी पर सवाल क्यों उठाया जा रहा है। तो मैं जवाब देता हूँ कि आप हमसे क्यों सवाल कर रहे हैं, खुद से पूछिए। यह आपको हमसे नहीं पूछना चाहिए।”
वो आगे कहते हैं, “मैंने एक बात कही, आपने पाकिस्तान बनाया, आपके लिए अच्छा है। उनका कहना है कि पाकिस्तान और भारत को एक साथ आना चाहिए। मैं कहता हूँ कि कृपया ऐसी बातें कहने से बचना चाहिए। पाकिस्तान को स्वर्ग बनने दो, हम इससे आने वाली ठंडी हवा का आनंद लेंगे।”
इतना कहते ही दर्शक ठहाके लगाने लगते हैं और वो अपनी बात जारी रखते हैं। यह पहली बार ने नहीं था जब सरदार पटेल भारतीय मुसलमानों के पाकिस्तान के प्रति वफादारी की बात की थी।
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जीबी पंत को लिखे अपने पत्र में 9 जनवरी 1950 को रामलला और माता सीता की मूर्तियों के बाबरी मस्जिद के भीतर अचानक से प्रकट होने के बाद पटेल ने लिखा था, “प्रधानमंत्री ने अयोध्या के घटनाक्रम पर चिंता व्यक्त करते हुए आपको पहले ही एक टेलीग्राम भेज दिया है। मैंने आपसे लखनऊ में इसके बारे में बात की थी। मुझे लगता है कि यह विवादित मुद्दा बहुत गलत समय पर उठाया गया है, देश के दृष्टिकोण से भी और अपने स्वयं के प्रांत के दृष्टिकोण से भी। हाल ही में व्यापक सांप्रदायिक मुद्दे केवल विभिन्न समुदायों की आपसी संतुष्टि के लिए हल किए गए हैं। जहाँ तक मुसलमानों का सवाल है, वे अपनी नई वफादारी के लिए सेटल हो रहे हैं।”
देश के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के 6 साल पूरे होने के बाद नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता की आड़ में अलग-थलग पड़े मिथक भी अब दूर हो रहे हैं। लेफ्ट के प्रिय ’बुद्धिजीवी’ शरजील इमाम ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के पारित होने के बाद राष्ट्रीय राजधानी में भड़की हिंसा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने इस मामले पर विस्तार से लिखा और बोला है।
शरजील इमाम, पाकिस्तान के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना को एक भारतीय नेता मानता है। उसने जिन्ना का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसे बहुत से सबक हैं जिनसे भारतीय मुसलमान सीख सकते हैं। उसके अनुसार, जिन्ना एक भारतीय मुस्लिम नेता थे, जो हिंदू पुनरुत्थानवाद की ताकतों के खिलाफ लड़ रहे थे। हालाँकि, उसने कहा कि मुसलमानों ने भारत को ‘धर्मनिरपेक्षता’ के आदर्शों के कारण नहीं चुना। उसका कहना था कि मुसलमान अपनी संपत्ति और अन्य कारणों के कारण भारत में ही रह गए।
इस प्रकार, सरदार पटेल के शब्द और लेफ्ट के प्रिय ’बुद्धिजीवी’ शरजील इमाम की बातों से स्पष्ट हो जाता है कि ‘मुसलमानों ने इस्लामिक पाकिस्तान की बजाय धर्मनिरपेक्ष भारत को चुना’ नेहरूवादी सेक्युलर राज्य के ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ की विचारधारा का एक स्थायी मिथक है। हालाँकि इस मिथक के साथ ही अन्य मिथकों को भी कूड़ेदान में डालाना समय की माँग है।