आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को एक के एक बाद कई झटके लग रहे हैं, इसी बीच उसे एक और बड़ा झटका लगने की ख़बर सामने आई है। अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के वित्तपोषण की निगरानी करने वाली संस्था, ‘फाइनेंनिशियल एक्शन टॉस्क फोर्स’ (FATF) के ग्रे लिस्ट में डालने के बाद अब FATF की एशिया प्रशांत इकाई (APG) ने उसे ‘ब्लैक लिस्ट’ में डाल दिया है। यह फ़ैसला ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा में आयोजित FATF की एशिया प्रशांत इकाई की बैठक में लिया गया।
दरअसल, संस्था ने पाया कि टेरर फंडिंग, मनी लॉन्ड्रिंग और आंतकवादियों को वित्तपोषण से जुड़े 40 में से 32 मानकों को पाकिस्तान ने पूरा नहीं किया है। APG, FATF की क्षेत्रीय इकाई है और ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट में डालने के फ़ैसले का असर व्यापक स्तर पर पड़ेगा। कयास लगाए जा रहे हैं कि FATF भी अक्टूबर में होने वाली बैठक में पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट में डालने का फ़ैसला लेगा।
FATF ने पाकिस्तान से अक्टूबर 2019 तक अपने एक्शन प्लान को पूरा करने के लिए कहा था, इसके लिए पाकिस्तान के प्रति FATF का रुख़ बेहद सख़्त था। एक्शन प्लान में जमात-उद-दावा, फलाही-इंसानियत, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हक्कानी नेटवर्क और अफ़गान तालिबान जैसे आतंकी संगठनों की फंडिंग पर रोक लगाने जैसे कई क़दम शामिल थे।
APG की फाइनल रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान टेरर फंडिंग के ख़िलाफ़ सुरक्षा उपायों के लिए 11 मापदंडों में से 10 को पूरा करने में विफल रहा है। APG ने यह भी पाया है कि इस्लामाबाद की तरफ से कई मोर्चों पर खामियाँ हैं। साथ ही मनी लॉड्रिंग और टेरर फंडिंग को रोकने के लिए पाकिस्तान की तरफ से की जाने वाली कोशिशों में तमाम ख़ामियाँ हैं। पाकिस्तान की तरफ से 50 पैमानोंं पर सुधार के दावों को लेकर कोई समर्थन नहीं मिल रहा है। बता दें कि APG एक अंतर सरकारी संगठन है जो क्षेत्र में टेरर फंडिंग और मनी लॉड्रिंग पर नज़र रखता है।
ग़ौरतलब है कि FATF ने जून, 2018 में पाकिस्तान को संदिग्ध सूची में डाल दिया था। इसका कारण अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और इंग्लैंड द्वारा दबाव बनाया जाना था। आपको बता दें कि FATF की ओर से ब्लैक लिस्ट करने का मतलब होता है कि उक्त देश मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादियों को वित्तपोषण के ख़िलाफ़ मुहीम में अपना सहयोग नहीं कर रहा है।
अगर पाकिस्तान को FATF द्वारा भी ब्लैक लिस्ट कर दिया गया तो उसे वर्ल्ड बैंक, IMF, ADB, यूरोपियन यूनियन जैसी संस्थाओं से क़र्ज़ मिलना मुश्किल पड़ जाएगा। इसके अलावा मूडीज, स्टैंंडर्ड एंड पूअर और फिच जैसी एजेंसियाँ उसकी रेटिंग भी घटा सकती हैं।