Friday, November 22, 2024
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हाथ में कमंडल, जेब में एक भी पैसा नहीं… सवारी डिब्बे में स्वामी विवेकानंद के साथ बाल गंगाधर तिलक की ऐसे हुई थी मुलाकात

1901 में जब इंडियन नेशनल कॉन्ग्रेस का 17वाँ अधिवेशन हुआ तो उसमें भाग लेने के लिए बाल गंगाधर तिलक कलकत्ता आए थे। इसी दौरान वह बेलुड़ मठ जाकर स्वामी विवेकानंद से मिले थे। तब विवेकानंद ने उन्हें...

उन्नीसवीं शताब्दी के गहरे अंधकार में अगर कोई मात्र भारत ही नहीं बल्कि पश्चिम को भी भारतीय दर्शन और परम्पराओं की ज्योति से प्रकाशमान करने का दम रखते थे, तो वह हैं स्वामी विवेकानंद। परिस्थितयों ने भले उनको बनाया हो लेकिन वो कभी उनके दास नहीं बने। वह एक सन्देश लेकर आए थे, जो पृथ्वी पर उपस्तिथ हर मनुष्य के लिए विद्यमान है। वह था – “अभय बनो।”

बीसवीं शताब्दी में स्वाधीनता का आंदोलन जब चरम पर था, उस समय विवेकानंद ज्वाला-समान एक नाम थे। ऐसा नाम जो भारत माता को एकमात्र अपना आराध्य मानकर जीवन उनके चरणों में समर्पित करने की प्रेरणा देते थे। भगिनी निवेदिता अपनी पुस्तक “दी मास्टर एज आई सॉ हिम”में लिखती हैं कि उनके लिए भारत के लिए चिंतन करना श्वास लेने जैसा था।

इस लेख में स्वामी विवेकानंद और बाल गंगाधर तिलक के राष्ट्रीय चिंतन पर प्रकाश डालने का मैं प्रयास करूँगा।

12 जनवरी 1863 को बंगाल के कलकत्ता में माता भुवनेश्वरी देवी और पिता विश्वनाथ दत्त के घर जन्में नरेंद्रनाथ दत्त जो बाद में स्वामी विवेकानंद के नाम से जाने गए, मात्र 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन के जीवन में अगर उन्हीं के शब्दों में कहूँ तो 1500 वर्ष का कार्य कर गए। स्वामी विवेकानंद 25 साल की उम्र में ही परिव्राजक संन्यासी के रूप में भारत भ्रमण पर निकल गए थे।

भारत उस समय पराधीन था। हम पर अंग्रेज़ों का शासन था। अपने लगभग साढ़े चार वर्ष के भ्रमण के दौरान उन्होंने देखा कि वर्षों की गुलामी के कारण हर एक भारतीय के अंदर आत्मविश्वास, आत्म-सम्मान, आत्म-गौरव और स्वावलम्बन पूर्णतः समाप्त हो गया है। उन्हें अपना कार्य स्पष्ट हो गया था, वो राजनीति से दूर रह कर हर भारतवासी में आत्मविश्वास जगाने का कार्य करने वाले थे।

स्वामी विवेकानंद ने यह आत्मविश्वास जगाने का, चरित्र-निर्माण का और मनुष्य-निर्माण का कार्य पूरे जीवन भर अनेकों कष्ट, कठिनाइयों को सहते हुए भी किया क्योंकि इसके बिना आत्मविश्वास जागृत नहीं होता और बिना आत्मविश्वास के आत्मनिर्भर बनना संभव नहीं है, जो स्वाधीनता के लिए अत्यावश्यक है।

स्वामी विवेकानंद और बाल गंगाधर तिलक का संपर्क

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता बाल गंगाधर तिलक जो ”लोकमान्य तिलक” के नाम से भी प्रसिद्ध हैं, वह स्वामी विवेकानंद से प्रभावित थे। इनकी स्वामी विवेकानंद से मुलाकात भी हुई और व्यक्तिगत तौर पर उनसे राष्ट्रीय चिंतन के विषयों पर मार्गदर्शन लेने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ था।

बाल गंगाधर तिलक के अनुसार स्वामी विवेकानंद से उनकी पहली भेट बम्बई से पुणे जाते समय यात्री डिब्बे में हुई थी। स्वामी विवेकानंद के पास बिलकुल भी पैसे नहीं थे और उनके हाथ में बस एक कमंडल था। विश्व धर्म महासभा की सफलता के बाद जब उनके चित्र बाल गंगाधर तिलक ने समाचार पत्रों में देखे तो उनको याद आया कि यह वही संन्यासी हैं, जिन्होंने उनके घर पर कुछ दिन तक निवास किया था। इसके बाद दोनों के बीच पत्र व्यवहार भी हुआ था।

1901 में जब इंडियन नेशनल कॉन्ग्रेस का 17वाँ अधिवेशन हुआ तो उसमें भाग लेने के लिए बाल गंगाधर तिलक कलकत्ता आए थे। इसी दौरान वह बेलुड़ मठ जाकर स्वामी विवेकानंद से मिले थे। तब विवेकानंद ने उन्हें संन्यास लेने और बंगाल आकर उनका कार्यभार सँभालने को भी कहा था। क्योंकि स्वामी विवेकानंद के अनुसार अपने क्षेत्र में कोई व्यक्ति इतना प्रभावशाली नहीं होता, जितना सुदूर क्षेत्रों में। इस मुलाकात के बाद बाल गंगाधर तिलक बेलुड़ मठ आए थे और विवेकानंद से मार्गदर्शन प्राप्त किया था। उनके द्वारा स्थापित समाचार पत्र “केसरी” के संपादक एनसी केलकर भी स्वामी विवेकानंद से मिलने आते थे।

बाल गंगाधर तिलक के साथ कंधे से कंधा मिलाकर भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने वाले प्रमुख भारतीय क्रांतिकारियों में से एक जो कुशल और निपुण पत्रकार, लेखक, शिक्षक व वक्ता भी थे और लाल-बाल-पाल की तिकड़ी के महत्वपूर्ण सदस्य भी, वह बिपिन चंद्र पाल कहते हैं, ”विवेकानंद का संदेश आधुनिक मानवता का संदेश था… मुझे कहना होगा कि विवेकानंद ने एक बड़े वर्ग की आँखें खोली हैं।”

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nikhilyadav
nikhilyadav
Nikhil Yadav is Presently Prant Yuva Pramukh, Vivekananda Kendra, Uttar Prant. He had obtained Graduation in History (Hons ) from Delhi College Of Arts and Commerce, University of Delhi and Maters in History from Department of History, University of Delhi. He had also obtained COP in Vedic Culture and Heritage from Jawaharlal Nehru University New Delhi.Presently he is a research scholar in School of Social Science JNU ,New Delhi . He coordinates a youth program Young India: Know Thyself which is organized across educational institutions of Delhi, especially Delhi University, Jawaharlal Nehru University (JNU ), and Ambedkar University. He had delivered lectures and given presentations at South Asian University, New Delhi, Various colleges of Delhi University, and Jawaharlal Nehru University among others.

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