बलूचिस्तान की आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे क्रांतिकारियों और सेनानियों ने पाकिस्तान के चंगुल से आज़ाद होने के लिए हिंदुस्तान से मदद माँगी है। हमारे 73वें स्वतंत्रता दिवस पर बलूचिस्तानी एक्टिविस्ट अट्टा बलोच ने बधाई देते हुए कहा कि बलूचिस्तानी अपनी आज़ादी की लड़ाई में हिंदुस्तानियों द्वारा दिए जा रहे समर्थन के लिए शुक्रगुज़ार हैं। “हम चाहते हैं कि वे (हिंदुस्तानी) एक आज़ाद बलूचिस्तान के लिए आवाज़ उठाएँ। हमें उनका समर्थन चाहिए। शुक्रिया और जय हिन्द।”
एक दूसरे बलूच कार्यकर्ता अशरफ़ शेरजान ने हिंदुस्तान से UN समेत सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बलूचिस्तान की आवाज़ उठाने की गुज़ारिश की है। “बलूचिस्तान के लोगों पर पाकिस्तान और उसकी सेना के हाथों अत्याचार हो रहा है, उनका सामूहिक हत्याकाण्ड हो रहा है। बलूचिस्तान का खून बहाया जा रहा है।” हिंदुस्तान से बेआवाज़ों की आवाज़ बनने की याचना करते हुए शेरजान ने अपनी अपील का अंत “भारत माता की जय” से किया।
पाकिस्तान के स्वतन्त्रता दिवस (14 अगस्त) के दिन उसे शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था जब ट्विटर पर बलूचिस्तान के समर्थन में BalochistanSolidarityDay और 14thAugustBlackDay ट्रेंड करने लगा था। इन ट्रेंडों पर तकरीबन क्रमशः 100,000 और 54,000 ट्वीट्स हुए। पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान में किए जा रहे जघन्य मानवाधिकार हनन के चलते उसे पहले भी कई बार शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है।
आज़ाद होते ही बलूचिस्तान को बनाया गुलाम
विभाजन के पहले बलूचिस्तान के 4 हिस्से होते थे- कलात, लसबेला, खारन और मकरान। बाकी तीनों हिस्से कलात के विभिन्न तरीकों से अधीन थे। बलूचिस्तानियों का दावा है कि बलूचिस्तान को अंग्रेज़ों से आज़ादी हिंदुस्तान-पाकिस्तान के पहले 11 अगस्त, 1947 को ही मिल गई थी।
पहले तो पाकिस्तान ने ब्रिटिश सरकार से अपनी सौदेबाज़ी में कलात को हिंदुस्तान से अलग एक सम्प्रभु, आज़ाद राज्य के रूप में मान्यता दे दी। उसके बाद जिन्ना ने बलूचिस्तान के पाकिस्तान में विलय का एकतरफ़ा निर्णय ले लिया। बलूचिस्तान की असेम्बली ने हालाँकि पाकिस्तान के साथ मिलने के प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया था। इस विषय, और बलूचिस्तान से जुड़े अन्य विषयों पर, ऑपइंडिया की बलूचिस्तान लिबरेशन फ़्रंट के डॉ. अल्लाह नज़र के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत आप यहाँ पढ़ सकते हैं।